सुदर्शन टुडे समाचार जिला ब्यूरो चीफ रामेशवर लक्षणे बैतूल
आमला। प्रतिमाएं और स्मारक सम्मान की प्रतीक हैं। चौक-चौराहों और मुख्य स्थलों पर लगी किसी न किसी महापुरुष की प्रतिमाएं हमको उनके कार्यों और बलिदानों को याद कराती हैं। लेकिन अफसोस प्रतिमाओं के आस पास धूल देखकर तो शायद यहीं लगता है कि इन महापुरूर्षो ने कभी ऐसे समाज/व्यवस्था की कल्पना तक नहीं की होगी। दरअसल शहर में बहुत अधिक महापुरूर्षो की प्रतिमाएं और स्मारक नहीं है, जो है वह भी उपेक्षा का शिकार है। इन प्रतिमाओं की राष्ट्रीय त्योहारों के एक-दो दिन पहले या जयंती पर ही सूध ली जाती है और साफ-सफाई होती है। इसके बाद इन महापुरुषों और स्मारकों को सभी भूल जाते हैं। यहां तक कि प्रतिमाओं और स्मारक के आसपास समय पर साफ-सफाई भी नहीं की जाती है। सबसे खासबात यह है कि इन प्रतिमाओं और स्मारक के पास से जिम्मेदार अधिकारियों का भी आना-जाना होता है, लेकिन प्रतिमाओं की नियमित साफ-सफाई और व्यवस्था को लेकर न कोई आगे आया और न ही कोई योजना बनाई गई।
चंद प्रतिमाएं और स्मारक, उनकी भी सफाई नहीं – शहर में बहुतायत में महापुरूर्षो की प्रतिमाएं और स्मारक नहीं है। एक प्रतिमा संविधान निर्माता डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर की बस स्टैंड पोस्ट ऑफिस के सामने लगी है, तो दूसरी प्रतिमा वीर बिरसा मुण्डा की आम्बेडकर नेहरू पार्क के सामने बाजार के पास स्थापित है। शहीद स्मारक भी यहीं है, लेकिन इन प्रतिमाओं और स्मारकों की हालत और सफाई व्यवस्था किसी से छिपी नहीं है। यहां धूल-डस्ट के अलावा आसपास गंदगी रहती है। वीर स्मारक के पीछे खुद नगरपालिका वर्षो से कबाड़ जमा कर रही है।
राष्ट्रीय पर्व या जयंती पर आती है याद – न जाने कितने आंदोलनों की गवाह यह प्रतिमाएं और स्मारक साफ-सफाई के लिए तरस रही है। लेकिन इनकी याद केवल महापुरुषों की जयंती या विशेष दिवसों में आती है, उसी दिन साफ-सफाई होती है। इसके बाद इन्हें भूला दिया जाता है। जयंती के दिन भी माला पहनाकर फोटो खिंचवाने की होड़ लगी रहती है और सैकड़ों सामाजिक संगठन और पार्टियों के साथ ही इन महापुरुषों के नाम और विचारों का ढोल पीटते समाजसेवी लोगों को इस दुर्दशा पर जाने कब मलाल होगा।
देश और समाज के लिए सबकुछ किया समर्पित – देश की आन-बान और शान के रूप में महापुरुषों की प्रतिमाएं और स्मारक शहरों के मुख्य स्थलों पर स्थापित की गई हैं, लेकिन ये उपेक्षा का शिकार हो रहे है। शायद अपने प्रतिमाओं की दशा को देखकर समाज और देश की खातिर सब कुछ समर्पित करने वाले महापुरुषों की आत्मा भी यह सोचने को मजबूर हो जाए कि आखिर उन लोगों ने किस समाज/व्यवस्था की कल्पना को जेहन में रखकर लड़ाई लड़ी थी और इन प्रतिमाओं को गौरवान्वित होने की बजाय शर्मिंदगी महसूस होती है।
सामाजिक संगठनों ने भी साधी चुप्पी – राष्ट्रीय त्योहार या जयंती को धूमधाम से मनाने और महापुरूर्षो के बताये पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेने वाले सामाजिक संगठन भी इन प्रतिमाओं की सफाई व्यवस्था को लेकर चुप्पी साधे हुए है। यह जरूर है कि कुछ जागरूक नागरिक इन प्रतिमाओं और स्मारक के नियमित सफाई और सौंदर्यीकरण को लेकर आवाज उठाते है, लेकिन अब तक प्रतिमाओं के सौंदर्यीकरण और साफ-सफाई को लेकर कोई ठोस योजना पर काम नहीं हुआ। जिससे प्रतिमाएं उपेक्षा का शिकार होते जा रही है।
प्रतिमाओं के देखभाल के लिए यह हो काम –
(1) प्रतिमाओं और स्मारक के आसपास सुबह-शाम नियमित साफ-सफाई होनी चाहिए।
(2) प्रतिमाओं और चबुतरों का समय-समय पर रंगरोगन किया जाये।
(3) प्रतिमाओं और स्मारक के आसपास सौंदर्यीकरण के लिए ठोस योजना बने और शीघ्र पूरी जाये।
(4) जब तक प्रतिमाओं और स्मारक का सौंदर्यीकरण नहीं होता तब तक फूलों या रांगोली से सजावट बनाई जाये।
इनका कहना है –
सफाई हमेशा करवाते है। डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर की प्रतिमा बाजार स्थल के पास है। और वहाँ पर अभी पाईप लाइन का काम चालू है शायद इसलिये वैसे तो समय समय पर पानी से धुलाई और साफ सफाई न पा द्वारा की जाती है ,नीरज श्री वास्तव सी एम ओ नगरपालिका आमला।