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श्रीराम विवाह की कथा सुन भक्त हुए भावविभोर,  विवाह के दृश्य का रसपान करते रहे श्रोता : पं.नवीन बिहारी शास्त्री 

संवाददाता / शिवकुमार विश्वकर्मा

श्रीराम राज्याभिषेक, दशरथ-कैकेयी संवाद व वनगमन प्रसंग सुनाया

खुरई। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर ग्राम नगदा में सिद्धेश्वर धाम देव हनुमान जी मंदिर के पास चल रही संगीतमय श्रीराम कथा में कथा वाचक पं. नवीन बिहारी शास्त्री जी महाराज ने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि सीता जी माता गौरी की पूजा के लिए फुलवारी से फूल तोड़ने जाती हैं। उसी फुलवारी में भगवान श्रीराम के दर्शन होते हैं। सीताजी की नजर श्रीराम पर पड़ती है तो वह मोहित हो जाती हैं। दूसरी तरफ भगवान राम को सीताजी के पैरों में पहने गए नूपुरों की आवाज मोहित करती है। माता गौरी की पूजा करते समय सीता जी अपने वर के रूप में श्रीराम को मांगती हैं। संगीतमय श्रीराम कथा सुनने के लिए ग्रामीण जन सहित क्षेत्र के दूरदराज से पहुंच रहे लोग।

शास्त्री जी द्वारा राम विवाह की जानकारी देते हुए श्रद्धालुओं को बताया कि शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को बड़े ही धूम धाम से राजा राम का विवाहोत्सव मनाया जाता है। यह महोत्सव विशेष रूप से मिथलांचल में बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। त्रेता युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था। उस समय मुनि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा करने के उद्देश्य से अयोध्या के महाराज दशरथ से उनके पुत्र राम व लक्ष्मण को मांग कर ले गए। यज्ञ की समाप्ति के बाद विश्वामित्र जनक पुरी के रास्ते से वापस आने के समय राजा जनक के सीता स्वयंवर की उद्घोषणा की जानकारी मिली। मुनि विश्वामित्र राम व लक्ष्मण को साथ लेकर सीता के स्वयंवर में पधारें। सीता स्वयंवर में राजा जनक ने उद्घोषणा की जो भी शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसके साथ सीता का विवाह किया जाएगा। स्वयंवर में बहुत राजा महाराजाओं ने अपने वीरता का परिचय दिया परन्तु विफल रहे। इधर जनक चिंतित होकर कहा कि लगता है यह पृथ्वी वीरों से विहीन हो गई है, तभी मुनि विश्वामित्र ने राम को शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने का आदेश दिया। भगवान राम ने मुनि विश्वामित्र की आज्ञा मानकर शिव जी की स्तुति कर शिव धनुष को एक ही बार में उठा कर प्रत्यंचाचढ़ा दी। उसके उपरान्त राजा जनक ने सीता का विवाह बड़े उत्साह व धूम धाम के साथ राम जी से कर दिया। तभी से हर साल मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को अयोध्या और मिथिला के कई मंदिरों में राम और सीता के विवाह धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सिया राम के भक्त पूरी धूमधाम के साथ बरात निकालते हैं और अंत में फेरों के साथ सिया राम का विवाह संपन्न होता है।

श्रीराम राज्याभिषेक, दशरथ कैकेयी संवाद, वनगमन का प्रसंग : कथा वाचक पं. नवीन बिहारी शास्त्री जी ने बताया कि भगवान राम जी के साथ- साथ उनके सभी भाइयों का विवाह भी जनकपुर में संपन्न हुआ। महाराज दशरथ, रानियां तथा तमाम अयोध्यावासी प्रसन्न हैं। एक दिन राजा के मन में अपनी बढ़ती अवस्था को देखकर विचार आया कि अब राज्य का कार्यभार रामचंद्र को सौंप देना चाहिए। राम जन-जन के प्रिय थे, इसलिए सभी दरबारियों ने इसका समर्थन किया। नगर में इस बात का एलान हुआ कि कल रामचंद्र का राजतिलक किया जाएगा। यह सूचना रानी कैकेयी की विशेष दासी मंथरा ने भी सुनी और जाकर रानी कैकेयी को सलाह दी कि वो राम के बदले अपने पुत्र भरत के लिए राज्य मांग लें और राम को 14 वर्षों के लिए वनवास भिजवा दें। कैकेयी पहले तो इसके लिए तैयार नहीं थीं मगर मंथरा की बातों में आकर सहमति दे दी। कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वरदान प्राप्त करने थे। मंथरा के कहने पर यही दोनों बातें वरदान में मांग लीं। राजा बहुत दुखी हुए, रानी को समझाया, मिन्नतें की मगर रानी अपनी बात पर अड़ी रहीं। श्रीराम ने सुना तो पिता के वचन की लाज रखने के लिए सहर्ष वन जाने को तैयार हो गए। सीता जी और लक्ष्मण जी ने भी साथ जाने की हठ की और अब तीनों ने ही वनवासी वेष में प्रस्थान किया। राजा दशरथ राम के वियोग में प्राण त्याग देते हैं। श्रीराम गंगा पार करने के लिए केवट से प्रार्थना करते हैं। केवट इंकार करता है और पार करने से पहले उनके चरण पखारता है। यह दृश्य भगवान के भक्तों के साथ संबंधों के दृष्टिकोण को दर्शाता है। भरत और शत्रुघ्न को ननिहाल से लौटने पर सारी बातें पता चलीं तो बहुत दुखी होकर कैकेयी को बुरा भला कहा, माता कौशल्या से क्षमा मांगी और राम जी को वापस अयोध्या लाने के लिए बन में प्रस्थान किया। संगीतमय श्री राम कथा 2 फरवरी तक चलेगी ।

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