संजय देपाले
*बाग*/ मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले धार,झाबुआ,अलीराजपुर,बड़वानी,बुरहानपुर,खंडवा,खरगोन जो कि आदिवासी संस्कृति को विश्व मानचित्र पर जीवंत कर देने वाला भगोरिया होली पर्व को मनाने की खरीददारी का अपने आप में अनगिनत खासियतो को समेटता है,यह एक साप्ताहिक हाट बाजार मेले में तब्दील रहता है जो की 18-24 मार्च तक विभिन्न जिले के अलग-अलग स्थान पर साप्ताहिक हाट के अनुसार भगोरिया हाट लगेगा। जहाँ आदिवासी समाज होली की खरीदारी करने पहुंचेगा।लेकिन इसकी रौनकता भारतीय संस्कृति के अनुसार हमें,हमारे आदिवासी परंपरा,संस्कृति का एक वैभवशाली अनूठा शायराना अंदाज देखने को मिलता है,जिन्हें हम हमारे आदिवासी पारंपरिक,गायन,कला,वेशभूषा एवं लोक-कला,नृत्य दल के माध्यम से प्रकृति के एक सूत्र में पिरोते हैं।यही तो हमारे भारतीय गौरवशाली की आदिवासी संस्कृति है,जिसकी अनुभूति प्रत्येक आदिवासी भाइयों एवं बहनों को होती है।जिसमे अलीराजपुर जिले का भंगोरिया विश्व प्रसिद्ध वालपुर का होगा। जहां दूरदराज से सैलानी इस भगोरिया त्योहार के रंग बिरंग नजारे देखने को आते हैं।भगोरिया हाट जाने के लिए बच्चे,बड़े,बूढ़े,युवक-युवतियाँ एवं महिलाये हर कोई उत्साहित रहता है। एक महीने पहले से ही आदिवासी समाज भगोरिया की तैयारी में जुट जाता है,आदिवासी युवतियां नए परिधान सिलवाती है,श्रृंगार करती हैं तो युवक भी सज-धज कर बांसुरी की धुन छेड़ने लगते हैं, आदिवासी समाज ढोल-मांदल कसने लग जाते हैं,चारों तरफ उत्साह एवं उमंग का वातावरण रहता है। खेतों में गेहूं और चने की फसल व वातावरण में टेशु,महुआ,ताड़ी की मादकता अपना रस घोलती है,ऐसे मनोरम वातावरण में भगोरिया की मस्ती जनमानस को मद-मस्तक कर देती है भगोरिया हाट में ऐसा हमारे आदिवासी समाज का अनोखा अंदाज देखने को मिलता है।
धुलेड़ी के साथ दिन पहले लगने वाले भंगोरीया हाट की परम्परा रियासतकालीन है।कुछ इतिहासकार बताते है कि इसकी शुरुआत ग्राम भगोर से हुई थी तो किसी ने कहा हाट बाजार में ग़ुलाल खूब उड़ाया जाता था इसलिए पहले इसे गुलालिया हाट कहा जाने लगा था। बाद में इसका नाम भंगोरिया पड़ा। बीते कई सालों में भगोरिया की रंगत और प्रसिद्ध देश-विदेश तक पहुंच गई है। इस कारण भंगोरिया के फोटो-विडिओ तेजी से सोशल मिडिया पर शेयर किया जाता है। इसलिए देश-विदेश से पर्यटक फोटोग्राफ़ि व उल्लास को देखने आते है।