बुढ़ार। श्रीराम जानकी मंदिर में 14 फरवरी से चल रहे पंचकुंडीय रुद्र महायज्ञ में पहली पंक्ति में शनिवार को सुश्री आस्था द्विवेदी ने लक्ष्मण परशुराम संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि अयोध्या नगरी के राजा दशरथ जी के पुत्र श्रीराम भगवान के विवाह का श्रवण करते हुए कहा कि धनुष भंग लीला के मंचन में राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह करने के लिए स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें आए कई देश के राजाओं के धनुष न उठा पाने से वह निराश हो गए और राजाओं से कहा तजहुं आसनिज निज गृह जाऊं लिखा न विधि बैदेही विवाहू कहकर निराशा के भाव व्यक्त कर दिए। राजा जनक के शब्द सुन लक्ष्मण जी उत्तेजित हो जाते हैं, जिन्हें श्रीराम ने शांत करते हुए कहा कि लखन तुम शांत हो बैठो। विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष का खंडन कर दिया। धनुष टूटने पर हुई घनघोर गर्जना सुन महिद्राचल पर तपस्या में लीन महर्षि परशुराम की तंद्रा भंग हो गई। श्री राम जी परशुराम को शांत करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उनके शांत ना होने पर लक्ष्मण जी कहते हैं बहु धनुहीं तौरीं लरिकाई कबहु न अस रिस कीन्ह गोसाई। ऐहि धनु पर ममता केहि हेतू। लक्ष्मण के शब्द सुनकर परशुराम का क्रोध अधिक बढ़ जाता है और वह लक्ष्मण को मारने के लिए दौड़ते हैं। श्रीराम व लक्ष्मण के स्वभाव को देख परशुराम जी विस्मय में पड़ जाते हैं और वह श्री विष्णु भगवान के दिया गया सारंग धनुष श्री राम को देते हुए उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं।