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गंजबासौदा

परमपिता परमात्मा शिव अवतरण के भाग्यशाली रथ बनते हैं ब्रह्मा बाबा- ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी

 

 

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गंजबासौदा (नितीश श्रीवास्तव) // प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मंशापूर्ण हनुमान मंदिर के पास स्थित सेवा केंद्र गंजबासौदा द्वारा प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की 146 वी जयंती को आध्यात्मिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया गया। जिसमें ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने ब्रह्मा बाबा की जीवन कहानी का परिचय देते हुए कहा कि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के साकार संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा के नाम से आज जन-जन को पता है सन् 1937 से सन् 1969 तक की 33 वर्ष की अवधि में तपस्यारत रहे। वे संपूर्ण ब्रह्मा की उच्चतम स्थिति को प्राप्त कर आज भी विश्व सेवा कर रहे हैं। उनके द्वारा किए गए असाधारण अद्वितीय कर्तव्य की मिसाल सृष्टि चक्र के 5000 वर्षों के इतिहास में कहीं भी मिल ही नहीं सकती। अल्पकालिक और आंशिक परिवर्तनों के पुरोधाओं की भीड़ से हटकर उन्होंने संपूर्ण और सर्वकालिक परिवर्तन का ऐसा बिगुल बजाया जो परवान चढ़ते चढ़ते सात महाद्वीपों को अपने आगोश में समा चुका है। वे आज की कलयुगी सृष्टि का आमूल चूल परिवर्तन कर इसे सतयुगी देवालय बनाने की ईश्वर योजना अनुसार परमपिता परमात्मा शिव के भाग्यशाली रथ बने। सर्वशक्तिमान, सर्व रक्षक परमात्मा शिव की महिमा अपरंपार है परंतु जिस माननीय रथ पर सवार हो वे विश्व परिवर्तन का कर्तव्य करते हैं उसकी आभा, प्रतिभा का वर्णन भी कम नहीं है। पिताश्री का दैहिक जन्म हैदराबाद सिंध में 15 दिसंबर 1876 को एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका शारीरिक नाम दादा लेखराज था। एक दिन जब दादा के घर में सत्संग हो रहा था तब दादा अनायास ही सभा से उठकर अपने कमरे में जा बैठे और एकाग्र चित्त हो गए तब उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वृतांत हुआ। उनकी धर्मपत्नी व बहू ने देखा कि दादा के नेत्रों में इतनी लाली थी कि जैसे उनके अंदर कोई लाल बत्ती जल रही हो दादा का कमरा भी प्रकाश में हो गया था इतने में एक आवाज ऊपर से आती हुई मालूम हुई जैसे कि दादा के मुख से दूसरा कोई बोल रहा हो आवाज के शब्द थे निजानंद रूपं शिवोहम शिवोहम, ज्ञान स्वरूपं शिवोहम शिवोहम, प्रकाश स्वरूपं शिवोहम शिवोहम फिर दादा के नेत्र बंद हो गए कुछ क्षण के पश्चात उनके नैन खुले तो कमरे में आश्चर्य चारों और देखने लगे वास्तव में दादा के तन में परमपिता परमात्मा शिव ने ही प्रविष्ट होकर यह महावाक्य उच्चारण किए थे। उन्होंने ही दादा को नई सतयुगी दैवी सृष्टि की पुनर्स्थापना के लिए निमित्त बनने का निर्देश दिया था। अब दादा परमात्मा शिव के साकार माध्यम बने। परमपिता परमात्मा शिव ने दादा को नाम दिया “प्रजापिता ब्रह्मा” उनकी मुखारविंद द्वारा ज्ञान सुनकर पवित्र बनने का पुरुषार्थ करने वाले नर-नारी क्रमशः ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाए। ब्रह्माकुमारी रुकमणी दीदी ने कहा कि पिता श्री ने श्रेष्ठ पुरुषार्थ करने वाली कन्याओं एवं माताओं का एक ट्रस्ट बनाकर अपनी समूची चल एवं अचल संपत्ति उस ट्रस्ट को, मानव मात्र की ईश्वरीय सेवा में समर्पित कर दी। इस प्रकार 1937 में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना हुई सन 1969 में पिताश्री ने दैहिक कलेवर का परित्याग कर संपूर्णता को प्राप्त किया उनके अव्यक्त सहयोग से ईश्वरीय सेवाएं पहले की अपेक्षा तीव्र गति से बड़ी जो आज विश्व भर में 140 देशों में फैल चुकी हैं। सूक्ष्म रूप में आज भी बाबा हर बच्चे को अपने साथ का अनुभव कराते हुए कदम कदम पर सहयोग, स्नेह और प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं। बाबा का जाना ऐसा ही है जैसे कोई अपना कमरा और कपड़ा बदल लेता है साकार के स्थान पर सूक्ष्म लोक में उनका वास है और शाकार शरीर के स्थान पर आकारी फरिश्ता रूप में वे नित्य ही बच्चों से मिलन मनाते हैं। छत्रछाया बन बच्चों को निरंतर सुरक्षा कवच प्रदान करने वाले पिता श्री ब्रह्मा बाबा के 146 वे जन्मदिन को हम आध्यात्मिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मना रहे हैं। कार्यक्रम में नीतू जैन, बसंती श्रीवास्तव, सीमा रघुवंशी, सोनू श्रीवास्तव, उत्सव मीना, शयामा यादव, सोनाली दांगी, मीना, विनीता, बबली, आदि अधिक संख्या में भाई-बहन कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

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