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सीसीएफ, एसडीओ फारेस्ट का वाहन राजसात का आदेष खारिज जिला एवं सत्र न्यायालय ने दिए वाहन मुक्त करने के आदेष ।

सुदर्शन टुडे समाचार जिला ब्यूरो चीफ रामेशवर लक्षणे बैतूल

बैतूल। मप्र राज्य। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 में वन अपराध में जप्त वाहन एवं अन्य संपत्ति को राजसात की कार्यवाही करता हैं। वन परिक्षेत्र अधिकारी मुकदमा एसडीओ फारेस्ट की अदालत में पेष करते हैं। कानून में प्रावधान तो नहीं हैं फिर भी एक विचारण न्यायालय की तहत मामले की सुनवाई होती हैं लेकिन वाहन मालिक को अधिवक्ता नियुक्त करने का अधिकार नहीं दिया जाता हैं। वन परिक्षेत्राधिकारी के प्रवक्ता की भूमिका में आकर एसडीओ फारेस्ट वाहन को राजसात कर देते हैं। मुख्य वन संरक्षक की अदालत डाक घर की भूमिका में आकर एसडीओ के आदेष को सही ठहराने का काम करती हैं। जिला न्यायालय बैतूल में विधि एवं न्याय के मापदण्डों पर मामला टिक नहीं पाता हैं और एसडीओ एवं मुख्य वन संरक्षक का आदेष अपास्त हो जाता हैं।
मामला इस प्रकार हैं कि वन परिक्षेत्राधिकारी सारणी के अंतर्गत वन ़क्षेत्र आर.एफ.287 सरंगा नदी से वाहन ट्रैक्टर ट्राली में खनिज रेत को भरते हुए 22.10.2021 को जप्त किया गया थ। प्राधिकृत अधिकारी सह उप वन मंडलाधिकारी (सा)0 सारणी द्वारा भारतीय वन अधिनियम 1927 में मामले की सुनवाई करने के बाद वाहन राजसात कर दिया गया। मुख्य वन संरक्षक बैतूल द्वारा वाहन स्वामी की अपील को खारिज कर दिया गया था।
जिला एवं सत्र न्यायालय बैतूल में प्रणेष कुमार प्राण की अदालत में भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 (ख) में पुनरीक्षण याचिका वाहन स्वामी कार्तिक बढाल पिता उपेन्द्रनाथ बढ़ाल निवासी ग्राम कोल्हिया, तह0 घोड़ाडोगरी जिला बैतूल द्वारा अधिवक्ता भारत सेन के माध्यम से दाखिल की गई थी। न्यायालय ने दोनो पक्षों को सुनने के बाद पाया कि वाहन स्वामी कार्तिक बढ़ाल का ट्रैक्टर ट्राली का सौदा मुकुंद बढ़ाल से हो गया था जिसका ड्राईवर सोनू उईके वाहन लेकर वन भूमि से खनिज रेत लाने के लिए घटना दिनांक को गया था। जप्तषुदा वाहन मुकुंद बढ़ाल के कब्जे में था जिसका ड्राईवर सोनू उईके से वन विभाग द्वारा वाहन को जप्त किया गया था। कथित वन अपराध की जानकारी वाहन स्वामी कार्तिक बढ़ाल को बाद में पता लगी थी। वन विभाग द्वारा वाहन में जप्तषुदा खनिज रेत का मूल्यांकन नहीं किया गया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता भारत सेन ने न्यायालय के समक्ष अपने तर्क के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के पूर्व निर्णयों को प्रस्तुत किया गया था।
न्यायालय द्वारा भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 52 (ख) में दाखिल प्राधिकृत अधिकारी एवं उप वनमंडलाधिकारी, सारणी तथा मुख्य वन संरक्षक बैतूल का आदेष अषुद्ध, अवैध एवं औचित्यहीन पाकर वाहन राजसात के आदेश को अपास्त कर दिया गया।

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