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JHIRNIYA

एक नदी को सात बार पार कर जाना पड़ता है घर

सुदर्शन टुडे संवाददाता शिवशंकर राठौर

झिरन्या। दक्षिणी सीमा (बुरहानपुर) और पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे छोटी नीलीखाली वनग्राम में अभी भी वनवासियों को रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या से जूझना पड़ रहा है। वहां ना सड़क है, ना पीने का पानी और ना ही कोई रोजगार ? वहां जाना भी मौत को दावत देने से कम नहीं है। ग्रामीण परेशान हो रहे हैं।
विडंबना है कि वहां एक ही रूपारेल नदी को सात बार और रास्ते के पांच घाटों की सीधी चढ़ाई चढ़ना उतरना पड़ती है। इसलिए आजादी के वर्षों बाद भी वहां विकास की किरणें नहीं पहुंच सकी है। मुखिया अनारसिंह मोरे की इच्छा शक्ति और हौसलों में कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने जीवन भर रोड और घाट सुधार के लिए काम किया, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। वे कहते हैं कि मेरे जीते जी रोड और घाट का काम हो जाए तो मन को अच्छा लगे। उन्होंने बताया कि कभी कभी खबर मिलती है कि रोड मंजूर हो गया, लेकिन फिर मामला कहां अटक जाता है यह पता ही नहीं चलता है। मुखिया की पत्नी प्यारीबाई 62 वर्ष के उम्र के पड़ाव को पार कर चुकी है, लेकिन जीवन जीने
कुओं का है मटमैला पानी इस प्रतिनिधि को महिला चम्पाबाई पति जगन सिर बोझ से पानी लाते हुए दिखाई दी। उसने बताया कि वह काफी दूर से खेत में से पानी ला रही है और कुआ भी ऐसी जगह पर खुदा हुआ है। जहां गिरने का खतरा बना रहता है। यहां और नई पीढ़ी को इस जोखिम भरे रास्ते से छुटकारा मिले, यह उनके मन की प्रबल इच्छा है। वह कहती है पुराने जमाने में बैलगाड़ी से ही आना जाना होता था और अब फटफटी आ गई है। नए लड़के उसी से आते जाते हैं और किसी अनहोनी की चिंता लगी रहती है। यहां के लोग भी रोज रोज जीना मरना सीख गए हैं। वहां के लोगों में नरसिंह पुत्र अमरसिंह और हरसिंह सुकलाल मोरे ने बताया कि आये दिन दुर्घटनाएं होती रहती है। यहां कोई काम-धंधा नहीं है और बाजार हाट से लेकर अनाज पिसाने भी झिरन्या जाना पड़ता है। यहां सिंगल फेस बिजली है, लेकिन इससे चक्की या पानी की मोटर भी नहीं चलती है। यदि डरकर घर में बैठे रहे तो बच्चों को खिलाएंगे क्या? यहां हमारे
* किसानों के खेत में कुछ कुएं है, जिसका मटमैला पानी हमें पीना पड़ता है और गर्मी में तो वह भी सूखने लगता है। जबकि यहां कोई सरकारी कुआ या हैंडपंप नहीं होने से हमें हमेशा पानी की परेशानी बनी रहती है।
रिश्तेदार और अन्य मेहमान भी बहुत कम आते हैं और जो एक बार आ गए वे भी दुबारा आने की सोचते नहीं है। यहां वनवासियों में नरसिंह और हरसिंह ने कहा कि हम एक बार मतदान का बहिष्कार कर चुके हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं करेंगे। अपनी पसंद से वोट जरूर देंगे, परन्तु यहां आने वाले नेताओं का विरोध करेंगे। उन्होंने बताया कि यहां चुनाव के समय बड़े-बड़े नेता आते हैं और आश्वासन देकर विश्वास दिलाते हैं। लेकिन चुनाव के बाद हमारी समस्याएं हल करने कोई नहीं आता है। और अब फिर हमें मुहं दिखाने कैसे आयेगे ? यह प्रतिनिधि वहां के हालातों से रूबरू हुआ तो अधिकांश लोग रोजगार के लिए पलायन कर चुके हैं और चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था।

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