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बड़वाह

राजकीय मछली महाशीर के लिए बनाया देश का प्रजनन केंद्र

साफ पानी के शेर को बचाने का प्रयास

संवादाता आनंद राठौर

बडवाह।  जैव विविधता संरक्षण में बड़वाह वन विभाग ने देश में सबसे अनूठा सफल प्रयोग किया है। यहां वन एवं वन्य प्राणी संरक्षण के साथ वन विभाग ने नर्मदा की निर्मलता की सूचक मध्य प्रदेश की राजकीय मछली महाशीर का कृत्रिम प्रजनन केंद्र स्थापित किया है। करीब 6 साल से इसके संवर्धन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

पूरे देश में एकमात्र बड़वाह वन मंडल है जो महाशीर के कृत्रिम प्रजनन एवं संवर्धन का एक शोध केंद्र बन चूका है। बड़वाह में जयंती माता मंदिर के पास स्थित महाशीर संरक्षण केंद्र देखने के लिए देश सहित विदेश से फिशरीज साइंटिस्ट एवं रिसर्च टीम यहां आ चुकी है।

महाशीर के 4,000 बच्चों का संवर्धन इस कार्य के लिए बड़वाह वन मंडल को जैव विविधता बोर्ड से पुरस्कार और पीसीसी से प्रशस्ति पत्र भी मिल चुका है। वर्तमान में इस संरक्षण केंद्र में कृत्रिम प्रजनन से करीब 4 हजार बच्चों का संवर्धन किया जा रहा है। जिसके बाद इन बच्चों को वन क्षेत्र की ही स्वच्छ नदियों में छोड़ देंगे।

इस तरह हुई थी केंद्र की शुरुआत वर्षों से महाशीर संरक्षण के प्रयास में जुटी सेज विवि की एक्वाकल्चर विभाग एचओडी श्रीपर्णा सक्सेना वर्ष 2015 में तत्कालीन सीसीएफ पंकज श्रीवास्तव से मिली। वन विभाग होने के बावजूद सीसीएफ श्रीवास्तव को मत्स्य पालन, संरक्षण एवं संवर्धन के लिए तैयार किया। कम खर्च में स्थानीय संसाधनों से वन क्षेत्र में प्राकृतिक आवास के रूप में तालाब और शोधार्थियों की सहायता से कृत्रिम प्रजनन के प्रयास किए।दो वर्ष बाद कृत्रिम प्रजनन में सफलता मिली। जैव विविधता बोर्ड ने इसे प्रोजेक्ट की तरह मानकर दो बार फंडिंग भी की। 6 वर्ष से लगातार यह केंद्र महाशीर संरक्षण एवं संवर्धन के प्रयासों में विभिन्न राज्यों एवं विभागों के लिए रोल मॉडल है।

0.01 प्रतिशत ही बची महाशीर

महाशीर का वैज्ञानिक नाम टोर-टोर और निमाड़ में प्रचलित नाम बाड़स है। इसे साफ पानी का शेर भी कहते हैं। कभी नर्मदा में 26 प्रतिशत तक पाई जाने वाली महाशीर वर्तमान में 0.01 प्रतिशत रह गई है। इसलिए महाशीर का संरक्षण जरूरी है, ताकि जैव विविधता तंत्र को बनाए रखा जा सके।

सरकार की सहायता की जरूरत डॉ. सक्सेना ने कहा कि इस प्रयास को बनाए रखने के लिए सरकार की ओर से अधिक सहायता की जरूरत विभाग को है। देश में महाशीर पर शोध करने वाले राज्यों और शोधार्थियों के लिए के लिए यह केंद्र इंस्टीट्यूशन बन सकता है। विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी इस प्रजाति को बचाया जा सकता है।

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