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छिन्दवाड़ा और पांढुरना जिले से लोकसभा उम्मीदवार हो सकती है :अश्विनी ताई जिचकार

सुदर्शन टुडे,अक्षय बालपांडे,पांढुरना

कमलनाथ का अभेद्य राजनीतिक किला कहे जाने वाले छिंदवाडा लोकसभा क्षेत्र में सेंध लगाने के लिए भारतीय जनता पार्टी की ओर से बहुतेरे प्रयास हुए लेकिन यह किला मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिवंगत सुंदरलाल पटवा के अलावा कोई भेद नहीं पाया था। तब से लेकर आज तक यहाँ भारतीय जनता पार्टी को इस सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई है। मध्यप्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में छिंदवाडा जिले की आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा का खाता तक नहीं खुल पाया था। भाजपा के लिए फेवरेबल समझी जाने वाली सौंसर विधानसभा सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी और निवर्तमान विधायक को हार का सामना करना पडा था। कहा जा रहा है कि सौंसर तहसील के बजाय पांदुरना तहसील को जिला बनाने से स्थानीय मतदाता भाजपा से नाराज थे। पांढुरना विधानसभा (आदिवासी आरक्षित) सीट पर भाजपा जीत सकती थी लेकिन यहां भाजपा ने स्थानीय व्यक्ति को तरजीह न देकर चुनाव समिति द्वारा अनुशंसित प्रत्याशी को मैदान में उतारा था। आदिवासी मोर्चा ने रैली निकालकर प्रत्याशी बदलने की मांग भी की थी। लेकिन भाजपा ने निर्णय नहीं बदला था। नतीजा यह हुआ कि यहां भाजपा को मतदान करने वाला आदिवासी वोटर भाजपा से नाराज रहा। वोटरों की यह नाराजी पांढुरना को जिला बनाने पर भी कम नहीं हुई। नतीजा कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश उईके की जीत के रूप में सामने आया।भाजपा के दोनों प्रत्याशियों के पराजित होने के पीछे ठोस कारण थे  किन्तु अब लोकसभा का चुनाव सामने है और कमलनाथ को टक्कर देने वाले ऐसे प्रत्याशी की भाजपा को तलाश है जो जातिगत समीकरण में कमलनाथ की लोकप्रियता पर भारी पड सके। इसी संदर्भ में भोपाल से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक सरगर्मी बनी हुई है। हाल ही में भाजपा ने अपने 195 प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है, उसमें मध्यप्रदेश के कुछ प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की है लेकिन कमलनाथ के अभेद्य गढ़ छिंदवाडा सीट पर किसी प्रत्याशी की घोषणा अभी नहीं हुई है।छिंदवाडा जिले का अब तक का इतिहास देखें तो छिंदवाडा लोकसभा सीट पर अभी तक जिन प्रत्याशियों को भाजपा की ओर से उतारा गया था, उनकी पृष्ठभूमि देखें तो हार के कारणों को आसानी से समझा जा सकता है। कहा जा रहा है कि जातिगत समीकरण में कमलनाथ को मात देने वाला प्रत्याशी अभी तक भाजपा की ओर से उतारा ही नहीं गया। छिंदवाड़ा जिले में मतदाता का जातिगत अनुपात देखें तो यहाँ आदिवासी मतदाताओं के बाद कुनबी और तेली समाज के मतदाताओं का बाहुल्य है। कुणबी मतदाताओं के बाहुल्य का ही परिणाम है कि सौंसर में इससे पूर्व हुए वि.स. चुनाव में कुनबी समाज के भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई थी।पांढुरना तहसील में भी जातिगत समीकरण ठीक ऐसा ही है यहां भी आदिवासी मतदाताओं के अलावा कुनबी, तेली और पवार समाज के वोटरों का बाहुल्य है। कहा जा रहा है कि यदि इस बार छिंदवाडा लोकसभा सीट पर कुनबी समाज के प्रत्याशी को मौका दिया गया तो भाजपा के लिए वह चमत्कारिक साबित हो सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं। अब कुनबी समाज बहुल सौंसर और पांढुरना तहसील को देखें तो यहाँ भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही इस समाज के कार्यकर्ता हैं। इन्हीं में एक नाम है अरविंद कडू पाटिल। मूलतः तिगांव (पांढुरना) के निवासी अरविंद कडू को समाज के साथ साथ तहसील में अच्छी खासी प्रतिष्ठामूलक लोकप्रियता प्राप्त है। पांढुरना से विधायक रहे चंद्रशेखर सांबारतोड़े और सुरेश झलके को जीत दिलाने में इन्हीं अरविंद कडू पाटिल का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। केवल पांढुरना ही नहीं अपितु सौंसर में भी उन्हें लोग जानते हैं। इन्हीं अरविंद कडू की पुत्री अश्विनी जिचकार (कडू) भी पूर्व नगरसेविका होने के साथ प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की महामंत्री के बतौर सक्रिय हैं। वे नागपुर के प्रतिष्ठित जिचकार परिवार की बहू है। राजनीति में सक्रिय अश्विनी जिचकार को यदि छिंदवाडा से भाजपा का टिकट मिलता है तो पांढुरना जिले की बेटी के रूप में वह मतदाताओं की पहली पसंद होने के साथ ही भाजपा की ओर से मजबूत और स्थानीय प्रत्याशी के रूप में टक्कर दे सकती हैं। पांढुरना व सौंसर तहसील में अश्वीनी जिचकार (कडू) की समाज के भीतर चर्चा होने की खबरें भी आ रही हैं।

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