संगीता बर्मन सुदर्शन टुडे न्यूज़ ब्यूरो चीफ खण्डवा
खंडवा शहर के मध्य महज़ 5 रुपये किराये वाली “शाही सराय”… खंडवा की पार्वतीबाई धर्मशाला का सैकड़ो बरस पुराना इतिहास… दहेज की रकम से यात्रियों के लिए बनी धर्मशाला… अमीर-गरीब सबके लिए सीधा प्रवेश… 100 बरस की होने को है, खंडवा की “शाही सराय”… शाही ठाट-बाट और उम्दा व्यवस्था के बीच रहना आखिर किसे पसंद नही है, इसके लिए शौकीन लोग हजारों रुपये तक खर्च करते है। शाही सुविधाओं से लैस सराय गरीबो की पहुंच में कहा होती है? समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि मध्यप्रदेश के खंडवा में एक ऐसी “शाही सराय” है, जहां अमीर-गरीब सब एक ही माने जाते है। एक ही काउंटर पर उन्हें कतार में लगना होता है और बुकिंग करवाना होती है। दरअसल हम बात कर रहे है, खंडवा में स्थित सेठानी पार्वतीबाई धर्मशाला की। जिसका संचालन ट्रस्ट तथा शासन मिलकर करते है। इस धर्मशाला का इतिहास आज़ादी से भी पुराना है, इसके निर्माण के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। दरअसल पार्वतीबाई खंडवा के धनाड्य सेठ रघुनाथदास की बेटी थी, जबलपुर के सेठ गोकुलदास के पुत्र जीवनदास से उनका विवाह हुआ था। इस दौरान कन्यादान में उन्हें 2 लाख रुपये के चांदी के सिक्के मिले थे। सेवाभावी तथा मानवीय मूल्यों पर जीवन जीने वाली पार्वतीबाई ने इसी रकम से एक ऐसी धर्मशाला का निर्माण करवाने की ठानी, जिसमे अमीर-गरीब तथा हर धर्म-जाति का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के रुक सके, रह सके। वो भी नाम मात्र के शुल्क पर। बस फिर क्या था सन 1917 में इस धर्मशाला का निर्माण कार्य शुरू हुआ और सन 1924 में बनकर तैयार इस धर्म शाला को मार्च माह से आमजन के लिए शुरू कर दिया गया। अगले वर्ष 2024 में यह धर्मशाला सौ बरस की हो जाएगी। इंडो-इंग्लिश वास्तुकला पर बनी यह धर्मशाला बेहद खूबसूरत महल की तरह दिखाई देती है। यहां रुकने वाले यात्री भी धर्मशाला की व्यवस्थाओं से खुश रहते है। इस धर्मशाला में महज 5 रुपये प्रतिदिन देकर कोई भी व्यक्ति अपने सामान सहित यहां रुक सकता है। धर्मशाला के प्रबंधक बीएस मालवीया बताते है, कि सेठानी पार्वतीबाई का परिवार बहुत ही सेवाभावी था। उन्होंने कन्यादान में मिले दो लाख रुपयों के सिक्कों से इस धर्मशाला का निर्माण कार्य करवाया और इसे सभी तरह के लोगो के रुकने के लिए समर्पित किया। धर्मशाला समिति में जिला प्रशासन की ओर से एसडीएम नामित होते है, जो इसका प्रशासनिक कार्य देखते है तथा निर्णय लेते है। उस ज़मानर में आज की तरह हर व्यक्ति के पास घड़ी नही होती थी, इसलिए समय बताने के लिए यहां घंटा लगाया गया था। इस घंटे से आज भी समय बताया जाता है। धर्मशाला के ट्रस्टी विजय राठी ने बताया कि खंडवा की यह धर्मशाला शहर का गौरव है, यहां बेहद कम रुपयों में गरीब से गरीब व्यक्ति आश्रय पा सकता है। आज यह प्रॉपर्टी अरबो रुपयों की है, यही सामने खंडवा का रेल्वे जंक्शन है, जहां से यात्री यहां आकर रुकते है। धर्मशाला में रुके ओम्कारेश्वर के पंडित सुधांशु शर्मा ने बताया कि जब उन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए खंडवा आना होता है, तो वे यही आकर रुकते है। सुनील जैन के अनुसार धर्मशाला की व्यवस्थाएं बहुत अच्छी है और यहां का प्रबंधन भी सहयोगी है। तो सोचिये जहां महंगाई के इस दौर में 5 रुपये में एक कप चाय तक नही मिलती है, वहीं खंडवा की पार्वतीबाई धर्मशाला में गरीब से गरीब व्यक्ति महज़ 5 रुपये देकर रोड पर सोने की बजाय यहां आकर रात्रि में विश्राम कर सकता है