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एक आदर्श वृद्धाश्रम : अपने घावों को भरने का मरहम

खुद की खोज में निकल

तू किस लिए हताश है,

तू चल, तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

समय को भी तलाश है।। डीसी सागर

आशीष नामदेव

शहडोल।भारत में परिवार सशक्‍त मानवीय मूल्‍यों एवं आदर्शों पर आश्रित होता है। वृद्धाश्रम का अस्तित्‍व समाज में तभी आया है जब परिवार में मानवीय मूल्‍यों का अधोपतन या विघटन हुआ है। इस गतिविधि को परिवार में मानवीय मूल्‍यों का स्‍वार्स्‍थ सिद्धि की भेंट चढ़ जाना कहा जा सकता है। परिवार में मानवीय मूल्‍यों के नि:शक्‍त हो जाने के कारण वृद्धाश्रम में वृद्ध महिलाएं और वृद्ध पुरुष निराश्रित, असहाय और लाचारी में जीवन जीने को विवश हो जाते हैं। उनके जीवन में उनके परिवार के सदस्‍यों द्वारा दुर्व्‍यवहार के साथ-साथ संवेदनहीनता एवं अमानवीयता से बेघर कर दिया जाता है।

 

उदाहरण के लिए शहडोल के एक वृद्धाश्रम में पहुंचकर, सम्‍मानित वृद्धजनों के दर्शन करने का अवसर मिला। सभी वृद्धजन निराश, दिल से दु:खी और अपने अतीत की खुशियों को फिर से वृद्धाश्रम के नए वातावरण में तलाशने की कोशिश करते हुए नजर आये। इनमें किसी की बहू ने सास के साथ दुर्व्‍यवहार किया और घर से निकाल दिया। कहीं बेटे ने कर्तव्‍य को तिलांजलि देकर अपने पिता को घर से बेघर किया। अनेक वृद्ध महिलाएं इस हद तक अवसादग्रस्‍त थीं कि उन्‍होंने अपनी सारी सम्‍पत्ति को दान कर दिया या जल में प्रवाहित कर दिया।

 

अत: वृद्धाश्रम इस प्रकार होना चाहिए कि उसमें निवासरत वृद्धजन अपने अंत:करण में परमानंद की खोज करने में सफल हो सकें। इस प्रकार का सकारात्‍मक वातावरण तभी संभव है जब वृद्धाश्रम में वे सभी मानवीय मूल्‍य जो एक परिवार को सृजित करते हैं, पुष्पित करते हैं और समृद्ध बनाते हैं उनका पुनर्जागरण हो। एक आदर्श और समृद्धशील वृद्धाश्रम की परिकल्‍पना निम्‍नानुसार है –

 

साफ-सफाई :बेडशीट, गद्दे, मच्‍छरदानी आदि साफ-सुथरे होने चाहिए। कम्‍बल, रजाई, तकिया, गद्दे आदि को आवश्‍यकता अनुसार समय-समय पर सुखाना चाहिए। पीने का पानी साफ उपलब्‍ध होना चाहिए।

 

पौष्टिक आहार :समय पर पौष्टिक आहार आयु के अनुकूल देना चाहिए।भोजन की गुणवत्‍ता उच्‍च स्‍तर का होना चाहिए।

 

स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल : समय-समय पर मेडिकल चेकअप करना चाहिए और आवश्‍यक दवाईंया देना चाहिए।

 

योग, ध्‍यान, शारीरिक व्‍यायाम, खेलकूद एवं मनोरंजक गतिविधियां : स्‍वास्‍थ्‍य के अनुरूप प्रतिदिन हल्‍के शारीरिक व्‍यायाम, योग, ध्‍यान एवं मनोरंजक गतिविधियां होना चाहिए। मनोरंजन के संसाधन जैसे- बड़े स्‍क्रीन की टीवी, म्‍यूजिक सिस्‍टम उपलब्‍ध होने चाहिए। इंडोर गेम जैसे – कैरम, चेस आदि खेल होने चाहिए। समय-समय पर मनोरंजक गतिविधियां होना चाहिए। परिसर में झूला लगा होना चाहिए।

 

परिसर का सौंदर्यीकरण एवं स्‍वच्‍छता : परिसर की साफ-सफाई नियमित रूप से होनी चाहिए। परिसर में हरियाली होनी चाहिए। परिसर में फलदार वृक्ष होने चाहिए। वॉक करने के लिए सुरक्षित ट्रैक होना चाहिए, जिसके आसपास फूल लगे हों।

 

रचनात्‍मक कार्य : 15 दिन में एक बार धार्मिक, दर्शनीय स्‍थल भ्रमण पर ले जाना चाहिए। रुचिपूर्ण सरल रचनात्‍मक कार्यों जैसे – चित्रकला, काव्‍य रचना, रुई बाती, अगरबत्‍ती निर्माण आदि में लगाना चाहिए।

 

 

वृद्धाश्रम जहां-जहां भी स्थित हों उनमें अनंत खुशियों का संसार हो जिससे निवासरत सभी वृद्धजन अपने बेटा, बेटी, बहू या अन्‍य परिजनों को क्षमा करते हुए उनसे जुड़ी हुई सभी यादों को विलुप्‍त कर सकें और अपनी प्रशन्‍नता के जनक स्‍वयं बन सकें। वृद्धाश्रम में निवासरत सभी वृद्धजन जिन्‍हें मैं दिल से युवा मानता हूँ उनकी हौसला-अफजाई के लिए चंद पंक्तियां इस प्रकार हैं:-

 

तू खुद की खोज में निकल

तू किस लिए हताश है,

तू चल, तेरे वजूद की

समय को भी तलाश है

समय को भी तलाश है।।

– डी. सी. सागर, भा.पु.से.

अतिरिक्‍त पुलिस महानिदेशक,

शहडोल ज़ोन, मध्‍य प्रदेश।

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