सुदर्शन टुडे जबलपुर सम्भागीय ब्यूरो चीफ राजकुमार यादव के साथ संवाददाता शिवानी बेन की रिपोर्ट
जबलपुर. भाजपा का गढ़ बन चुके जबलपुर में बदलाव की बयार नजर आने लगी है. 2018
के विधानसभा चुनाव में शहर की
चार में से तीन सीट पर कांग्रेस की
जीत के बाद यह चर्चा होने लगी थी कि जबलपुर की जनता अब
भाजपा से दूरी बना रही है. नगर निगम चुनाव की सुगबुगाहट होते
ही राज्यसभा सांसद विवेक कृष्ण
तन्खा नगर कांग्रेस के अध्यक्ष
जगत बहादुर सिंह अन्नू के लिए
लाबिंग शुरू कर दी थी. उन्होंने
पार्टी हाईकमान से मिले भरोसे
के बाद अन्नू के लिए जीत का समीकरण बनाना शुरू कर दिया
था. उन्होंने तीनों पार्टी विधायकों
लखन घनघौरिया, तरूण भनोत
और विनय सक्सेना को अन्नू के पक्ष में एकजुट किया. यही वजह थी कि जबलपुर विधिवत रूप से
महापौर पद के लिए अन्नू के नाम
की घोषणा हुई तो किसी ने विरोध
नहीं किया. राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा की पहल पर शहर
के कई गैर राजनैतिक और बुद्धि
जीवी लोगों ने चुनाव के दौरान कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया.
जिसका नतीजा यह हुआ कि जिन वार्डों में कांग्रेस कमजोर थी
वहां भी कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी को अच्छे वोट मिले.बहरेहाल अट्ठारह साल बाद जबलपुर नगर निगम में कांग्रेस का कब्जा हो गया है. इससे पहले
2004 तक विश्वनाथ दुबे कांग्रेस के महापौर रहे. नगर सत्ता में बदलाव के बाद ना केवल जबलपुर बल्कि महाकौशल की
सियासत में बदलाव आना तय
है. अन्नू के महापौर बनने से राज्यसभा सांसद विवेक कृष्ण तन्खा का महाकौशल की राजनीति में दबदबा बढ़ेगा. इसके
साथ ही कांग्रेस हाईकमान की नजर में भी उनका रूतबा और भरोसा बढ़ना स्वभाविक है. अब यह भी सभ्भव है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में तीसरी बार
विवेक तन्खा चुनाव मैदान में नजर आयें. ताकि भाजपा सांसद
राकेश सिंह से दो बार मिली पराज्य का बदला लिया जा सके.
राजनीति में उतार चढ़ाव होते रहते हैं. लेकिन जबलपुर में महापौर पद पर अन्नू की ताजपोशी किसी चमत्कार से कम नहीं है.