राहुल गुप्ता की रिपोर्ट
अंजड़:- स्थानीय अन्नपूर्णा भवन में सार्वजनिक ज्ञान गंगा सत्संग समिति द्वारा आयोजित श्री वराह पुराण कथा के अंतिम दिन शनिवार को पण्डित ललित किशोर दाधीच ने अमावस्या एवं पूर्णिमा तिथि के अलावा पित्तरों की कथा बताते हुए कहा कि महातपा नाम के ऋषि ने प्रजापाल नाम के राजा को कथा सुनाते हुयर कहा कि अमावस्या तिथि अति पावन मानी गई जिसमें ज्ञात अज्ञात पित्तरों का तर्पण का विधान है। भगवान ने अपने से ज्यादा पित्तरों को आदर दिया जो व्यक्ति पित्तरों को सन्त सेवा, गौसेवा एवं गरीब सेवा करके तृप्त करता है पित्तर उन्हें सुसमृद्ध का आशीर्वाद देते है।
“पित्रम तारियती इति पुत्रः” यानी पित्तरों को तारने के लिए जो सोचता है वही पुत्र है। पुत्र शब्द का जन्म ही पित्तरों की सेवा से हुआ है। पुत्र वही है जो पित्तरों के लिए सत्कर्म करता है।
आगे पण्डित जी ने तिल एवं कुशा का महत्व बताते हुए कहा कि तिल एवं कुशा का जन्म भगवान वराह के शरीर से हुआ इसलिए इन्हें तुलसी के समान पवित्र माना गया। वही आगे उन्होंने बताया कि राजा दक्ष की पुत्री रोहणी देवी ने चन्द्रमा से अति प्रेम किया व बड़वानी जिले के राजघाट तीर्थ स्थित माँ नर्मदा की आराधना कर दक्ष पुत्री रोहणी होने का सौभाग्य प्राप्त किया उक्त कथा नर्मदा पुराण में भी आती है।
कथा समाप्ति के बाद सभी श्रद्धालुओ ने वराह पुराण कथा की आरती करि व प्रसादी का वितरण कर कथा को विराम दिया।