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मंडला का अनोखा गांव, जहां आदिवासी एक दिन पहले मनाते हैं दिवाली, जानें मान्यता गांव के लोग कई पीढ़ियों से ही इस तरह से त्योहार मनाते चले आ रहे है

मंडला से सुदर्शन टुडे न्यूज जिला ब्यूरो चीफ हीरा सिंह उइके की रिपोर्ट

मंडला:- पूरी दुनिया में हर साल कार्तिक अमावस्या को ही दिवाली मनाते है. क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीरामचंद्र लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे. और उनका दीपों से स्वागत हुआ था. इसलिए ये दीपावली पर्व मनाया जाता है. लेकिन धनगांव की परंपरा अलग है।देशभर में इस साल लक्ष्मी पूजा 24 अक्टूबर सोमवार को मनाई गई है, लेकिन मध्य प्रदेश के मंडला जिले में एक ऐसा गांव है, जहां दिवाली तय तिथि से एक दिन पहले नरक चौदस को ही मना ली जाती है. सिर्फ इसी साल ही नहीं बल्कि हर साल इस गांव में दिवाली एक दिन पहले ही मना ली जाती है. इसके पीछे ग्रामीणों की अपनी परंपरा और मान्यता है. यहां एक साथ मिलकर ग्रामीण पूजा करते हैं. दीप जलाते हैं.और पटाखे फोड़ने के साथ ही सारा गांव मिलकर अपना आदिवासी नृत्य सैला डांस कर खुशियां बांटते हैं।मंडला जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर मोहगांव विकासखंड में एक ऐसा गांव है. जहां एक दिन पहले ही दिवाली का त्योहार मना लेते हैं. गांव के लोग किसी अनहोनी या संकट से बचने के लिए कई पीढ़ियों से इस त्योहार को इसी परंपरा के तहत मनाते चले आ रहे हैं. जिले के मोहगांव ब्लॉक के अंतर्गत धनगांव आता है, जो कि बैगा आदिवासी बाहुल्य गांव है. यहां के लोग परंपरागत रूप से कई वर्षों से इसी तरह से एक दिन पहले त्यौहार जैसे दीपावली, होली और हरियाली मनाते आ रहे हैं. पूरी दुनिया में हर साल कार्तिक अमावस्या को ही दिवाली मनाते है. क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीरामचंद्र लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे. और उनका दीपों से स्वागत हुआ था, दीपावली पर्व मनाया जाता है लेकिन धनगाँव की परंपरा अलग है।गोवर्धन पूजा पर अपनों को भेजे ये शुभकामना संदेश परिवार के किसी भी सदस्य की अचानक मौत धनगाँव के ग्रामीण फग्गुआ लाल बताते हैं कि उनके बड़े बुजुर्गों ने बताया था कि त्योहार वाले दिन पूजन करने से घर के सदस्य गंभीर रूप से बीमार पड़ने लगते थे, परिवार के कोई सदस्य की मौत तक हो जाती थी या प्रकृतिक अनहोनी तक होने लगती थी इसके चलते अगले त्योहारों को एक दिन पहले ही मना लेते हैं ताकि कोई घर या गांव में विपदा ना आए, बैगाओं का अब इस तरह त्यौहार गांव में मनाने की परंपरा ही बन गई है।छा गए थे संकट के बादल गांव की सुखी लाल बताते हैं कि गांव के लोग कई पीढ़ियों से ही इस तरह से त्यौहार मनाते चले आ रहे हैं यहां पर होली, दीपावली, हरियाली जैसे त्यौहार एक दिन पहले ही मना लेने की परंपरा बन गई है, करीब सवा सौ वर्ष पहले तय तिथि अनुसार सबके साथ ही त्योहार मनाने की परंपरा शुरू की गई थी लेकिन फिर गांव में संकट आने लगा, लोगों के घरों में मौत होने लगी तो फिर से गांव के लोगों ने एक दिन पहले ही त्यौहार मनाने की परंपरा शुरु कर दी, जो आज भी जारी है और यह त्यौहार हम एक दिन पहले से मनाना शुरू करते हैं जो कि पूरे 5 दिनों तक मनाते ही रहते हैं। गांव के ही रक्कू यादव ने बताया कि धार्मिक व पारंपरिक मान्यता के अनुसार गांव के देवधामी को प्रसन्न रखने के लिए गांव में प्रमुख तीज त्यौहार एक दिवस पूर्व मनाने की परंपरा का पालन ग्रामीणों द्वारा किया जाता रहा है।

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