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आदमगढ़ पहाड़ी पर 20 हजार वर्ष पुराना इतिहास जानने पहुंच रहे पर्यटक 

संवाददाता , नर्मदापुरम

स्कूली बच्चों को भी आदमगढ़ के इतिहास जानकारी हेतु ले जाया जाता है

नर्मदापुरम जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने को लेकर मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन लगातार इस दिशा में कार्य कर रहे हैं । नर्मदापुरम जिले में प्रसिद्ध आदमगढ़ पहाड़ी जिसमे शैलाश्रयों को देखने दूर दराज से पर्यटक पहुंच रहे हैं जो कि नर्मदापुरम मुख्यालय पर सड़क मार्ग से 4 किलोमीटर 10 से 15 मिनिट में , इटारसी रेलवे जंक्शन से 15 किलोमीटर 30 से 45 मिनिट में एवं हवाई मार्ग भोपाल से सड़क एवं रेलवे मार्ग से 100 किलोमीटर दूरी 2 घंटे में आदमगढ़ स्थित पहाडिय़ा तक पहुंचा जा सकता है आदमगढ़ पहाड़ी पर मानव जाति के समूह में रहने के प्रमाण मिले हैं। इतिहासकारों के अनुसार यहां के शैलचित्र 20 हजार साल पुराने हैं।वर्ष 2024 में आदमगढ़ स्थित चित्रित शैलाश्रयों की खोज के 104 वर्ष पूरे हो गए है। इनकी खोज का श्रेय मनोरंजन घोष को है जिन्होंने वर्ष 1920 में इनकी खोज की थी। यहां कई शैलाश्रय हैं जिनमें उत्तर पाषाण युग से लगाकर मध्यकाल तक के चित्र मिलते है। ये सफेद, गहरे लाल,हल्के गेरुआ और लाल के चित्र हैं। इन चित्रों के माध्यम से मानव जीवन के क्रियाकलापों, पशुचित्रण, युद्ध के दृश्य, शिकार को दर्शाया गया है। प्रमुख चित्रों में विशालकाय भैसा, वृषभ,हिरण, नृत्य करते धनुर्धर हैं। कुछ जिराफ जैसे मिलते जुलते चित्र भी हैं। 1960 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आरवी जोशी एवं एमडी खरे के मार्गदर्शन में पुरातात्विक उत्खनन करवाया था, जिसमें लाखों वर्ष प्राचीन आदि मानव के पाषाण उपकरण प्राप्त हुए थे। वर्तमान में यह स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, जबलपुर मंडल के अंतर्गत संरक्षित राष्ट्रीय महत्त्व कि पुरातात्विक स्थल घोषित किया है। इतिहासकारों के हिसाब से ये शैलचित्र 20 हजार वर्ष पुराने बताए जाते हैं। प्रागैतिहास में मनुष्य के रहने का पहला घर पहाडिय़ा रही हैं। इसलिए इन्हें शैलाश्रय कहा जाता है। उस समय भाषा का विकास नहीं हुआ था इसलिए मनुष्य अपनी भावनाओं को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित करता था। इन शैलचित्रों में मानव की दैनिक दिनचर्या जैसे शिकार, घुड़सवारी, नृत्य आदि से संबंधित चित्र है। पूरी आदमगढ़ पहाड़ी पर ये शैलचित्र हैं प्राकृतिक रंगों से बनाए गए हैं ये चित्र आदमगढ़ पहाड़ी मे लगभग 4 किमी क्षेत्र में 20 शैलाश्रय हैं। शैलाश्रयों में पशु जैसे वृषभ, गज, अश्व, सिंह, गाय, जिराफ, हिरण आदि योद्धा, मानवकृतियां, नर्तक, वादक तथा गजारोही, अश्वरोही एवं टोटीदार पात्रों का अंकन है। इतिहासकार द्वारा बताया गया है जी इन चित्रों को खनिज रंग जैसे हेमेटाइट, चूना, गेरू आदि में प्राकृतिक गोंद, पशु चर्बी के साथ पाषाण पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त पेड़ों के कोमल रेशों अथवा जानवरों के बालों से बनी कूची की सहायता से उकेरा गया है।

 

इन दिनों आदमगढ़ पहाड़ी पर पर्यटकों की आवाजाही बड़ी है इसी के चलते यहां कर्मचारियों के लिए नया भवन,पर्यटकों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था, बैठने के लिए कुर्सियां, सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे एवं आदमगढ़ पहाड़ी की इन दिनों चारों तरफ बाउंड्रीवाल बनाई जा रही है संभाग का पहला पुरातत्व पार्क बनना भी प्रस्तावित है। पार्क बनाने के लिए शासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को 7 एकड़ जमीन दी है। शैलचित्रों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। शैलचित्र देखने के अलावा यहां कुछ और पाइंट नहीं है। विभाग ने राज्य शासन से पहाड़िया के पास की 7 एकड़ जमीन पर पार्क बनना है। इसके पहले चरण में पूरी जमीन को फेंसिंग से संरक्षित की जाएगी। इसके बाद पार्क बनेगा। इसका पूरा प्लान बनेगा। जमीन पहाड़िया के पीछे राधास्वामी सत्संग व्यास परिसर के पीछे मिली है।

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