चंचलमन
मेरे मन के शांत पड़े गलियारों में
कुछ उथल-पुथल हो रही है मेरे विचारों में
वो रहता है मेरे हर एक भावो में
अब चलने से ना डरती हूं अंगारों में
मेरे मन के शांत पड़े गलियारो मे
हंसना रोना भी साथ-साथ अब होता है
मिलने को बेचैन सदा दिल रहता है
कहीं भी हो पर पास हमेशा रहता है
मन मेरा हर पल उसकी बातें करता है
मेरे मन के शांत पड़े गलियारों में
कोयल की कूक नहीं मुझे अब भाती है
पक्षी के कलरव से गुस्सा आती है
मन की उड़ान जाने कहां ले जाती है
मेरे मन के शांत बड़े गलियारों में
घर में रहकर दूर देश ले जाता है
अभी यहां तो कभी वहां भटकाता है
मन मेरा दुनिया भर की सैर कराता है
एक जगह स्थिर नहीं रह पाता है
मेरे मन के शांत पड़े गलियारों में
सीमा त्रिपाठी लालगंज प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश