शीर्षक- काला रंग एक अभिशाप
विषय – सामाजिक समस्या
अभिशाप बना क्यों काला रंग
बचपन से ही शुरू हो गई
इस रंगभेद की पहली जंग
अनेक उपनाम मिले मुझको
सोच सोच रह जाती दंग
काले मेरे इष्ट देव भी
पूजे उनको दुनिया बहु रंग
अभिशाप बना क्यूँ काला रंग
मेरे आत्मविश्वास के आगे
फीके पड़ गए सारे प्रतिबंध
इसी रंग की बदौलत महफूज
मैं उड़ती रहती बनके पतंग
गोरे काले का भेदभाव
मुझको करता है बहुत तंग
काले क्या इंसान नहीं
जो बोले सब बदसूरत बदरंग
अभिशाप बना क्यूँ काला रंग
उपेक्षा ताना उपहास सुनकर
हो जाता दिल का सुकून भंग
इस भेदभाव की नजरों से
जी लेता हूं बनके मलंग
काले की कदर नहीं क्यूँ तुझको
है नैन सुसोभित काजल संग
श्याम वर्ण की करे उपेक्षा
पर केस हो जैसे काले भुजंग अभिशाप बना क्यूँ काला रंग
मानव आकृति का सुंदर स्वरूप
मैं करता हूं खुद को पसंद
गांधीजी तक बच नहीं पाए
गोरों का यह कैसा ढंग
सुंदरता ढूढ़े सब बाहर
झाँके न कोई भीतर अंग
न जाने कब बदलेगा समाज ये
कब होगा यह अंतर बंद
अभिशाप बना क्यूँ काला रंग
काले रंग के धागे से
नजर लगे तो उतरे तुरंत
खुश नसीब है काला रंग
जो बुरी बला को कर दे खत्म
काली है कोयल परंतु
मधुर बहुत है उसका कंठ
काले को भी स्वाभिमान से
जीने का हो पूरा प्रबंध
अभिशाप बना क्यूँ काला रंग
नाम- सीमा त्रिपाठी
शहर- लालगंज प्रतापगढ़