Sudarshan Today
ganjbasoda

मंदिर में भगवान सीताराम और महाप्रभु जगन्नाथ के विराजमान, आनंद उत्सव और हर्ष तो कथा में दिखा वियोग

सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश कुमार)।

नौलखी धाम मंदिर में श्रोता भगवान सीताराम और महाप्रभु जगन्नाथ के विराजमान होने पर आनंद और उत्सव के क्षण में हर्षित होकर नाच रहे थे तो वहीं कथा में राम वन गमन के प्रसंग पर द्रवित होकर श्रोता अपनी आंखों से आंसुओं की झर झर धारा बहा रहे थे। वियोग और हर्ष के यह क्षण नौलखी धाम पर आयोजित हो रहे विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में बुधवार को देखने मिले। रामवन गमन के मार्मिक प्रसंगों पर कथा व्यास ने वाल्मीकि रामायण पर अपनी भावांजलि के जरिए श्रोताओं को द्रवित करने मजबूर कर दिया।

बुधवार को बाल्मीकि रामायण में राम वन गमन के प्रसंग के जरिए उन्होंने श्रोताओं को संस्कार और सत्य का पालन करने प्रेरित किया। कथा के दौरान अयोध्या धाम से पधारे जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने नौलखी आश्रम पर विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के उपलक्ष्य में चल रही संगीतमय श्रीमद् बाल्मीकि रामायण में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि राम संस्कारों की पाठशाला थे इसलिए वह अपने संस्कारों से कभी दूर नहीं हुए। अयोध्या राम के जाने के बाद उजड़ गई थी लेकिन राम के संस्कारों से वह एक बार फिर से बस गई यही संस्कारों श्रेष्ठता है जिस घर में बेटे संस्कारवान होते हैं वह घर कभी नहीं उजड़ता। जिस घर के बेटे संस्कारों से दूर हो जाते हैं वह उजड़ जाता है फिर कभी नहीं बसता। राम संस्कारवान थे इसलिए अयोध्या उजड़ने के बाद राम के संस्कारों की बदौलत फिर से बस गई। रामायण का हर पात्र हमें त्याग करना सिखाता है। धर्म के मार्ग पर किस तरह चलना चाहिए यह दिखाता है। जो धर्म, वेद पर नहीं चलेगा उसका अस्तित्व नहीं रहेगा। भगवान राम वेद मार्ग पर चले धर्म मार्ग पर चले इसलिए आज भी हमारे आदर्श हैं। महाराज श्री द्वारा जब अयोध्या से भगवान राम के वन गमन के प्रसंग पर आज हमारे राम अयोध्या छोड़ चले के मार्मिक भजन मंच से गया हजारों की संख्या में मौजूद श्रोता द्रवित हो गए और कथा पंडाल में अपने आंसुओं की धारा नहीं रोक पाए। महाराज श्री ने कहा कि धैर्य और संयम सफलता की कुंजी है। जब मन इन्द्रियों के वशीभूत होता है, तब संयम की लक्ष्मण रेखा लाँघे जाने का खतरा बन जाता है, भावनाएँ अनियंत्रित हो जाती हैं। असंयम से मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, इंसान असंवेदनशील हो जाता है, मर्यादाएँ भंग हो जाती हैं। इन सबके लिए मनुष्य की भोगी वृत्ति जिम्मेदार है। काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या असंयम के जनक हैं व संयम के परम शत्रु हैं। इसी तरह की नकारात्मकता आग में घी का काम करती है।

Related posts

वेद अपोर्शे है तो भागवत भी अनादि ग्रंथ है – पं. केशव शास्त्री

Ravi Sahu

भाजपा प्रत्याशी ने भरा नामांकन पत्र, चुनाव कार्यालय का हुआ शुभारंभ

Ravi Sahu

चुनरी यात्रा के 22 वर्ष पूर्ण होने पर हुए कई आयोजन

Ravi Sahu

भगवान चंद्रप्रभु के मोक्ष कल्याणक पर अर्पित किया निर्वाण लाड़ू

Ravi Sahu

आशा उषा कार्यकर्ताओं ने किया भजन कीर्तन

Ravi Sahu

भारतीय जनता पार्टी जिला विदिशा की आवश्यक कामकाजी बैठक नया बस स्टैंड स्थित एक निजी गार्डन में रविवार को आयोजित की गई।

Ravi Sahu

Leave a Comment