बखतगढ़। मिथ्यात्व के दल दल को हटाएंगे तभी हम सम्यक दर्शन पाएंगे। सम्यक रहता है तो सत्य का स्वरूप सामने रहता है। वह कैसी भी अवस्था में सुख-दुख, अनुकूल-प्रतिकूल अवस्था में जीव शांत प्रशांत रहकर चिंतन कर सकता है। सम्यक हो तो कर्मों से छुटकारा मिलता है। सम्यक नहीं है तो कर्म तो भोगने पड़ते हैं। दृष्टि एवं सोच सही है तो कर्म छूट सकते हैं। सही सोच बनाने के लिए तत्व ज्ञान की आवश्यकता होगी। ये प्रेरणादाई विचार व्यसन मुक्ति प्रणेता आचार्यश्री रामलालजी म. सा. “रामेेश” के आज्ञानुवर्ती शासनदीपक पूज्यश्री प्रकाशमुनिजी म. सा. ने बखतगढ़ के श्री वर्धमान स्थानक भवन में धर्मसभा में फरमाए। मुनिश्रीजी ने आगे फरमाया कि प्रभु की देशना श्रवण करते हैं तो वह काम तो आती ही है। लेकिन जो सम्यक दृष्टि होता है उसे देशना प्रमुख रूप से काम आती है। जीव को सदैव सजग रहने की जरूरत है। संस्कार मनुष्य भव के अलावा अगले भव में भी साथ रहते हैं। देशना श्रवण करते हैं तो वह कभी निरर्थक नहीं जाता है। जिस प्रकार अंधे को आंख की जरूरत होती है, उसी प्रकार हमें जिनवाणी सुनने की जरूरत है। आज नहीं तो कल जागृति निश्चित आएगी। बस पुरुषार्थ करना पड़ेगा। हम जागृत होंगे तभी हमारा उद्धार होगा।क्रोध प्रीति का नाश करता है शासनदीपकश्री किशोरमुनिजी म. सा. ने फरमाया कि क्रोध अंदर से ही आता है। कुछ निमित्त बनकर क्रोध आकर प्रकट हो जाता है। अंदर क्रोध नहीं है तो किसी की भी ताकत नहीं कि वह हमें क्रोध में ला देवे। व्यक्ति क्रोध तो कर लेता है किंतु बाद में पश्चाताप आता है। यह क्रोध प्रीति का नाश करता है। जीव को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध को यदि वश में कर लिया तो जीवन ऊपर उठ जाता है, अर्थात मोक्ष पथ गामी बन सकता है। अमृतवाणी पीएंगे तो ज्ञानी बनेंगे और ज्ञानी से वितरागी बनकर प्रभु महावीर के पास जा सकते हैं। अपने जीवन के जोहरी स्वयं है, क्या पता फिर यह मौका मिले ना मिले। इसलिए स्वयं को पहचाने और मोक्ष मंजिल की ओर की कदम बढ़ाने के लिए पुरुषार्थ करे। मुनि वृंद बखतगढ़ के श्री वर्धमान स्थानक भवन पर विराजित है। मुनि वृंद के दर्शन, वंदन, मांगलिक श्रवण के साथ प्रातः 7 बजे आज्ञा, प्रातः 9 बजे व्याख्यान, दोपहर 2 बजे ज्ञान चर्चा आदि का श्रावक श्राविकाएं लाभ ले रहे है। धर्मसभा का संचालन दिलीप दरड़ा ने किया।