सुदर्शन टुडे मुकेश श्रीवास्तव ब्यूरो चीफ सतना –जीवन में सुख दुख तो प्रतिदिन आते ही रहते हैं। इनमें से स्थाई तो कुछ भी नहीं है। “सुख आता है, चला जाता है। फिर दुख आता है, वह भी चला जाता है। न तो सुख सदा रहता है, और न ही दुख।” रवींद्र सिंह( मंजू सर )मैहर की कलम कहती है कि जब जीवन में सुख आता है, तो व्यक्ति सोचता है, कि “जीवन बहुत अच्छा है। मेरे जीवन में सुख सदा बना ही रहे।” परंतु वह अस्थाई होने से कुछ ही समय में चला जाता है, फिर दुख आ जाता है। “जब दुख आता है, तब व्यक्ति को जीवन बहुत खराब लगता है।” और वह ऐसा सोचता है कि “हे भगवान! यह दुख मेरे जीवन से कब हटेगा? कब मेरे जीवन में सुख वापस आएगा?”जीवन में यदि दुख कभी कुछ लंबे समय तक टिक जाए, तब व्यक्ति ऐसा भी सोचता है, “हे भगवान! पता नहीं यह दुख मेरे जीवन से हटेगा भी या नहीं?” ऐसा संशय व्यक्ति को हो जाता है। तब वह मानसिक रूप से और अधिक दुखी है। रवींद्र सिंह (मंजू सर )मैहर की कलम कहती है कि “भौतिक रूप से जो दुख जीवन में आया है, उतना तो भोगना पड़ ही रहा है। परंतु मानसिक चिंतन को यदि आप ठीक रखें, तो मानसिक स्तर पर दुख को बढ़ाने से आप बच सकते हैं।”अपने सोचने का ढंग ठीक रखें। दुख आने पर ऐसा सोचें, “जैसे सुख चला गया, वैसे ही यह दुख भी चला जाएगा. जब सुख मेरे जीवन में स्थाई नहीं रहा, तो यह दुख भी नहीं रहेगा। कुछ समय बाद यह भी हट जाएगा।” यदि आप इतना सोचना सीख जाएं, तो आप बहुत सा मानसिक दुख बढ़ाने से बच जाएंगे, जिसका कारण आप स्वयं हैं। “और जो भौतिक रूप से दुख आया है, उसके निवारण का उपाय भी पूरे उत्साह से करेंगे। फिर आपके परिश्रम करने से वह दुख भी कुछ समय में आपके जीवन से हट जाएगा। और फिर सुख आ जाएगा।””बस, इस प्रकार से सोचने तथा करने से आप जीवन में आने वाले अनेक मानसिक दुखों को जीत सकते हैं, और आनन्द से अपना जीवन जी सकते हैं।” आप सभी को नमन।मैहर वाली शारदे माता रानी सदा अपना आशीर्वाद बनाये रखे। जय माता दी।*
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