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धर्म और राष्ट्र की रक्षा सुख सुविधा त्यागे बिना नहीं कर सकते – स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य

भगवान से जुड़ा संबंध स्थाई और शाश्वत होता है राम का चरित्र धर्म, यज्ञ और संस्कृति की रक्षा करना सिखाता है

सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश कुमार)।

संकल्प से महल खड़ा हो जाता है। एक तपस्वी संत के संकल्प और आप सबके सहयोग से ही आज नौलखी में इतना बड़ा विराट महाकुंभ देखने मिल रहा है। गंज बासौदा (वासुदेव नगर) की यह भूमि वास्तव में धर्म भूमि के साथ-साथ तपोभूमि भी है। जहां हजारों किलोमीटर दूर बड़े-बड़े तीर्थ क्षेत्रों से यज्ञ के दर्शन करने चलकर आ रहे तपस्वी साधु, संत विद्वान इस भूमि को अपने सानिध्य से पवित्र कर रहे हैं। धर्म और राष्ट्र की रक्षा बिना सुख सुविधाओं के त्याग के नहीं की जा सकती। सीमा पर बैठे हमारे जवान जिस तरह सुख सुविधाओं को त्याग कर भारत माता की रक्षा कर रहे हैं तो उसी तरह आप सब भी यहां धर्म की रक्षा, यज्ञ की रक्षा के लिए तन मन और धन के साथ साथ सुख सुविधाओं का त्याग कर सहयोग कर रहे हैं,यही सनातन धर्म की ताकत है। यज्ञशाला को घास, बांस से बना मंडप मत समझना और ना ही देखना, यह साक्षात् भगवान नारायण का ही एक रूप है। यह बात अयोध्या धाम से पधारे जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने नौलखी आश्रम पर विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के उपलक्ष्य में चल रही संगीतमय श्रीमद् बाल्मीकि रामायण के चतुर्थ दिवस में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही।
महाराजश्री ने कहा कि जीवन में सद्गुणों की अपेक्षा दुर्गुण बढ़ जाए तो समझना जीवन संकट में आ गया। इसलिए जीवन को संकट में डालने से अच्छा है सद्गुणों का,सत् पुरुषों का संग कर लो। राम जी ने अपने जीवन में आपस में लोगों को जोड़ने के लिए तीन यात्राएं एक अयोध्या, दूसरी मिथिला और तीसरी लंका। राम जी का जन्म पुत्रप्तेष्ठि और विवाह धनुष यज्ञ से ही संपन्न हुआ इसलिए राम जी ने यज्ञ कर्म को महत्व दिया। विश्वामित्र जी के यज्ञ की रक्षा के लिए सुकुमार राम लक्ष्मण को अपने साथ ले गए जहां भगवान ने 6 महीने दिन और रात यज्ञ के द्वार पर खड़े होकर राक्षसों से यज्ञ की रक्षा की तब विश्वामित्र जी निर्भीक होकर यज्ञ संपन्न कर पाए। कथा के दौरान महाराजश्री ने धनुष यज्ञ के प्रसंग और मिथिला आगमन पर विस्तार से प्रकाश डाला।

धनुष यज्ञ अहंकार का मर्दन और विनम्रता का अनुसरण

राम जी के जीवन में सहजता, सरलता और विनम्रता है। मिथिला में धनुष यज्ञ के दौरान भगवान श्री राम ने विनम्रता का अनुसरण कर धनुष को तोड़कर अहंकार का मर्दन किया। विनम्रता से व्यक्ति में पात्रता आती है। विनम्रता मानव का सबसे बहुमूल्य श्रृंगार है। कोई भी कार्य कठोरता से नहीं विनम्रता से करवाया जा सकता है। उग्रता से बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। आप कितने भी पढ़े-लिखे हैं, लेकिन आपके स्वभाव में विनम्रता नहीं है तो आप कितना भी शिक्षित हो सब व्यर्थ है। अतः समाज में विनम्र व्यक्ति ही सफल एवं शीर्ष तक पहुँचते हैं और संसार से जाने के बाद भी याद किए जाते हैं। वास्तव में विनम्रता मानव को महान बनाती है।

कथा व्यास का शाल श्रीफल से किया सम्मान

कथा के प्रारंभ में नौलखी खालसा के श्रीमहंत राम मनोहर दास जी महाराज, मुख्य यजमान डॉ. राकेश मरखेड़कर एवं यज्ञ के एक दिवसीय यजमान समाजसेवी कांति भाई शाह ने व्यास पीठ का पूजन संपन्न कराया। भगवान द्वारकाधीश और बाबा रामदेव मंदिर शमशाबाद के पीठाधीश्वर पंडित गौरी शंकर महाराज एवं कथावाचक डॉ. अभिषेक कृष्ण शास्त्री एवं जिला पंचायत अध्यक्ष गीता कैलाश रघुवंशी ने कथा व्यास स्वामी रत्नेश जी का शाल श्रीफल से सम्मान किया। कथा के पहले चित्रकूट से आए वयोवृद्ध संत कागभुसुंडि जी महाराज द्वारा भी रामायण के प्रसंगों पर काव्यमय में अपनी बात रखी। कथा के पश्चात आरती में पूर्व कानून मंत्री वीरसिंह रघुवंशी, विश्व हिंदू परिषद के पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश तिवारी, समाजसेवी राजेश माथुर, घनश्याम अग्रवाल, नागेंद्र उपाध्याय, अरविंद दुबे, पंचायत सचिव संघ की ओर से अनंत सिंह विश्वकर्मा, देवी सिंह रघुवंशी सहित अनेक धर्मालु मौजूद थे।

देव प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा जलाधिवास से प्रारंभ

प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान प्रतिष्ठित होने वाली देव प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा का शुभारंभ रविवार से प्रारंभ हो गया है। बनारस से आए प्रधान प्रतिष्ठाचार्य मथुरा प्रसाद, उप यज्ञाचार्य पं केशव शास्त्री सहित अन्य आचार्यों द्वारा वेद मंत्रों के बीच देव प्रतिमाओं का जलाधिवास कराया गया। सोमवार को फल अन्न और धान में प्रतिमाओं का दिवस कराया जाएगा। शनिवार देर रात जमकर हुई बारिश के बाद भी नौलखी आश्रम पर रविवार को कथा सुनने, रामलीला देखने और यज्ञ की परिक्रमा के लिए नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र के श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ पड़ा।

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