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राष्ट्रवादी प्रखर चिंतक

सुदर्शन टुडे स्टेट दिल्ली एनसीआर नीरज सिंह चौहान

डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा

अंतर्राष्ट्रीय चिंतक-विचारक व प्रखर राष्ट्रवादी वक्ता एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-राष्ट्र सृजन अभियान

जय हो जग में जले जहां भी,

नमन पुनीत अनल को।

जिस नर में भी बसे हमारा,

नमन तेज को बल को।।

किसी वृंत्त पर खिले विपिन में, पर नमस्य हैं फूल।

सुधी खोजते नहीं गुणों का, आदिशक्ति का मूल।।

उपर्युक्त नमस्कारात्मक काव्य पंक्तियां राष्ट्रकवि दिनकर ने महाभारत के अप्रतिम दया वीर, युद्धवीर और दानवीर महारथी कर्ण को ध्यान में रखकर लिखी हैं, लेकिन इन सारगर्भित पंक्तियों की व्यंजना कर्ण तक ही सीमित नहीं हैं; अपितु इनकी व्यंजना बहुत विस्तृत, व्यापक एवं सूक्ष्म है। जंगल के किसी भी वृंत पर खिलने वाला फूल आदर एवं सम्मान का अधिकारी है। वे सभी लोग नमनीय एवं वंदनीय हैं, जो तेज, प्रताप एवं गुणों की खान हैं। सुधी जन गुणों के आदि एवं अंत के लिए व्यग्र नहीं होते, अपितु किसी भी कुल, जाति या गोत्र में उत्पन्न गुणी जनों का समादर करते हैं।

किसी सरस्वती पुत्र की सुदीर्घ सारस्वत साधना का आकलन एवं मूल्यांकन करना आसान कार्य नहीं है, विशेषतः उस सरस्वती पुत्र की साहित्यिक साधना का आकलन या मूल्यांकन तो और भी कठिनतम कार्य है, जिसका व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुआयामी हो, जिसके चिंतन का आकाश बहुत व्यापक एवं विस्तृत हो और जिसकी समझ की गहराई सागर वत् हो और जो एक साथ कई भाषाओं एवं विधाओं में निष्णात हो, ऐसे वाणी साधक का बहिरंग जितना व्यापक होता है, अंतरंग उससे कहीं अधिक गहरा। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा ऐसे ही वाणी साधक और सरस्वती के वरद् पुत्र हैं। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा अतीत जीवी नहीं, अपितु वर्तमान को संवारने वाले राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय चिंतक एवम् विचारक हैं।

बिहार का गया जिला कई मायने में विशेष रुप से स्मरणीय है। 1973 में गया को विभाजित कर दो नये जिलों का सृजन हुआ – जहानाबाद और औरंगाबाद। इसी जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड के खलकोचक ग्राम में 10 फरवरी 1894 को बाबू साधुशरण सिंह के एकलौते पुत्र के रूप में जिस नवजात शिशु का जन्म हुआ, कुलगुरु ने लग्न मुहूर्त और नक्षत्र देखकर उसका नाम रामविलास रखा। इसी राम विलास ने 16 वर्ष की आयु में अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी। राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने जीवन पर्यंत देश सेवा का व्रत लिया था। 1942 की अगस्त क्रांति (भारत छोड़ो आंदोलन) के दौरान रामविलास बाबू ने गया समाहरणालय से अंग्रेजों के यूनियन जैक को उतार कर उसकी जगह स्वराज्य का झंडा फहरा दिया था। इसके लिए उन्हें जेल की कठिन यातना सहनी पड़ी थी लेकिन उन्होंने उफ् तक नहीं किया। ऐसे धुन के मतवाले थे अमर स्वतंत्रता सेनानी रामविलास बाबू। उनके द्वारा उतारा गया यूनियन जैक आज भी राष्ट्र सृजन अभियान के पास ‘अमूल्य-निधि’ के रूप में सुरक्षित है।

इसी रामविलास बाबू के एकलौते पुत्र स्व. राम प्रताप शर्मा और स्वा. देवता देवी के सौजन्य से उनके आंगन में जिस नवजात शिशु ने बुधवार 20 जनवरी 1965 को जन्म लिया, कुलगुरु ने जन्म मुहूर्त के आधार पर उस बालक का नाम रखा – प्रद्युम्न। डॉ. सिन्हा के पिता प्रख्यात शिक्षाविद् थे। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा की प्रारंभिक शिक्षा गांव के पाठशाला में हुई। इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उच्च विद्यालय मखदुमपुर से 1980 में, आई.एस.सी.की परीक्षा आजमगढ़ से 1982 में बीएस.सी.(कृषि) की परीक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से 1985 में एमएस.सी (कृषि) की परीक्षा 1987 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में पास की तथा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा इन्हें पीएचडी की मानद उपाधि प्रदान की गई। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा अपने गांव जन्मभूमि खलकोचक से निकलकर 21वीं सदी में ग्लोबल हो चुके हैं। डॉ. सिन्हा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के रहे हैं। होनहार बिरवान के होत चिकने पात के साक्षात् विग्रह हैं डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा।

हिन्दी में एक कहावत है कि:-

बढे पूत पिता के धर्मे। खेती उपजे अपना कर्मे।।

अर्थात् पूत पिता (पैतृक दाय) के सुकर्माे से और खेती बाड़ी अपने पुरुषार्थ से फलीभूत होती है। यह कहावत डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा के जीवन को चरितार्थ करती है। प्रद्युम्न बाबू का बचपन कर्मठ स्वतंत्रता सेनानी दादाश्री रामविलास बाबू के सानिध्य में बीता अतः उनके व्यक्तित्व के बहुत सारे गुण इन्हें विरासत में मिल गए। रामविलास बाबू का सपना था स्वाधीन भारत आत्मनिर्भर भारत। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। उनका आधा सपना पूर्ण हो गया, लेकिन आत्म निर्भर भारत का सपना लिए राम विलास बाबू 7 सितम्बर 1994 को गोलोकवासी हो गए। दादाश्री बाबू रामविलास सिंह जी के द्वारा स्थापित राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्र सृजन अभियान को डॉ. सिन्हा अपने जीवन में आत्मसात कर राष्ट्र निर्माण और समाज निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित कर बिना रूके, बिना झूके, बिना थके निरंतर कार्यशील हैं। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा ने कालांतर में इस संगठन की विधिवत् भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थापना की। इसके वे वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। यह अखिल भारतीय स्तर का संगठन है और पूरे भारतवर्ष के प्रत्येक राज्य में इसकी शाखाएं हैं। डॉ. परशुराम सिंह जी इसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, डॉ. के. एन. राय इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और डॉ. ललित कुमार जी इसके राष्ट्रीय महासचिव हैं। डॉ. गीता देशप्रिया जी महिला मोर्चा की अध्यक्ष हैं। राष्ट्र सृजन अभियान संपूर्ण भारत में संगठन खड़ा कर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सपनों का आधुनिक भारत-आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए संकल्पित है। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा की धर्मपत्नी श्रीमती आशा कुमारी जहानाबाद के सरकारी स्कूल में कुशल शिक्षिका हैं। वे पतिपरायणा भारतीय नारी हैं और पति के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलने वाली भारतीय कुल रमणी हैं। डॉ सिन्हा को दो पुत्र और एक पुत्री है। ज्येष्ठ पुत्र आलोक सिन्हा आई.टी प्रोफेशनल हैं और कनिष्ठ पुत्र सौरभ सिन्हा सिविल अभियंता हैं और एकलौती पुत्री डॉ ज्योति सिन्हा चिकित्सक है। सभी संतानें योग्य और सुसंस्कारित हैं। इनका ननिहाल केशपा टेकारी स्टेट से संबद्ध है।

डॉ. सिन्हा के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि राष्ट्र सृजन अभियान नई दिल्ली के माध्यम से भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के सपनो को साकार करना है। राष्ट्र सृजन अभियान का लक्ष्य है:- बेटर मी, बेटर वी, बेटर भारत, बेटर वर्ल्ड अर्थात् बेहतर मैं, बेहतर हम, बेहतर भारत और बेहतर विश्व। इन सपनों को साकार करना ही राष्ट्र सृजन अभियान का संकल्प है। माननीय प्रधानमंत्री मंत्री नरेन्द्र मोदी जी के डंाम पद दमू प्दकपं के रूप के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना ही उनका अभीष्ट है।

डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा के व्यक्तित्व की कतिपय विशेताएं हैं:-

1. कर्मठता और लगनशीलता:- डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा के व्यक्तित्व एक महत्वपूर्ण विशेषता है उनकी कर्मठता और लगनशीलता। वे अपने काम में पक्के हैं और धुन के मतवाले हैं। ऐसे ही कर्मठ योद्धाओं के लिए राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है:

नीद कहाँ उनकी आंखों में जो धुन के मतवाले हैं!

गति की तृषा और बढ़ती, जब पड़ते पद में छाले हैं।

जागरूक की जय निश्चित है, हार चुके सोने वाले।

लेना अनल किरीट भाल पर, ओ आसिक होने वाले।

 

2. निष्काम कर्म योगी:- भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को प्रबोधते हुए कहा है कि – योगःकर्मसु कौशलम् अर्थात् हे अर्जुन! कर्म की कुशलता का नाम ही योग है। मुझे यह लिखने में प्रसन्नता हो रही है कि डॉ सिन्हा अब तक के अपने जीवन में अपने कर्माे को कुशलता पूर्वक संपादित किया है। इन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन निष्काम भाव से करके अपनी आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक मिशाल उपस्थित किया है। निष्ठा पूर्वक देशहित में कार्य करने के लिए डॉ. सिन्हा को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। इनके इन्हीं सामाजिक, सांस्कृतिक एवम् राष्ट्रीय कार्यों को देखते हुए थावे विद्यापीठ, गोपालगंज (बिहार) ने 21 नवम्बर 2021 को अपने चित्रकूट अधिवेशन में इन्हें विद्यावाचस्पति (पीएचडी) की मानद उपाधि प्रदान कर अलंकृत किया था।

3. काम के धुनी:- नीतिकार राजा भतृहरि ने अपने नीतिशतक में लिखा है कि संसार में तीन प्रकार के लोग होते हैं: अधम -जो विघ्नों के भय से काम शुरू ही नही करते। मध्यम-जो काम तो शुरू करते हैं मगर विघ्नों के आने पर काम छोड़ देते हैं। उत्तम -जो विघ्नों के बार बार आक्रमण करने पर भी कामयाबी हासिल किए बगैर काम से मुंह नहीं मोड़ते:-

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयने नीचौः

प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः।

विघ्नै पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः,

प्रारभ्य चोत्तमजनारून परित्यजंति।

डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा भतृहरि जैसे नीतिकारों की नीतियों को चरितार्थ करनेवाले कर्मवीर योद्धा हैं। ऐसे कर्मवीरों के हाथ से कार्बन हीरा और कांच उज्ज्वल रतन बन जाता है।

4. न्यायप्रियता:- नीतिकार भतृहरि ने लिखा है कि न्यायप्रिय निंदा और स्तुति में समान रहते हैं, संपन्नता और विपन्नता में वे स्थिर रहते हैं, मृत्यु के उपस्थित होने पर भी वे राजा शिवि, दधीचि, हरिश्चंद्र, महाराज रघु, दशरथ और राम की तरह सत्य और न्याय पथ से विचलित नहीं होते हैं। मुझे यह कहने में प्रसन्नता हो रही है कि इस घोर कलियुग में डॉ. पी.के.सिन्हा ऐसे ही न्यायप्रिय इंसान हैं।

5. अक्लांत पथिक:- जिंदगी एक लहरदार और पेंचदार सफर है, जिसकी राहों में केवल फूलों की नहीं, कांटों की सेज है। ईधर उधर बिखरे फूल जीवन के आकर्षण के केन्द्र बिंदु हो सकते हैं, लेकिन फूल की मुस्कान पर रीझने वाला राही, दिग्भ्रमित हो सकता है, कर्तव्य के शिलाखंड से विलग होकल हतप्रभ हो सकता है। सफर लंबा है और मंजिल दूर है, उस मंजिल तक पहुंचने के लिए जिस अटूट साहस और चूड़ांत निष्ठा की अपेक्षा है, उससे डॉ.पी.के.सिन्हा का व्यक्तित्व और कृतित्व ओत-प्रोत है।

6. विनयी एवम् निरहंकारी व्यक्तित्व के धनी:- डॉ. सिन्हा से अनेक बार मुझको मिलने का अवसर मिला है। उनकी विनम्रता और निरहंकारिता ने मुझे सदैव प्रभावित किया है। इतने उच्चे पद पर रहने के बावजूद उनके मन में पद का कोई अहंकार नहीं है। तुलसी ने मानस में लिखा है कि:-

को जनमा अस जग माहीं। प्रभुता पाई जाही मद नाहीं।।

वे तुलसी की इस मान्यता के विपर्य हैं। यों कहें वे मानस के भरत हैं। किसी कवि ने ठीक हैं कहा है कि:-

धन रहने पर भी गर्व नहीं, चंचलता नहीं जवानी में।

जिसने देखी उनकी छवि, वही पड़ा हैरानी में।

7. हरदिल अजीज मित्र:- आज के समय में सबके दिल को जीतना बहुत मुश्किल है। मित्र बनाना आसान है लेकिन मित्रता का निर्वाह करना बहुत कठिन है। डॉ. सिन्हा ने तुलसी के मानस धर्म को पढ़ा ही नही उसे अपने जीवन में चरितार्थ भी किया है:-

जे न मित्र दुख होहि दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पितक भारी।

देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमानि सदा हित करई।

8. चुबंकीय एवम् पारस व्यक्तित्व के धनी:- डॉ. सिन्हा का व्यक्तित्व चुबंकीय है। एक बार भी जो उनसे गलती से मिला वे अपने आचार विचार और संस्कार से उसे सदा सदा के लिए अपना बना लेते हैं। केवल अपना ही नहीं बनाते बल्कि अपने पारस व्यक्तित्व से मिलने वाले को सोना बना देते हैं। ऐसे पारस धर्मी व्यक्तित्व वाले सज्जन के लिए तुलसी ने मानस में लिखा है:-

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई।।

डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा राष्ट्र सृजन अभियान के संस्थापक दादाश्री महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामविलास सिंह जी के आधुनिक भारत के सपनों को साकार करने के लिए बिना रूके, बिना झुके, बिना थके निरंतर गतिशील हैं। राष्ट्र सृजन अभियान दादाश्री बाबू रामविलास सिंह जी के सपनों का आधुनिक भारत निर्माण के लिए संकल्पित सगंठन है। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा जी ने भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सपनों का आधुनिक भारत-आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर रखा है। डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा के दादाश्री महान स्वतंत्रता सेनानी, किसान नेता, समाज सुधारक बाबू रामविलास सिंह अक्सर मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जन्मभूमि अयोध्या आकर अपने संतानों के लिए आशीर्वाद मांगते थे कि हे प्रभु आप ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि वे दूसरों के सुख में सुख देखें और दूसरों के दुख से दुखी हो। मेरे बच्चों में राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव हमेशा पैदा होते रहे। दादाश्री हमेशा लोगों को जीव दया, गाय माता की सेवा का पाठ पढाया करते थे। वे कहा करते थे कि पहली रोटी गाय माता को एवं अंतिम रोटी काल भैरव के प्रतीक कुत्ता को दिया करो। डॉ. सिन्हा अपने दादाश्री बाबू रामविलास सिंह जी के बताये रास्ते पर चलकर समाज सेवा एवं राष्ट्र सेवा को अपना सर्वस्व जीवन समर्पित कर दिया है। आज डॉ. प्रद्युम्न कुमार सिन्हा अंतर्राष्ट्रीय चिंतक व विचारक, समाज सुधारक प्रखर राष्ट्रवादी वक्ता के रूप में अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित होकर विश्व में भारत का मान सुशोभित कर रहे हैं। डॉ. सिन्हा भारत की उभरती ताकत का भी विश्व में अहसास दिला रहे हैं।

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