सुदर्शन टुडे डिण्डोरी के सुबखार में पूर्व जिला अध्यक्ष भाजपा एव प्रदेश कार्यसमिति सदस्य नरेन्द्र सिह राजपूत के यहां चल रहे श्री नर्मदा पुराण कथा के चौथे दिन नर्मदा के किनारे लुमकेश्वर तीर्थ की कथा है बताते हुए पंडित मंगल मूर्ति शास्त्री कहा कि एक कालकृष्ट राक्षस था तपस्या कर रहा था तो पार्वती जी शंकर जी के साथ घूम कर गए और पार्वती जी ने उसको तपस्या करते हुए देखा तो भगवान शंकर से कहा प्रभु आपने उसको वरदान नहीं दिया। भगवान शंकर ने कहा कि जो तपस्या है सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के लिए है इसलिए इसको वरदान देना ठीक नहीं है। शंकर जी ने पार्वती जी को बहुत समझाया पर पार्वती जी नहीं मानी और बोली यदि आप इसको वरदान नहीं दोगे तो मैं प्राण त्याग दूंगी तो भगवान शंकर जी ने पार्वती जी के हठ को देखकर कहा कि मैं उसको वरदान दे देता हूं, उससे पूछे जाने पर कि जिसके ऊपर हाथ रखु वह जलकर राख हो जाए और शंकर जी ने कहा तथास्तु। राक्षस ने शंकर जी की तरफ हाथ बढ़ाया सोचा कि पहले इनको ही भष्म करता हूँ
भगवान फिर दक्षिण दिशा की तरफ पार्वती जी के साथ भागे और रास्ते मे नारद जी मिल गए और बोले आप विष्णु जी से बताना कि हम विपत्ति में पड़ गए नारद जी बोले कि मैं नहीं जाऊंगा वह छीर सागर में सो रहे हैं। शंकर जी के बार बार कहने पर नारद जी गए और लक्ष्मी जी के पास पहुंचे और बताया कि भगवान शंकर के पास ऐसी-ऐसी विपत्ति पड़ गई है। लक्ष्मी जी विष्णु जी का दाहिने हाथ का अंगूठा दबाने लगी और भगवान जग गए। और विष्णु जी बोले कि हम धन्य हो गए आपके दर्शन जो गए। नारदजी ने पूरी कथा बताएं और बोले कि कालकृष्ठ नामक राक्षस को शंकर जी ने वरदान दिए और वो उन्ही को भष्म करने उन्हें दौड़ा रहा है और प्रभु अपने प्राण बचा कर भाग रहे है। भगवान विष्णु ने कहा कि आप पीछे जाकर के छुप जाए, भगवान विष्णु ने बसंत ऋतु की रचना कर दी और कोयल जागने लगी और मादक वातावरण हो गया। कालकृष्ठ माया की तरफ दौड़ पड़ा और भगवान शंकर लुमकेश्वर तीर्थ में जाकर के छुपे थे। कालकृष्ठ राक्षस के सामने भगवान विष्णु ने एक सुंदर कन्या रूप बना लिया और कालकृष्ठ जैसे देखा और पूछा कि कहां रहती हो। तुम मुझे भी अच्छी लग रही हो। तुम मेरे से विवाह कर लो राक्षस बोला शादी नहीं करोगे तो मैं प्राण त्याग दूंगा। कन्या बोली ठीक है तेरी इच्छा है तो मैं विवाह कर लूंगी लेकिन हमारे यहां एक नियम है विवाह के समय लड़की के साथ लड़का को नाचना पड़ता है। जैसे मैं नाचूंगी वैसा तुम भी नाचना। दोनों नाचने लगे और उसने अपने हाथ खुद सिर के ऊपर रखा और भस्म हो गया। विष्णु जी बोले दुष्टों को अब ऐसा वरदान मत दीजिए। शास्त्री जी ने आगे ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक बातें बताते हुए कहा कि भोजन बिना प्रकृति से नही बना सकते है। प्रकृति का संतुलन बना रहना चाहिए। भूख मौत से बड़ी है रात को मिटाओ सुबह फिर खड़ी है। आपके अंदर ईर्ष्या रखेंगे तो प्रहार, लौटकर आएगी। आपके अंदर घृणा, प्रेम, साधुता, समरसता आदि भाव है तो वैसे ही वापस मिलेंगे। बाल हठ, राज हठ में सबसे ज्यादा त्रिया हठ होता है। साधु चलते-फिरते तीरथ हैं इनके दर्शन से ही जीवन कृतार्थ हो जाता है। सूचना और ज्ञान में अंतर है। ज्ञान वो है जो मुक्त करे, जानकारी व्यक्ति को बांधती है। अहंकार बनाती है। सत्य का बोध तब होगा जब आपको ज्ञान होगा। यस और रस दोनों जगह नहीं रहते। ईर्ष्या करने वाले लोग प्रसन्न नहीं रहते और ईर्ष्या आदमी की शत्रु है। धन किसी को विश्राम नहीं दे सकता इसलिए धन के पीछे ज्यादा नहीं भागना चाहिए। व्यक्ति को समुद्र जैसा गंभीर रहना चाहिए।राम हमारी आत्मा है। उन्होंने कहा कि हर आदमी के अंदर भगवान है तो क्यो जघन्य और घृणित अपराध कर रहा है कार्यक्रम मे डिण्डौरी सहित जिले भर के लोग नर्मदा पुराण का श्रवण कर अमृत पान कर रहे