सुदर्शन टुडे न्यूज़ ब्यूरो चीफ खरगोन
दूसरे दिन भीकनगांव ने देखी श्रीराम की वनयात्रा में निषादराज की भेंट
खरगोन /संस्कृति विभाग द्वारा तैयार रामकथा साहित्य में वर्णित वनवासी चरित्रों पर आधारित “वनवासी लीलाओं” का मंचन दूसरे दिन मंगलवार को भी हुआ। पहले दिन सोमवार को भक्तिमती शबरी और मंगलवार को निषादराज गुह्य की प्रस्तुतियां आयोजित हुई। प्रस्तुतियों की श्रृंखला में शासकीय बालक माध्यमिक विद्यालय भीकनगंव में इंदौर के श्री रवि जोशी एवं उनके साथियों द्वारा निषादराज गुह्य की प्रस्तुति दी गई। प्रस्तुति का आलेख श्री योगेश त्रिपाठी एवं संगीत संयोजन श्री मिलिन्द त्रिवेदी द्वारा किया गया है।
लीला की कथाएं- वनवासी लीला नाट्य निषादराज गुह्य की शुरूआत में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की। भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं। आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है। केवट की प्रेम वाणी सुन, आज्ञा पाकर गंगाजल से केवट पांव पखारते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि हे प्रभु हम एक जात के हैं मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर से पार कराते हैं इसलिए उतरवाई नहीं लूंगा। लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं। सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया।