संवाददाता रानू जावेद खान
जवेरा दमोह
ग्राम बनवार बिबेकानंद परिसर मे चल रही संगीतमय भागवत कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। कथवाचक पंडित उमाशंकर शस्त्री ने गुरू की महत्वता बताते हुए कहा कि गुरू हमारे जीवन में अनुपम हैं, क्योंकि गुरु के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं, लेकिन हमेशा इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरु की वाणी का श्रवण करें। उन्होंने कहा कि गुरू चरणों की सेवा का अवसर मिलना परम सौभाग्य होता है, जो अनमोल है।
मुझे भी ठाकुरजी की कृपा से गुरुसेवा का दायित्व मिला था, लेकिन उस समय सेवाभाव का ज्ञान नहीं था और अब जब ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है तो गुरु सेवा का अवसर नहीं है। इसलिए गुरु सेवा को समर्पित भाव से करना और उनका आदेश का पालन सदा ही करना चाहिए। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों में वर्णित अवतारों के बारे में बताया कि कहीं पर 24 तो कहीं पर दस अवतार की कथा बताई जाती है लेकिन अवतारों की संख्या की गणना संभव नहीं है, क्योंकि जितने भक्त होते हैं उतने ही अवतार होते हैं। प्रभु के अवतार प्रयोजन पर भी
कहा गया कि यहां किसी राक्षस, दानव और अधर्मी का वध करने के लिए ही अवतरित नहीं होते हैं बल्कि अपने भक्तजनों पर कृपा बरसाने के आते हैं। रावण, कंस को मारने के लिए भगवान को अवतार लेने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि घर द्वार छोड़कर वन में चले जाने ही वैराग्य नहीं होता बल्कि अपने अंतःकरण की शुद्धता इसमें नितांत आवश्यक है। हमारे जीवन में विचारों का आदान प्रदान रोम-रोम से होता है इसके लिए सिर्फ नाक, कान और आखें ही नहीं होती हैं। संत महात्मा की दृष्टि को दिव्य बताते हुए कहा गया कि हम उतना ही देख सकते हैं जितनी दूर तक हमारी दृष्टि जाती है, लेकिन संत जन अनंत तक देखने की दृष्टि रखते हैं।