सुदर्शन टुडे संवाददाता छत्रपाल मरावी
कहते हैं लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो बल्कि उस घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम लगी है ठीक उसी तरह महंगाई का स्वाद सियासत से मत पूछो बल्कि उस जनता से पूछो जिनके लिए दाल रोटी खाना मुश्किल हो गया है और उसकी जेब महंगाई से जल रही है देश में बढ़ती महंगाई से अब लोगों को पसीने छुटने लगे हैं और परेशान होकर लोग अब सरकार पर ठीकरा फोड़ रहे है, लेकिन सरकार है कि लोगों की आए तक नहीं सुन पा रही है क्या महंगाई जनता के जीवन का हिस्सा बन चुकी है या फिर सरकार मानती है कि लोगों की आमदनी बढ़ गई और वह महंगाई का भोज उठा सकती है या जनता महंगाई के साथ जीना सीख लिया है ? या केंद्र व प्रदेश सरकार कुछ सुनना पसंद नहीं कर रही है ।
वर्तमान में पेट्रोल डीजल से लेकर खाद्यान्न सामग्री तक के दाम आसमान छू रहे है लेकिन सियासत मैं सन्नाटा पसरा हुआ है । रसोई गैस के दाम भी लगातार बढ़ती ही जा रहे हैं जिसकी कीमत हजार रूपए के करीब पहुंच गई है आखिरकार बढ़ती महंगाई को लेकर हाहाकर मची जनता झेल रही है । क्या सत्ता मैं काबिल भाजपा सरकार उन तीन बंदरों की तरह बन चुकी है जो ना तो कुछ कहना जरूरी समझती है ना कुछ सुनना और ही कुछ देखना । वर्ष 2012 में एक समय ऐसा भी आया था कि जब कांग्रेस ने महंगाई पर भारत तक बंद करवा दिया गया था लेकिन आज जनता पर महंगाई की लाठी पड़ रही है । लेकिन कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही है ।
पेट्रोल डीजल के साथ साथ सब्जी दाल आटा खाद बीज खाद्यान्न तेल सरसों तेल अलावा रसोई गैस तक के दाम भी बढ़ गए हैं ऐसे में गरीब वर्ग का तब का रसोई गैस खत्म होने पर दोबारा गैस नहीं भरा पा रहे है । जिसके चलते सरकार के प्रति उनका ना सिर्फ आक्रोश बढ़ रहा है बल्कि खाना बनाने में भी उन्हें दिक्कततो का सामना करना पड़ रहा है लोगों अब रसोई गैस के सपने छोड़ जंगल से लकड़ी लाकर जलाने को मजबूर हो चुके है।
शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण अंचलों तक लोग गैस की दाम बढ़ने से चिंतित है महिलाओं का कहना है कि वर्तमान समय में गैस के दाम हजार रुपए के करीब पहुंच चुका है जिसे भरवाने में अब घर के मुखिया पसीना छूट रहा है रोजाना मेहनत मजदूरी कर दो सो रुपए कमाने वाला आदमी बढ़ती महंगाई के इस दौर में घर कैसे चलाएगा सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं खाने का तेल महंगा हो गया है बिजली बिल तक बढ़कर चढ़कर आ रही है ऐसे में रसोई गैस भी महंगी होती जा रही है यदि गैस भराने मैं ही कैसी सारी मजदूरी लूटा देंगे तो अन्य खर्च पर घर कैसे चलाएंगे
जिले की वनांचल क्षेत्र में भी हालात कुछ बिगड़ने लगे है उज्जवल योजना से मिला गैस सिलेंडर तो खूब जलाया लेकिन अब के खत्म होने के बाद पुनः चूल्हा चला कर खाना पक्का रहे है और कुछ इसकी जंगल से लकड़ी लाने को मजबूर हो चुके है । इधर शहरी क्षेत्र में भी रसोई गैस के साथ टाल व डीपो की लकड़ियां महंगी हो गई है अब लोगों की मांग है कि सरकार अब महंगाई पर नकेल कसे ताकि गरीब वर्ग के लोग भी रसोई गैस में भोजन पक्का सके और लोग भी सुकून जिंदगी जी सकें और लोग रसोई गैस में भोजन पक्का सकें ।