जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह
दमोह. ग्राम फुलर मे दिव्य भव्य कलश शोभायात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा प्रारम्भ हुई कथा वाचक पंडित रवि शास्त्री महाराज ने कहा कि सूरदास जी का नाम किसने नहीं सुना। सूरदास जी एक बहुत ही बड़े कृष्ण भक्त, विरक्त एवं आशु कवि थे। उन्हें भक्तिमार्ग का ‘सूर्य’ भी कहा जाता है। वे, जन्म से ही नेत्रहीन थे, जिसके कारण उनके परिजन, उन्हें, पसंद नहीं करते थे और उन्होंने काफी छोटी आयु में ही घर छोड़कर वैराग्य ले लिया था। सूरदास जी के जीवन से जुड़ी ऐसी अनेकों कथाएं हैं, जो उनके और कन्हैया के बीच एक मजबूत रिश्ते की गवाही देती हैं। उन्हीं में से एक कथा है कि जब नेत्रहीन होते हुए भी सूरदास जी को भगवान के दर्शन हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक दिन सूरदास जी, वृंदावन में ही कहीं बैठे थे और राधा-कृष्ण की भक्ति कर रहे थे। उस दिन, भगवान का भक्त के साथ क्रीड़ा करने का मन हुआ। इसलिए उसी समय, सूरदास जी को राधा रानी और कन्हैया की बातें सुनाई दीं।श्रीकृष्ण का हुआ, बाबा को दर्शन देने का मन कन्हैया बोले, “राधे, आगे मत जाइएगा। आगे बाबा सूरदास बैठे हैं। उन्हें पता लगेगा तो वे चरण पकड़ लेंगे।” तो राधा रानी बोलीं, “मैं तो जाऊंगी!” यह कहकर, श्रीजी, बाबा सूरदास के पास आईं और उनसे पूछने लगीं कि, “बाबा, अगर मैं, आपके पास आई तो क्या आप मेरे चरण पकड़ लेंगे सूरदास जी बोले, “लाड़ली जी, मैं तो नेत्रहीन हूं। मैं कैसे आपके चरण पकड़ूंगा कन्हैया ने दिया बाबा सूरदास को संकेत यह सुनकर, राधा जी, सूरदास जी के निकट जाकर उनसे, अपने चरण स्पर्श कराने लगीं। तभी कन्हैया चिल्लाए, “बाबा! आगे से नहीं, पीछे से चरण पकड़ना!” सूरदास जी ने मन में विचार किया कि अब तो ठाकुर जी की भी आज्ञा मिल गई है। चरण पकड़कर शरणागत होने का इससे अच्छा मौका भला कहां मिलेगा।सूरदास जी ने पकड़े राधा रानी के चरण
यह सोच, जैसे ही रासेश्वरि राधा ने अपने चरण, बाबा से स्पर्श कराए, बाबा ने झट से उनके चरण पकड़ लिए। राधा जी तो उनसे बचकर एक बालक की भांति भाग गईं परंतु उनकी पायल, बाबा सूरदास के हाथों में रह गई।
यह देख, श्रीजी बोलीं, “बाबा, मुझे मेरी पायल दे दो। मुझे रास मंडल में रास के लिए जाना है।” यह सुनकर सूरदास जी बोले, “मुझे क्या पता कि यह पायल, आपकी है या नहीं? आपके बाद कोई और आकर मुझसे पायल मांगने लगा तो मैं क्या करुंगा हां! अगर मैं आपके दूसरे पांव में ऐसी पायल देख लूंगा तो आपको यह पायल वापस दे दूंगा।”
प्रभु ने दिए नेत्रहीन भक्त को दर्शन तब युगल सरकार मुस्कराए और भक्त शिरोमणि सूरदास जी को दृष्टि प्रदानकर, अपनी रूप माधुरी में उन्हें सराबोर कर दिया। यही ठाकुर जी की इच्छा भी थी, जिसके कारण यह पूरा खेल उन्होंने शुरू किया था।तब श्रीकृष्ण ने सूरदास जी से कहा कि उनकी जो भी इच्छा हो, वह मांग सकते हैं। बाबा सूरदास बोले, “आप देंगे कन्हैया बोले, “अवश्य!” सूरदास जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “हे नाथ! मैं चाहता हूं कि जिन नेत्रों से मैंने आपके दर्शन किए हैं, उन नेत्रों में, मैं केवल और केवल आपको बसाना चाहता हूं। अब मैं इस माया रूपी संसार को देखकर, अपने नेत्र नेत्रों मैला नहीं करना चाहता। अत: आप मुझे पुन: नेत्रहीन कर दें यह सुनकर, युगल सरकार के नेत्र, सजल हो गए। भगवान ने भक्त को गले से लगाया और श्रीकृष्ण के दर्शन पाते ही सूरदास जी के नेत्र फिर से शांत हो गए.