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जबलपुर

नर्मदा, जंगल और शिक्षा का व्यवसायीकरण बंद हो : विवेक अवस्थी

जबलपुर संभागीय ब्यूरो चीफ राजकुमार यादव के साथ संवादाता शिवानी बेन की रिपोर्ट

जबलपुर नर्मदा नदी पर बने बरगी बांध से विस्थापित गांव चुटका (मंडला) के भूकप संवेदी क्षेत्र में 1400 मेगावाट का परमाणु बिजलीघर प्रस्तावित है। वर्ष 1997 में नर्मदा किनारे के इस क्षेत्र में 6.4 रिक्टर स्केल का विनाशकारी भूकंप आ चुका है। परमाणु संयंत्र से निकलने वाली वाष्प और संयंत्र को ठंता करने के लिए उपयोग होने वाली पानी में रेडियोधर्मी तिकिरण युक्त जहरीला तत्व शामिल हो जाता है। चुटका परमाणु संयंत्र में उपयोग होने वाला बरगी जलाशय का पानी उसी में छोड़ा जाएगा जिससे विकिरण युक्त इस जल का दुष्प्रभाव जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बडवानी सहित नर्मदा किनारे बसे अनेक शहर गांव वासियों पड़ेगा क्योंकि वहां की जलापूर्ति नर्मदा नर्मदा नदी से होती ह चुटका सयंत्र से निकलने वाले पानी का तापमान समुद्र के तापनाग से 5 डिग्री अधिक होगा जो नर्मदा में मौजूद जलीय जीव जतु, जैव विविधता, मत्स्य उत्पादन आदि को खत्म कर सकता है। जबकी नर्मदा को जीवंत रखने के लिए यह आवश्यक है। अगर सयंत्र में कोई हादसा हुआ तो मंडला, डिंडौरी, शिवनी, बालाघाट और जबलपुर जिले के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

जिस प्रकार नर्मदा का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है उसी प्रकार जंगल हमारा प्राण वायु है। देश में सबसे अधिक वन क्षेत्र मध्यप्रदेश में है 194589 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में से 51919 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र ऐसा है जहां आदिवासी एवं अन्य परम्परागत वन निवासी रहते हैं मध्यप्रदेश की सरकार ने इन वन क्षेत्रों में से 37 लाख हेक्टेयर बिगडे दन को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप (पीपीपी) मोड पर देने का निर्णन किया है। इस बिगडे वन में स्थानीय समुदाय के अधिकारों का दस्तावेजिकरण किया जाना है। प्रदेश के 6520 वन खंड में प्रस्तावित लगभग 30 लाख हेक्टेयर भूमि के संबंध में बन व्यवस्थापन की कार्यवाही वर्ष 1988 से लंबित है। यह संरक्षित जंगल स्थानीय समुदाय के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन है जो जंगल में बसे हैं और जिसका इस्तेमाल आदिवासी समुदाय निस्तार जरूरतों के लिए करते हैं। जबकी वन अधिकार कानून 2006 के प्रावधानों के अनुसार वन भूमि पर काबिज लोगों को व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार देने की पुरा हुआ है। अत कार्बन व्यापार के जरिए (तनीकरण कारक) जनाराष्ट्रीय बाजार से कमर कनाना ही एक मात्र उद्देश्य निजी कम्पनियों का होगा अंत में स्थानीय समुदाय निस्तारी जंगलो से बेदखल हो जाएगा।

प्रदेश में 1 लाख 22 हजार 786 सरकारी स्कूल है जिसमें से 20 जिलों के 19 आदिवासी खंड की 5750 स्कूलों को बंद करने का निर्देश दिया जा चुका है1 2020 में आई शिक्षा नीति में शिक्षा को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त कर दिया गया है। इसका सीधा मतलब है कि अब शिक्षा का बाजारीकरण होगा। वर्तमान सरकार ने 63 जिलों में पतंजली विधापीठ को सरकारी स्कूलों की बागडोर पीपीपी मोड पर देकर शिक्षा के निजीकरण की शुरुआत कर दी है। प्रदेश में 9500 सरकारी स्कूलों को सीएम राइज योजना के तहत सर्व सुविधायुक्त बनाने का निर्णय लिया गया है। सीएम राइज स्कूल 15 किलोमीटर के दायरे में गौजूद सरकारी स्कूलों को खत्म कर देगा। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल एक बार फिर गांव से बहुत दूर हो जाएगा जिसका सबसे ज्यादा असर गांव की लड़कियों पर पड़ेगा।

उपरोक्त सभी महत्वपूर्ण मुद्दों को सरकार के समक्ष रखने की कोशिश में आप सबका सहयोग अपेक्षित है। इस अवसर पर राधेश्याम चौबे, नन्हे लाल धुर्वे पूर्व विधायक, कमला प्रसाद पटेल, राजेश सोनी ,गुड्डू नबी ,राकेश दुबे ,जितेंद्र यादव, वरुण शर्मा, अनिल पांडे, राजा पांडे ,योगेंद्र यादव,आदि उपस्थित रहे

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