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जिस भूमि पर सतसंग होता है उस भूमि पर भगवान भी ठहर जाते है – कृष्णा मां

सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश श्रीवास्तव) //

नगर में इमली चौराहा पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस कथा वाचक कृष्णा माँ के द्वारा उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि जिस भूमि पर संतो का सतसंग है वहां भगवान स्वयं उपस्थित रहते है। आज के भौतिक वादी युग में व्यक्ति जमीन से दूर होता जा रहा है। इसलिए अनेक प्रकार की शारीरिक तकलीफ भोग रहा है। व्यक्ति को भजन और भोजन जमीन पर बैठकर करना चाहिए। एक बार भगवान शंकर और पार्वती जी किसी रास्ते से जा रहे थे उसी समय भगवान शिव जमीन पर लोट लगाने लगे। पार्वती जी से रहा नही गया उन्होनें पूछा ऐसा क्यों कर रहे हो प्रभु तो भगवान शिव ने कहा कि इस जमीन पर संतो का समागम होता है यह बहुत ही पावन धरा है। इसलिए मनुष्य को सत्संग से जुड़ना चाहिए । जहां सतसंग होता है वहाँ भगवान आने से नहीं रुकते।

व्यक्ति को जमीन से जुड़े रहने चाहिए।

भगवान की भक्ति करते रहना चाहिए। भगवान की भक्ति से आनन्द मिलता है और आनन्द का सम्बन्ध आत्मा से होता। आनन्द का सम्बंध मन से और सुख का सम्बंध शरीर से होता है।भगवान भी मनुष्य को उतना ही दुख देते है जितना वह सहन कर ले।प्रभु की भक्ति से पहाड़ के समान दुख और कष्ट तिनके के समान हो जाता है। आज के समय मे व्यक्ति गुब्बारे के तरह होता जा रहा है कि जरा सी तारीफ में फूल जाता है और सम्मान नहीं मिला तो कष्ट होने लगता है। गुस्सा हो जाते है। इस लिए भगवान की भक्ति करने वाले किसी सम्मान का मोहताज नहीं होते। व्यक्ति ने अपने आसपास का माहौल ही खराब कर दिया प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है। आज प्रदूषण इतना अधिक हो गया कि आज हमारे चारो तरफ वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण है यह सब मनुष्य द्वारा प्रदत्त है। सतयुग में मनुष्य की आवाज 21 कोस सुनाई देती थी। त्रेता युग मे 14 कोस तक, द्वापर में 7 कोस कलयुग के प्रारम्भ 1 कोस आवाज सुनाई देती थी। आज हमारे आसपास इतना प्रदूषण हो गया कि हमे आसपास की आवाज भी सुनाई नहीं देती। जो हम प्रकृति को देंगे वह हमें वापस मिलेगा।परिणाम एक न एक दिन सामने जरूर आता है।अच्छे कर्म समाज में मजबूत बनाता है। अच्छा हो या बुरा कर्म एक न एक दिन सामने जरूर आता है। तीन चीज कभी छिपती नहीं सूर्य की रोशनी,चंद्रमा की चाँदनी और व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्म यह जरूर सामने आते है और यह प्रबंध कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ते।
संतो की वाणी और सतसंग से प्रारब्ध भी सुधर जाता है। मनुष्य को संतो की भाषा पर भरोसा करना चाहिए।

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