कसौटियों पर तराश कर व्यक्तित्व, निखार कर मनुष्य का चरित्र हमने जाना ।
घनश्याम तिवारी पत्रकार सिकन्दरपुर बलिया उत्तरप्रदेश
दुख मे हम किसी के नही,सुख मे नही कोई हमारा ।
कर्ज की खुशियाँ , नशीब मे नही,हमे दुखो के सैलाब
ने सवाँरा ।
जाने कहाँ से ओस की बूँदो सा लम्हा था,जिसने मेरी
उमीद को उजारा था।
मेरी नशीब का क्या कसूर दुखो का साया ही साथ निभाने का वादा करने आया था।
आँखो की नमी समझना उन्हे गवारा नही था।
रिश्ता मित्रता का कुछ इस तरह निभाना था।
मेरे लब मौन , मन मंदिर को चुपचाप हर दर्द सहना था।
अपना सब कुछ समर्पण कर तेरे साथ का समय एक पल भी
खुशनुमा लगता है।
आपके विना दिल की धड़कनो से रिश्ता रखना नामुमकिन लगता है।।
पेड़ की पत्ते की तरह हो गई जिंदगी चंद लम्हो की तरह ओस की बूँदो सी याद लिए अतीत की दलानो पर प्रतीक्षा किए जा रहे है।