आशीष नामदेव शहडोल ब्यूरो शहडोल। सभी प्राणी, अपने स्वभाव के परवश हुए कर्म करते हैं, ज्ञानवान भी, अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है, फिर इसमें किसी का हठ क्या करेगा?,,,
प्रकृति के अपने अटल नियम होते हैं, अपनी संरचना के अनुसार, ये जहां भी होते हैं, अपने गुणों के साथ रहते हैं,,यह अंतिम खोज है अब तक का,,,इसे हम न मानकर, अपने आहार, बिहार,रहन सहन, परिधान में कितना भी परिवर्तन क्यूं न कर लें, “प्रकृति के गुणों व उसकी अटलता”में परिवर्तन, अपने जीवन शैली को उत्कृष्ट बनाने, सभ्य बनाने, आधुनिकता के नाम पर, नहीं कर सकते हैं,,, और यह परिवर्तन हम या हमारे बीच के ही भौतिक उन्नति के नाम पर,आहार, परिधान, बराबरी, अधिकार जैसे भावनाओं के साथ, कुछ भौतिक सम्मान,पद, वैभव तो प्राप्त कर सकते हैं या कुछ लोगों को भी करा सकते हैं,पर सभी प्राणियों को, समग्रता के साथ उपलब्ध नहीं करा सकते हैं,,, क्योंकि “मानव का हठ, प्रकृति के गुणों व उनके अटल नियमों के अधीन ही है “,,,ये मानव हठ, प्रकृति के साथ खेलवाड़ करते हुए,मानव समाज को और विकृत स्वरूप देता जा रहा है, बल्कि पशुता की ओर बढ़ रहा है,,, जिसके असहनीय स्वरूप आज बहुतायत रूप में देखने को मिल रहें हैं,,,सभ्य व उत्कृष्ट जीवन शैली प्राप्त करने के नाम पर,, भौतिक उन्नति की नींव मजबूत की जा रही है, जबकि आध्यात्मिक व सनातन मूल्यों को गौड़ मानकर,नकारा जा रहा है,,यह मानव समाज के लिए, आनेवाली पीढ़ी के लिए अत्यंत घातक है,, इससे बचने के लिए”गीता के सूत्रों “को स्वतन्त्रतापूर्वक,हर हांथ में,हर घर में,हर मन में हो,,, के लिए प्रयत्न कर,, यथार्थ भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति पथ का निर्माण करना चाहिए,,, इसमें विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य (महिला व पुरुष दोनों)को सम्मिलित होना होगा, अपने -अपने प्रकृति व स्वभाव के मापदण्डों के साथ,,,जय योगेश्वर,,,