जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह
दमोह- ग्राम अहरोरा में वृंदावन पटैल के निवास पर आज से दिव्य भव्य कलश शोभायात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा प्रारम्भ हुई कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री जी महाराज ने कहा कि भक्ति ज्ञान वैराग्य सिखा कर त्याग तपस्या के द्वारा मोक्ष प्रदान करने वाली श्रीमद् भागवत कथा है द्वापर युग समाप्त होने के बाद, जब कलयुग का प्रारम्भ हुआ तो पृथ्वी पर चारो तरफ का वातावरण अशांत हो गया था। उस समय नारद ऋषि पृथ्वी का हाल जानने के लिए विचरने लगे। उन्होंने देखा की दृ बेचारे जीव पृथ्वी पर केवल पेट भरने के लिए जी रहे है। वे सब असत्य भाषा, मंदबुद्धि, भाग्यहीन, आलसी, और उपदव्री हो गए है। जो साधु संत कहे जाते है वो पाखंडी हो गए है। इसलिए जो वास्तव में साधु संत है उन्हें कंदराओं और हिमालय में छुपना पड़ा है, लोग उन्हें भी हेय की दृष्टि से देखने लगे है। इस तरह नारद ऋषि कलयुग के कई दोष देखते देखते दुखी हो रहे थे। और वे विचरते विचरते उसी यमुना तट पर पहुंचे जहाँ कभी श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ बाल लीला किया करते थे। वहां उन्होंने एक बहुत ही बड़ा आश्चर्य देखा। वहां एक स्त्री बड़े खिन्न मन से बैठी हुयी है। उसके पास दो वृद्ध पुरुष अचेत अवस्था में पड़े जोर जोर से साँस ले रहे है। वह तरुणी स्त्री उनकी सेवा करते करते उन पुरुषो को कभी चेतना देना का प्रयास करती तो कभी उनके आगे रोने लगती। वह अपने रक्षक को दशो दिशाओं में बार बार ढूढ़ रही थी। उसके चारो ओर सेकड़ो स्त्रियाँ पंखा झूला रहा थी। मै यह कौतुहल देखकर उसके पास चला गया, तो वह स्त्री मुझे देखते ही उठ खड़ी हुयी। और व्याकुल होकर बोली स्त्री बोली महात्मन ! जरा रुकिए, और मेरी चिंता को दूर कीजिये। आपका दर्शन मनुष्य को दुर्लभ है, आज आपके दर्शन से कुछ शांति मिली है। आपके वचन सुनकर और भी शांति मिलेगी। नारद जी कहते है, ये देवी आप कौन है, ये दोनों पुरुष कौन है और ये सभी स्त्रियाँ कौन है तुम हमें विस्तार से अपने दुःख का कारण कहो स्त्री ने कहा मेरा नाम भक्ति है। ये ज्ञान और वैराग्य नाम के मेरे पुत्र है। समय के प्रभाव से इनका ये हाल है। और ये देवियाँ सभी पवित्र नदियाँ है। जो मेरी सेवा कर रही है। लेकिन फिर भी मुझे सुख शांति नहीं है। क्युकी घोर कलयुग के प्रभाव से पाखंडियो ने मुझे अंग भंग कर दिया है। इसी कारण में निर्बल और निस्तेज हो गयी हूँ और इसी कारण ये हाल मेरे पुत्रो का हुआ है। वृन्दावन ने मुझे फिर से एक स्त्री का रूप दिया है, लेकिन मेरे पुत्र अभी भी बूढ़े है। इसलिए कोई स्थान पर जाना चाहती हूँ जो इनको भी तेज दे सके। क्योकी होना, तो ये चाहिए था की माता बूढी हो और पुत्र तरुण पर यहाँ में तरुण हो गयी और पुत्र वृद्ध है, जो मेरे दुःख का कारण है। तब नारद ऋषि बोले साध्वी मेने ज्ञान दृष्टि से इस कलयुग में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का हाल जान लिया है। लेकिन तुम्हे विषाद नहीं करना चाहिए। श्री हरी तुम्हारा कल्याण करेंगे। में जानता हूँ तुम्हारे पुत्रो को इस कलयुग में कोई नहीं पूछता। इसलिए इनका बुढ़ापा नहीं छूट रहा है। लेकिन इस वृन्दावन में इनको कुछ आत्मसुख मिल रहा है इसलिए ये सोते से जान पड़ते है। देवर्षि आप धन्य है मेरा बड़ा सौभाग्य था की आपके दर्शन हुए। संसार में साधुओं का दर्शन बड़े भाग्य से होता है। अब मुझे कुछ शांति मिली है। आप सर्वमंगलमय ब्रह्मा जी के पुत्र है। में आपको नमस्कार करती।