सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश कुमार)।
जो किसी को पीड़ा दे वह जीवन में कभी शांति नहीं पा सकता। फिर चाहे रावण हो या कोई और। रावण ने अन्याय, अत्याचार से सबको कष्ट दिया लेकिन शांति राम के हाथों से ही मिल पाई। यह बात नौलखी आश्रम पर चल रहे विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के उपलक्ष्य में नगर में पहली बार आयोजित हो रही वाल्मीकि रामायण के कथा व्यास जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य महाराज अयोध्या ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही।कथा के द्वितीय दिवस महाराजश्री ने कहा कि इस दुनिया में राम राज्य से बड़ा कोई राज्य नहीं है। राम जी ने अपने राज्य का संचालन लोक उपासना के रूप में किया। लोक उपासना के लिए राम जी ने अपनी प्राण प्रिय सीता का भी त्याग कर दिया। सत्ता में बैठे लोगों में त्याग के साथ लोक उपासना की भावना आ जाए तो समझ लेना रामराज आ गया है। इक्क्षवाहु वंश की वाणी गन्ने की भांति मीठी है। इसलिए राम जी का नाम मीठा है। बिना राम के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सुख, दुख, मिलने में, बिछुड़ने में राम से शुरुआत होती है। जो राम की प्राप्ति कर दे वह रामायण है। कथा उसी को कहते हैं जो हृदय में ईश्वर को बैठा दे। जो ब्रह्म को हृदय में बैठा दे वही कथा है। कथा में बैठने से ज्यादा, कथा आपके भीतर हृदय में बैठ जाए यह जरूरी है। जिसकी शत्रु भी प्रशंसा करें राम ऐसे हैं। रामायण केवल राम का ही रूप नहीं है बल्कि मां सीता का भी रूप है। मां जानकी की आराधना है। वाल्मीकि रामायण वेदावतार हैं पहले वेद आए, उसके बाद बाल्मीकि रामायण की रचना हुई। गरजते बादलों के बीच बरसते पानी में भी ना रूकी राम की भक्ति, जमकर नाचे श्रोता अचानक मौसम खराब होने से पानी और हवा के कारण मेला स्थल पर कुछ समय के लिए अव्यवस्था हो गई लेकिन कथा पंडाल में मग्न होकर कथा सुन रहे श्रोता बरसते पानी में भी पूरे समय कथा का आनंद लेते रहे और गरजते बादलों के बीच बरसते पानी में भी महाराजश्री द्वारा गाए जा रहे राम जी के मधुर भजनों में जमकर नाचे। कथा के दौरान राम जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। संतों सहित श्रोताओं ने एक दूसरे को राम जन्म के मंगल गीत गाकर बधाई दी।अरणी मंथन कर वेद मंत्रों से प्रकट अग्नि से हवन प्रारंभ नौलखी आश्रम पर प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में आयोजित हो रहे सीताराम महायज्ञ की शुक्रवार को यज्ञशाला में अरणी मंथन के द्वारा वेद मंत्रों के बीच वेदियों में अग्नि स्थापन की गई। मंडप पूजन के बाद यजमानों ने बनारस से आए प्रधान यज्ञाचार्य मथुरा प्रसाद सहित अन्य आचार्यों के मार्गदर्शन में नवग्रहों, श्री सुक्त, पुरुष सुक्त की आहुतियां वेदियों में छोड़ी गईं। यज्ञशाला में प्रतिदिन यजमानों के द्वारा 1 लाख 50 हजार आहुतियां वेदियों में छोड़ी जा रही हैं।