Sudarshan Today
बैतूल

कलेक्टर साहब सच को सामने लाइये ये बिकाऊ डॉक्टर पर अभी तक पुराने केस मैं भी जांच नही हुई है अब क्या करते है आप देखते है

बैतूल सुदर्शन टुडे ब्यूरो चीफ राहुल नागले

जिला अस्पताल में डिलीवरी के दौरान एक प्रसूता की मौत हो जाने और डॉक्टर द्वारा ₹5000 रुपए की डिमांड की गई थी 2 दिनों से अस्पताल में भर्ती महिला के पति ने डॉक्टर पर आरोप लगाया है कि 2 दिनों से उनकी पत्नी जिला अस्पताल मैं प्रस्ताव वेदनाथ जेल रही थी लेकिन महिला चिकित्सालय दादा 5000 की मांग की जा रही थी इसी के चलते उनकी पत्नी के इलाज शुरू नहीं किया जब 5000 की व्यवस्था कर डॉक्टर को दिए तब इलाज शुरू हुआ है इलाज में देरी होने के कारण उक्त महिला की जान चली गई वैसे जिला अस्पताल में मरीज की जान जाना कोई नई बात नहीं रह गई है। यहां पहले भी कई जान जा चुकी है। हम आज चर्चा इस बात की करेंगे कि डॉक्टरों के हौसले इस कदर आखिर बढ़े क्यों हैं? इसकी सीधी सी वजह है कि वे कितना भी बड़ा जुर्म कर लें, उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती। जिला अस्पताल में इस तरह इलाज में लापरवाही से मौत के पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं। मौत के तुरंत बाद खूब हंगामा भी मचता है। शिकायत भी होती है। शिकायत के बाद जांच की रस्म अदायगी भी होती है। लेकिन, उसके बाद नतीजा जीरो बटे सन्नाटा ही रहता आया है। आप तो यह देखना है कलेक्टर 48 घंटे का समय दिया है उसमें कितनी जांच करते हैं और दूसरी डॉक्टर पर कब कार्रवाई करते हैं क्योंकि इससे पहले भी डॉक्टरों पर पैसे लेने कई आरोप और वीडियो सामने आए पर अभी तक प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई सूत्रों की माने तो अभी तक हो चुके दर्जनों मामलों में आज तक किसी पर एफआईआर, बर्खास्त करना तो दूर किसी का निलंबन तक नहीं हुआ।दूसरी ओर अन्य विभागों में छोटी-छोटी गलती पर कर्मचारी और अधिकारी न केवल तत्काल निलंबित कर दिए जाते हैं बल्कि कई बार बर्खास्त तक कर दिए जाते हैं। अब यदि लापरवाह डॉक्टरों पर इस कदर मेहरबानी होगी तो उनके हौसले तो बुलंद होंगे ही। वे ना केवल खुलेआम रिश्वत मांगेंगे बल्कि ऐसी जानलेवा लापरवाही भी करेंगे ही। सवाल उठता है कि आखिर कौन बचाता है उन्हें? क्यों नहीं होती किसी की जान पर बन आने वाली लापरवाही करने वालों को? यदि सड़क हादसे में भी किसी की जान चली जाती है तो ड्राइवर पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज होता है। फिर यहां जानबूझकर किसी को मौत के मुंह में पहुंचाने वालों को साफ-साफ अभयदान आखिर कैसे मिल जाता है। पूर्व में कई मामले तो ऐसे भी आए हैं कि बेहद मामूली बीमारी केइलाज के लिए आए व्यक्ति तक की जान यहां नहीं बच पाई।यह देख और सुनकर कि ऐसे मामले होने पर अस्पताल के जिम्मेदार पूरी गलती मरीज के परिजनों पर ही थोपने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने मरीज को लाने में देरी कर दी। जब जिम्मेदारों का यह रवैया रहता हो तो फिर यह कैसे संभव है कि जांच करने वाले उन्हीं के मातहत किसी डॉक्टर को जांच में दोषी ठहरा देंगे। यही कारण है कि हर बार डॉक्टर को क्लीन चिट मिल जाती है और उन्हें साफ बचा लिया जाता है।

अधिकारियों का रवैया केवल चलताऊ

वहीं सूत्रों की माने तो प्रशासनिक अधिकारियों का रवैया भी केवल चलताऊ होता है।अब तो प्रशासन ने जिला अस्पताल का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं की टोह लेना पूरी तरह बंद ही कर दिया है। ऐसा कोई मामला होता है और परिजन शिकायत करते हैं तो केवल आक्रोश शांत करने भर को जांच बिठा दी जाती है। उसके बाद क्या होता है, किसी को कोई लेना देना नहीं। बेहतर यह होता कि ऐसे मामलों की जांच में किसी जानकार प्रशासनिक अधिकारी को भी शामिल किया जाता और जांच पूरी ईमानदारी से कराई जाती। शुद्ध विभागीय लोगों से ईमानदार जांच की उम्मीद कैसे की का सकती है। आज जो जांच कर रहे हैं, कल में उनकी जांच भी तो हो सकती है हालांकि जिला चिकित्सालय में डॉक्टरों की कमी है तो क्या किसी को ईकिसी की जान लेने का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता।

डॉक्टर को भरपूर वेतन और सुविधा दे रही सरकार उसके बावजूद रिश्वत की मांग

हर डॉक्टर को भरपूर वेतन और सुविधा सरकार दे रही है फिर अस्पताल में आने वालों से इलाज के लिए रिश्वत की मांग क्यों? यदि वे वेतन पूरे अधिकार से ले रहे हैं तो अपनी ड्यूटी भी ईमानदारी से करें। यदि उनकी लापरवाही से किसी की जान जाती है तो उन पर नियमानुसार कार्रवाई भी हो। जब तक कार्रवाई का खौफ नहीं होगा तब तक जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं में भी सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती। वैसे भी एक-दो डॉक्टर निलंबित भी हो जाए तो कोई जिला अस्पताल में ताला ही नहीं लटकाना पड़ेगा

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