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जिसे आठाेयाम हर अवस्था में सिर्फ कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते है वही गाेपी है – आचार्य पंडित रवि शास्त्री जी महाराज

जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह

दमोह. ग्राम फुलर मे चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिवस मे कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री जी महाराज ने कहा कि जिसे आठाे याम हर अवस्था में कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते वही गाेपी है महारास की लीला काे साधारण लीला नही है रास का वास्तविक अर्थ हैं रस का समूह “रसो वै सः” – वह वास्तव में रस है।भगवान श्री कृष्ण रस है।रसानाम् समूहः इति रासः अर्थात् रसों के समूह को रास कहते हैं।परब्रह्म परमात्मा जो रस है उनकी रसमयी क्रीडा जो रसो का समूह यानि एकत्रीकरण है वह रास है।संतजन एक सुंदर भाव बताते हैं की परमात्मा का एहसास ही रास हैं, आत्मा का परमात्मा से मिलन ही रास हैं।जबकि जीवात्मा का परमात्मा से मिलन महारास हैं।गोपी कौन हैं, और गोपी का अर्थ क्या हैं गोपी कोई स्त्री नही हैं, किसी स्त्री का नाम गोपी नही हैं।फिर गोपी कौन हैं ब्रज के संत बताते हैं- गोपी कोई साधारण गोपी नही हैं।जिसकी आँखों में काजल बन कर भगवान कृष्ण बसे रहते हो वो जीव गोपी हैं।स्त्री हो, पुरुष हो, चाहे कोई भी हो, जो कृष्ण प्रेम में डूब गया वो गोपी हैं।जिसे आठों याम हर अवस्था में कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते हैं, वो गोपी हैं।केवल श्रृंगार करके या जोगन बन के ऐसे वृन्दावन की गलियों में घूमना या कहीं भी घूमना या दिखावा करना गोपी नही हैं।वो गोपी भेष हो सकता हैं, पर वास्तव में जब हमें न कहना पड़े की हम गोपी हैं साक्षात परमात्मा आ जाये कहने के लिए की हाँ ये मुझसे प्रेम करती-करता हैं और ये मेरी गोपी हैं, तब भक्ति सार्थक हैं।जिसको अपना होश हैं वो गोपी नहीं हैं, जिसको केवल अपने प्रियतम का होश हैं वह गोपी हैं।नारद जी कहते हैं- परमात्मा का विस्मरण होते ही ह्रदय का व्याकुल हो जाना ही भक्ति हैं।गोपी एक क्षण के लिए भी भगवान को नही भूलती।इंद्रियों का अर्थ ‘गोपी’ भी होता है, जो अपनी इंद्रियों से भगवत रस का पान करे, उसे भी गोपी कहा जाता है।

महारास भगवान कृष्ण और गोपियों की उस अद्भुत अभिभूत करने वाली नृत्य व संगीत की अनुपम लीला है, जिसमे की संदेह होकर विदेह का वर्णन मिलता है।यह चेतना का परम चेतना से मिलान का संयोग है, यह भक्ति की शुद्धतम अवस्था है।गोपियाँ कोई साधारण स्त्रियां नहीं बल्कि वेद की ऋचाएं वेद की ऋचाएं कुल एक लाख हैं, जिनमें 80 हजार कर्मकाण्ड और 16 हजार उपासना काण्ड की एवं चार हजार ज्ञान काण्ड की हैं।कुछ गोपियाँ तो जनकपुर धाम से पधारी हैं जिन्हें भगवती माता सीता जी की कृपा प्राप्त है।त्रेतायुग में भगवान राम जब भगवान राम को दंडकारण्य के ऋषि-मुनियों ने धनुष बाण लिए वनवासी के रूप में देखा तो इनकी इच्छा हुई की- प्रभो! हम तो आपकी रासलीला में प्रवेश पाने की प्रतीक्षा में तप कर रहे हैं।तो ये दंडकारण्य वन के ऋषि मुनि हैं।जनकपुरधाम में सीता जी से विवाह कर जब श्रीराम जी अवध वापस लौटे तो अवधवासिनी स्त्रियाँ श्रीराम जी को देखकर सम्मोहित हो गईं।श्रीराम जी से प्राप्त वर के प्रभाव से वे स्त्रियाँ ही चंपकपुरी के राजा विमल के यहाँ जन्मी।महाराज विमल ने अपनी पुत्रियाँ श्रीकृष्ण को समर्पित कर दीं और स्वयं श्रीकृष्ण में प्रवेश कर गए।इन विमल पुत्रियों को भी श्रीकृष्ण ने रासलीला में प्रवेश का अधिकार दिया।वनवासी जीवन यापन करते हुए पंचवटी में श्रीराम जी की मधुर छवि का दर्शन कर भीलनी स्त्रियाँ प्रभु भक्ति मे मग्न हाे उठीं और श्रीराम जी के विरह की ज्वाला में अपने प्राणों का त्याग करने को उद्यत हो गईं।तब ब्रह्मचारी वेष में प्रकट होकर श्रीराम जी ने उन्हें द्वापर में श्रीकृष्ण मिलन का आश्वासन दिया।भगवान धन्वन्तरि के विरह में संतप्त औषधि लताएँ भी श्रीहरि की कृपा से वृंदावन में गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।जालंधर नगर की स्त्रियाँ वृंदापति श्रीहरि भगवान का दर्शन कर भक्त भाव को प्राप्त हो जाती हैं, और श्रीहरि भगवान की कृपा से जालंधरी गोपी रूप में रासलीला में प्रवेश का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।मत्स्यावतार में श्रीहरि भगवान का दर्शन कर समुद्र कन्याएँ मोहित हो जाती हैं और वे भी भगवान मत्स्य से प्राप्त वर के प्रभाव से समुद्री गोपी बनकर रासलीला में प्रवेश का अधिकार प्राप्त करती हैं।वार्हिष्मती की स्त्रियाँ भगवान पृथु का दर्शन कर भावोन्मत्त हो जाती हैं और पृथु कृपा से ही वार्हिष्मती गोपी बनने का सौभाग्य प्राप्त करती हैं।गन्धमादन पर्वत पर भगवान नारायण के कामनीय रूप का दर्शन कर स्वर्ग की अप्सराएँ भावाेन्मत्त हो जाती हैं और नारायण कृपा से ही नारायणी गोपी बनकर प्रकट हो जाती हैं।इसी प्रकार सुतल देश की स्त्रियाँ भगवान वामन की कृपा से गोपी बनती हैं।

दण्डक वन के ऋषि, आसुरी कन्याएं व भगवान के भक्तों ने भगवान की आराधना कर गोपियों का शरीर धारण किया।महारास में भगवान ने अपने दिए हुए वचन के

अनुसार इन सभी को आमंत्रित किया और सभी को महारास में शामिल कर अपना वचन निभाया।गोपियों के स्रोत और स्वरूप अनन्त हैं, परंतु ये सभी साधन सिद्धा हैं और इनकी सकाम उपासना है।हम लोग प्रेम के विषय में बोलते बहुत हैं करते नहीं हैं।जबकी गोपियाँ बोलती नहीं हैं बस प्रेम करती हैं।बिना बोले ही आपकी पुकार उस परमात्मा तक पहुँच जाये, जो शरीर नही हैं आत्मा हैं।

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