बदनावर।
बखतगढ़ व्यसन मुक्ति प्रणेता आचार्यश्री रामलालजी “रामेेश” के आज्ञानुवर्ती शासनदीपकश्री प्रकाशमुनिजी एवं शासनदीपक तपस्वीश्री किशोरमुनिजी ठाणा 2 बखतगढ़ के श्रीवर्धमान स्थानक भवन पर विराजित है। मुनि वृंद के दर्शन, वंदन, मांगलिक श्रवण के साथ प्रातः 7 बजे आज्ञा, प्रातः 9 बजे व्याख्यान, दोपहर 2 बजे ज्ञान चर्चा, रात्रि 7:30 बजे पुनः ज्ञान चर्चा (श्रावक वर्ग) आदि का श्रावक श्राविकाएं प्रतिदिन लाभ ले रहे है। मुनिवृंद सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्व ज्ञान की बातें बता रहे है। जिन्हें सभी एकाग्रता पूर्वक श्रवण कर रहे हैं। बखतगढ़ के श्री वर्धमान स्थानक भवन में आयोजित धर्मसभा में शासनदीपकश्री प्रकाशमुनिजी ने फरमाया कि अभी हम जन है, जैनत्व को धारण करके ही जिनत्व को प्राप्त किया जा सकता है। सत्य को जानते हुए भी हमें सत्य प्राप्त नहीं हो रहा है। प्रभु ने राग-द्वेष को क्षय कर दिया है। प्रभु की वाणी में राग – द्वेष नहीं होता है। प्रत्येक प्राणी के लिए प्रभु की वाणी निष्पक्ष एवं एक समान होती है। आत्मा को चौदह पूर्व का ज्ञान होने व संपूर्ण लब्धि प्राप्त होने के बाद भी देखा नहीं जा सकता है। आत्मा को केवल ज्ञान व केवल दर्शन से ही देखा जा सकता है। क्षणभंगुर शरीर यहीं रहने वाला है। कर्मों से छुटकारा पाकर मोक्षगामी तो केवल आत्मा ही बनती है।
कर्मों का राजा मोहनीय कर्म को जीतना बहुत कठिन है
शासनदीपकश्री किशोरमुनिजी ने फरमाया कि मोहनीय कर्म को जीतना बहुत कठिन है। कर्म आठ होते है। यदि जीव ने कर्मों का राजा मोहनीय कर्म को जीत लिया तो शेष सातों कर्म स्वतः ही जीत लेंगे। मोह से राग व द्वेष उत्पन्न होता है। राग – द्वेष दोनों ही कर्म के मूल बीज है और यह दोनों ही जन्म मरण का मूल कारण भी है। हमें राग – द्वेष को मन से हटाकर संसारी पदार्थों पर रही हुई आसक्ति से हटना पड़ेगा। कषाय मन को मलिन करने वाली है। क्रोध, मान, माया, लोभ ये चारों कषायों को जो जीत लेता है वह वितरागी बन जाता है। जीव जैसी क्रिया करता है, वैसा कर्म बंध होता है। भाव से भी कर्म बंध हो जाता है। इसलिए कर्मों को क्षय करेंगे तभी मोक्ष को प्राप्त होकर चारों गति के जन्म मरण से छुटकारा मिल सकता है। व्याख्यान के बाद बखतगढ़ गौरव साध्वीश्री स्तुतिश्रीजी के सांसारिक पिता चंद्रप्रकाश व्होरा परिवार की ओर से सभी श्रावक श्राविकाओं को प्रभावना वितरित की गई। धर्मसभा का संचालन दिलीप दरड़ा ने किया।