देवराज चौहान सुदर्शन टुडे
राजगढ़। जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोरपीपली गांव भले ही यह छोटा गांव है, लेकिन यहां पर स्थापित किया शीतकालीन बजरंग बली की प्रतिमा और चमत्कारिक बावड़ी जिसने इस क्षेत्र को अपने आप प्रसिद्ध कर रखा है।
हनुमान जयंती के अवसर पर हम विभिन्न बजरंगबली के मंदिरों की इतिहास से जुड़ी हुई कहानियां लेकर आ रहे है। इसी क्रम में मोरपीपली गांव में स्थित सिद्ध मोरपीपली बालाजी की प्रतिमा कि यदि बात करें तो यह मुख्य सड़क से काफी अंदर और छोटे से गांव में स्थापित है, लेकिन बता दें कि यहां जो भी अपनी मुराद लेकर जाता है वह पूरी होती है। यही कारण है कि यहां आए दिन भंडारों का आयोजन होता रहता है। इस मंदिर की स्थापना रियासतकालीन समय में राजगढ़ के तत्कालीन राजा के माध्यम से कराई गई थी क्योंकि राजगढ़ से गुराडिया जाने के लिए यही एकमात्र रास्ता था जो ससुराल हुआ राजमहल के मध्य का स्थान होने के कारण यहां विश्राम स्थल के रूप में इस बावड़ी का निर्माण हुआ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी। दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं भक्तमोर पीपली में स्थापित बजरंग बली की प्रतिमा की पूजन करने के लिए आसपास के लोग मंगलवार शनिवार को तो बड़ी संख्या में पहुंचते ही हैं। लेकिन दूर दूर से भी लोग यहां बजरंगबली के दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मुराद मांगते हैं, जैसे ही मुराद पूरी होती है वह यहां भंडारा कराते हैं। लगातार यहां भंडारे की संख्या बढ़ती ही जा रही है, ऐसे में अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल मंदिर पर आने वाले कितने लोगों की मुराद पूरी होती है। राजा नवल सिंह ने यह प्रतिमा एक चबूतरे पर स्थापित की थी, लेकिन अब यहां भव्य मंदिर बन चुका है।
राजा नवल सिंह द्वारा की गई थी स्थापना।
राजगढ़ के राजा नवल सिंह का ससुराल करेड़ी के पास स्थित गुराडिया गांव में था, ऐसे में वह इसी रास्ते से होकर गुजरते थे, लेकिन नियमित पूजा पाठ करने वाले राजा नवल सिंह रास्ते में अपनी सेना के साथ जब जाते थे तो कोई मंदिर नहीं था। साथ ही पथरीली जमीन होने के कारण पानी की व्यवस्थाएं भी नहीं थी।ऐसे में उन्होंने बजरंगबली की प्रतिमा की स्थापना मोरपीपली में की और पास में ही बावड़ी का निर्माण कराया।
बाबा की कृपा से बावड़ी में रहता है हमेशा पानी।
बजरंगबली का कुछ ऐसा आशीर्वाद है कि बावड़ी भले ही ज्यादा गहरी न हो और इसकी गहराई मात्र 60 फीट की है, जबकि बावड़ी की लंबाई जो है वह 90 फीट की है और चौड़ाई 60 फीट बनाई गई, लेकिन साल के 12 महीने इस बावड़ी में पानी रहता है। यहां रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि कभी भी इस बावड़ी का पानी खत्म नहीं होता। चाहे कितनी गर्मी पड़े। जहां इस पानी से सूखे कंठ की प्यास बुझाई जाती है वहीं सिंचाई के लिए भी ग्रामीण किसान इस पानी का उपयोग करते हैं।