जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह
दमोह- ग्राम अहरोरा में वृंदावन पटैल गोरेलाल पटेल के निवास पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिवस मे कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री महाराज ने कहा कि धेनुकासुर नामक दैत्य जिसका तालवन में निवास था बलराम जी ने उसका बध किया था यह बात उस समय की है जब राजा बलि का पुत्र साहसिक देवताओं को युद्ध में परास्त कर गन्धमादन पर्वत की ओर प्रस्थित हुआ था. साहसिक के साथ उसकी विशाल सेना चल रही थी. जब वह गंधमादन पर्वत की ओर प्रस्थान कर रहा था तो मार्ग में उस समय स्वर्ग की अप्सरा तिलोत्तमा उधर से गुजर रही थी. अप्सरा और साहसिक ने एक-दुसरे को देखा. और दोनों ही एक-दुसरे के प्रति आकर्षित हो गये.स्वर्ग की अप्सरा तिलोत्तमा ने अपने रूप सौन्दर्य से साहसिक को मोहित कर दिया था. और वे दोनों एकांत में यथेच्छ ही विहार करने लगे थे. उसी समय उसी स्थान पर ऋषि दुर्वासा भगवान श्री कृष्ण के चरणों का चिंतन कर रहे थे. तिलोत्तमा और साहसिक दोनों ही उस समय कामवश होने के कारण चेतनाशून्य थे. और इसी कारण वे अत्यंत निकट बैठे मुनि को नहीं देख पाए थे. जब उन दोनों का शोर सुना तो सहसा ही मुनि का ध्यान भंग हो गया. और ऋषि दुर्वासा ने उन दोनों की कुत्सित चेष्टाएँ देखकर क्रोधित हो गये और ऋषि ने कहा ऋषि दुर्वासा बोले हे गदहे के समान निर्लज नराधम. उठ तू भक्त बलि का पुत्र होकर पशु की भांति आचरण कर रहा है. पशुओं के अलावा सभी जीव यह कर्म करते समय लज्जा करते हैं. विशेष रुप से गधे लज्जा से विहीन होते हैं अतः अब तू गधे की योनि में जा. हे तिलोत्तमे तू भी उठ. एक अप्सरा होने के बाद भी दैत्य के प्रति ऐसी आसक्ति रखती हो; तो अब तू भी दानव योनि में जन्म ग्रहण कर. इतना वचन कहकर ऋषि दुर्वासा चुप हो गये. तत्पश्चात वे दोनों ही मुनि से लज्जित और भयभीत होकर मुनि की स्तुति करने लगे. और मुनि के चरण पकड़ने लगा। साहसिक ने कहा हे मुने श्रेष्ठ! आप ही ब्रह्मा, विष्णु और साक्षात् महेश्वर हैं. हे भगवन्! मेरे द्वारा किए गये अपराध को क्षमा करें. मुझ पर कृपा करें. यह कहकर साहसिक उनके चरण पकड़ कर फूट-फूट कर रोने लगा. तिलोत्तमा ने कहा हे ऋषि हे द्विज श्रेष्ठ मुझ पर कृपा करें किसी कामुक प्राणी में चेतना और लज्जा नहीं रहती है. हे मुनि ऐसा कर्म कामवश होकर हुआ है. यह कहकर तिलोत्तमा भी रोने लगी.साहसिक और तिलोत्तमा दोनों की व्याकुलता और उनके आंसू देखकर दुर्वासा मुनि को दया आ गयी मुनि दुर्वासा बोले हे दैत्य तू भगवान विष्णु के भक्त बलि का पुत्र है. और अपने पिता का स्वभाव पुत्र में अवश्य रहता है. जिस प्रकार कालिया के सिर पर अंकित भगवान श्री कृष्ण के चरण का चिन्ह अन्य सभी सांपो के मस्तक पर रहता है. हे वत्स तू एक बार गधे की योनि में जन्म लेकर मोक्ष को प्राप्त होगा. तू वृन्दावन के तालवन में जा. और वहाँ भगवान श्री बलराम के हाथो से तेरे प्राणों का परित्याग करके तूझे शीघ्र ही मोक्ष की प्राप्त होगी. हे तिलोत्तमे ! तू दैत्य वाणासुर की पुत्री होगी; और फिर भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का आलिंगन पाकर पवित्र हो जायगी. इतना कहकर ऋषि दुर्वासा चुप हो गये. तत्पश्चात् साहसिक और तिलोत्तमा भी दुर्वासा मुनि को प्रणाम करके अपने अपने स्थान पर चले गये. और इस प्रकार साहसिक ने गर्दभ् अर्थात गधे योनि में जन्म लिया और भगवान श्री बलराम के हाथो मृत्यु पाकर मोक्ष को प्राप्त हुआ और अगले जन्म में धेनुकासुर हुआ।