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DAMOH

मात्र सात दिन की आयु मे भगवान श्रीकृष्ण ने किया था पूतना का बध – आचार्य पंडित रवि शास्त्री महाराज

जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह

दमोह- स्थानीय जबलपुर नाका स्थित धर्मदास चौहान के निवास पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिवस मे कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री महाराज ने पूतना वध की कथा सुनाते हुए कहा कि जब भगवान श्रीकृष्ण मात्र सात दिन के थे तब कंस के द्वारा भेजी हुई पूतना नाम की राक्षसी उनको मारने के लिए आई तब भगवान ने पूतना का वध करके उसका उद्धार कियाभगवान कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद ही अत्याचारी कंस उनके पीछे पड़  गया इस तरह जन्म के ठीक सात दिन के भीतर भगवान को मारने के लिए कंस की ओर से भेजी गई राक्षसी पूतना आई थी. पूतना की योजना थी कि वह अपने स्तनों पर विष लगाकर जाएगी और धोखे से नन्हें बालक को पिला देगी. इस तरह कंस के रास्ते का कांटा मिट जाएगा. लेकिन अपनी इसी योजना के चलते पूतना मारी गई. नवजात शिशु बने भगवान ने दूध पीने के बहाने उसके प्राण पी लिए और पूतना मारी गई।
पूतना भले ही राक्षसी थी, लेकिन दूध पिलाने के कारण उसे श्रीकृष्ण की माता का दर्जा प्राप्त है. ब्रज के क्षेत्र में आज भी पूतना एक रक्षिका की तरह पूजी जाती हैं, जो कि छोटे-छोटे बच्चों की ऊपरी हवा,  बुरे सपने और रात में चौंककर उठने और अचानक जाग जाने की समस्याओं का निदान करती हैं. गोकुल में स्थित पूतना वध मंदिर में लोग अपने नवजातों को लेकर माथा टेकने जाते हैं.  पंडित रवि शास्त्री ने कहा कि गर्ग संहिता में पूतना के जन्म का रहस्य भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा हुआ है. पूतना पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री थी जो एक राजकन्या थी. पिछले जन्म में पूतना का नाम रत्नबाला था. एक दिन राजा बलि के यहां वामन भगवान पधारे. भगवान वामन की सुंदर और मनमोहक छवि देखकर रत्नबाला के मन में ममता जाग गई. वह मन ही मन सोचने लगी कि मेरा भी ऐसा ही पुत्र हो ताकि वह उसे हृदय से लगाकर दुग्धपान कराती बहुत दुलार करतीं. भगवान ने उसकी मन की इच्छा को जान लिया और तथास्तु कहा. इसके बाद भगवान ने राजा बलि का अहंकार दूर करने के लिए तीन पग में सम्पूर्ण भूमि नाप दी. राजा समझ गए और अपनी गलती का उन्हें अहसास हो गया. राजा ने वामनदेव से क्षमा मांगी. लेकिन इस घटना को रत्नबाला ने देखा तो उसे ये छल लगा. उसे प्रतीत हुआ कि उसके पिता का घोर अपमान हुआ है. इससे रत्नबाला बुरी तरह से क्रोधित हो उठी. उसने मन ही मन भगवान को बुरा कहना आरंभ कर दिया उसने कहा कि अगर ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं इसे विष दे देती. भगवान ने उसके इस भाव को भी जानकर तथास्तु कह दिया रत्नबाला अगले जन्म में पूतना बनी. पूतना कंस की सबसे विश्वासपात्र थी और उसे भाई मानती थी. वह कंस की धाय भी रही थी. कंस ने अष्टमी की तिथि के दिन जन्म लेने वाले सभी बच्चों को मारने का आदेश दिया. आदेश मिलने के बाद पूतना गोकूल पहुंच गई. पूतना भेष बदलने में माहिर थी. उसने सुंदर स्त्री का भेष धारण किया और भगवान कृष्ण को दुग्धपान करने लगी, भगवान ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया. इस प्रकार से भगवान के हाथों पूतना को वध हुआ और जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर दिया. वहीं पूतना की दुग्ध और विष पिलाने की इच्छा को भी पूर्ण किया।

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