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DAMOH

इस कलियुग में श्रीमद् भागवत कथा हर रोग की रामबाण औषधि है – आचार्य पंडित रवि शास्त्री

जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह

दमोह- स्थानीय जबलपुर नाका पर आज से दिव्य भव्य श्रीमद् भागवत कथा प्रारम्भ हुई सर्वप्रथम गणेश पूजन के साथ कलश शोभायात्रा यात्रा निकाली गई कथा के मुख्य यजमान श्रीमती कान्ति चाैहान धर्मदास चाैहान ने भागवत जी का पूजन किया कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री जी महाराज ने कहा कि इस कलियुग में श्रीमद् भागवत कथा हर रोग की रामबाण आैषधि है एवं समस्त प्राणियों के मोक्ष का साधन है इससे बढ़कर कलयुग में मोक्ष का दूसरा साधन नहीं है कलयुग में भगवान की कथा और भगवान का नाम ही प्राणी को भगवान के चरणों में लेकर के जाता है कथा सुनने वाले पुरुषो के नियम भी सुनिये विष्णुभक्त की दीक्षा से रहित पुरुष कथा श्रवण का अधिकारी नहीं है

जो पुरुष नियम से कथा सुने, उसे ब्रह्मचर्यसे रहना, भूमिपर सोना और नित्यप्रति कथा समाप्त होने पर पत्तल में भोजन करना चाहिये

दाल, मधु, तेल, गरिष्ठ अन्न, भावदूषित पदार्थ और बासी अन्न, इनका उसे सर्वदा ही त्याग करना चाहिये

काम, क्रोध, मद, मान, मत्सर, लोभ, दम्भ, मोह और द्वेष को तो अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिये

उस पुरुष काे वेद, वैष्णव, ब्राह्मण, गुरु, गोसेवक तथा स्त्री, राजा, और अन्य महापुरुषों की निंदा से बचना चाहिए।नियम से कथा सुनने वाले व्यक्ति को हमेशा सत्य, शौंच, दया, मौन, सरलता, विनय और उदारता का वर्ताव करना चाहिए। और मुमुक्षु भी यह कथा श्रवण करें सब यदि विधिवत्‌ कथा सुनें तो इन्हें अक्षय फल की प्राप्ति होती है यह अत्युत्तम दिव्य कथा करोड़ों यज्ञों का फल देने वाली है  जब सप्ताहयज्ञ समाप्त हो जाय, तब श्रोताओं को अत्यन्त भक्तिपूर्वक पाेथी और वक्ता की पूजा करनी चाहिये।

फिर वक्ता श्रोताओं को प्रसाद, तुलसी और प्रसादी मालाएँ दे तथा सब लोग मृदंग और झाँझ की मनोहर ध्वनि से सुन्दर कीर्तन करें।

जय-जयकार, नमस्कार और शंख ध्वनि का घोष कराये, कथा पश्चात् श्रोता विरक्त हो तो कर्म की शान्तिके लिये दूसरे दिन गीतापाठ करे; गृहस्थ हो तो हवन करें। उस हवन में दशमस्कथ का एक-एक श्लोक पढ़कर विधिपूर्वक खीर, मधु, घृत, तिल और अन्नादि सामग्रियोंसे आहृति दे।या फिर एकाग्र चित्त से गायत्री महामंत्र का जाप करे, क्याेकि गायत्री महामंत्र भी श्रीमदभागवत कथा रूप है।

व्रत की पूर्ति के लिये गौदान और  श्रोमद्भागवत की पोथी रखकर उसकी आबाहनादि विविध उपचारोंसे पूजा करे और फिर जितेन्द्रिय आचार्य को उसका वस्त्र, आभूषण एवं गन्धादिसे पूजकर दक्षिणा के सहित समर्पण कर दे।  श्रीमद्धागवत से भोग और मोक्ष दोनों ही हाथ लग जाते हैं।सूतजी कहते हैं–शौनकजी ! यों कहकर महामुनि सनकादि ने एक सप्ताह तक विधिपूर्वक इस सर्व-पापनाशिनी, परम पवित्र तथा भोग और मोक्ष प्रदान करनेबाली भागवतकथाका प्रवचन किया। सब प्राणियों ने नियमपूर्वक इसे श्रवण किया। इसके पश्चात्‌ उन्होंने विधिपूर्वक भगवान्‌ पुरुषोत्तमकी स्तुति की कथा के अत्त में ज्ञान-वैराग्य और भक्ति को बड़ी पुष्टि मिली और वे तीनो एकदम तरुण होकर सब जीवो का चित्त अपनी और आकर्षित करने लगे।शौनक जी ने पूछा – सूत जी, शुकदेव जी राजा परीक्षित को, गोकर्ण ने धुंधकारी को, और सनकादि ऋषि ने नारद को किस किस समय यह ग्रन्थ सुनाया सूत जी ने कहा – द्वापर युग में जब भगवान् कृष्ण अपने धाम बैकुंठ को वापस चले गए तो फिर उसके 30 साल बाद पृथ्वी पर कलयुग का आगमन हुआ। कलयुग ने राजा परीक्षित से अपने लिए जगह मांगी थी, फिर राजा परीक्षित कलयुग के वशीभूत होकर एक पाप कर देते है, जिससे उन्हें श्राप मिलता है। उस श्राप से मुक्ति के लिए श्री शुकदेव महाराज ने पहली बार भाद्रपद मास की शुक्ला नवमी को राजा परीक्षित को श्रीमद भागवत कथा सुनाना आरम्भ किया था।इसके बाद राजा परीक्षित के कथा सुनने के बाद, अर्थात कलयुग के 200 वर्ष बीत जाने के बाद आषाढ़ मास की शुक्ला नवमी पर गोकर्ण जी ने ये कथा अपने भाई धुंधकारी को सुनाई थी। जो अपने बुरे कर्मो से प्रेत बन गया था।   इसके बाद कलयुग के 30 वर्ष और बीत जाने पर जब श्रीनारद तीनो लोको का भ्रमण करते हुए पृथ्वी पर यमुना तट से निकले तो उन्होंने भक्ति को उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य के साथ अचेत अवस्था में यमुना तट पर देखा। फिर उनके उद्धार के लिए कार्तिक शुक्ल नवमी को सनकादि ऋषि ने नारद और भक्ति के पुत्रो को यमुना के तट पर यह कथा सुनाई थी।

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