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भाई-भाई के बीच में संपत्ति का नहीं, विपत्ति का बंटवारा होना चाहिए: स्वामी रत्नेश बुरा व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों ना हो, वह निंदनीय है

सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश कुमार)।

रामायण के पात्र हमें यह सिखाते हैं कि परिवार में भाइयों के बीच जब भी विपत्ति आए तब आपस में भाई-भाई के बीच में संपत्ति का नहीं विपत्ति का बंटवारा होना चाहिए, जिस तरह भरत ने किया। दुनिया में संपत्ति का बंटवारा तो हर भाई करता है लेकिन जो अपने भाई की विपत्ति का बंटवारा करें वह भाई भरत की तरह है। यह बात अयोध्या धाम से पधारे जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने नौलखी आश्रम पर विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के उपलक्ष्य में चल रही संगीतमय श्रीमद् बाल्मीकि रामायण के समापन दिवस में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही।

महाराजश्री ने लंका दहन में रावण के प्रसंग पर कहा कि कई चेहरों, मुखौटों के साथ जीने वाला व्यक्ति ही समाज का रावण है। बुरा व्यक्ति कितना भी योग्य क्यों ना हो, वह निंदनीय है। रावण के पास विद्या थी पर वो विद्वान नहीं था। ज्ञान था पर वो ज्ञानी नहीं था। लोगों पर शासन करता था पर अनुशासित नहीं था। तात्पर्य यह है कि केवल शब्द ज्ञान नहीं होना चाहिये, वह ज्ञान आचरण में भी होना चाहिये। भारतीय संस्कृति में व्यक्ति का मूल्यांकन धन, ऐश्वर्य के आधार पर नहीं, बल्कि सेवा और सद्गुणों के आधार पर किया गया है। मनुष्य को अपने पद और सेवा का उपयोग जनसेवा के लिए करना चाहिए। भरत रामराज की आधारशिला हैं। भरत ने सेवक बनकर भगवान श्री राम की पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर एक तपस्वी की भांति राज्य का संचालन किया। जो राजा सेवक बनाकर राज्य का संचालन करता है तभी वह राज्य रामराज कहलाता है। महाराज श्री ने कहा कि जिसका एक ही चेहरा हो वो श्रीराम है। बिना मुखौटे के एकरूप होकर जीना ही रावणीय वृत्ति पर विजय है। बुराई का चित्रण समाज के लिये घातक है। रावण दुर्गुणों का पुंज है तथा बुराई का प्रतीक है। कुछ ग्रन्थों में रावण के व्यक्तित्व का विराट् रूप देखने मिलता है, किन्तु श्रीरामचरितमानस का रावण, हीन और खलनायक है। रामायण में जटायु ने भी अपने प्राणों की परवाह न करते हुए स्त्री के लाज के लिए अपने प्राणों तक की आहुति दे दी। वह व्यक्ति ही इतिहास में याद रखा जाता है जो धर्म, संस्कृति और स्त्री की रक्षा के लिए त्याग करता है। समापन की कथा शुक्रवार को सुबह 9 से प्रारंभ हो गई थी। कथा को सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रोता पंडाल में पहुंचे थे।

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