सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश कुमार)।
स्थानीय जीवाजीपुर स्थित वेदांत आश्रम में समायोजित विराट शतचंडी व श्रीराम कथा के ग्यारहवें दिवस अनंतानंद द्वाराचार्य स्वामी डॉ. राम कमल दास वेदांती महाराज जी ने विश्वामित्र प्रसंग एवं अहिल्या उद्धार की कथा को सरस संगीतमय शैली के साथ वर्णन किया। उन्होंने ने कहा कि मनुष्य का कर्तव्य केवल अपने व अपने परिवार के बारे में सोचना ही नहीं है अपितु अन्याय और अनीति के विरुद्ध संघर्ष भी करना चाहिए। ताकि संपूर्ण विश्व में शांति की स्थापना हो और सभी मनुष्य परस्पर सौहार्दपूर्ण रह सके। महर्षि विश्वामित्र ने लोक कल्याणकारी यज्ञों की रक्षा के निमित्त राजा दशरथ से उनके परम प्रिय पुत्र अवतारी पुरुष श्रीराम और लक्ष्मण को मांगा। पहले तो राजा दशरथ ने अनेकों बहाने बना कर मना किया किंतु बाद में महर्षि वशिष्ठ के समझाने पर उन्होंने अपने प्राण प्रिय पुत्र राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के लिए दे दिया। स्वामी वेदांती जी ने बताया कि आदि शंकराचार्य ने कहा है कि हमारी आत्मा ही सीता है और इसी सीता को परमात्मा को समर्पित करना ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। पर यह बहुत कठिन है कि हम माया के प्रपंच से बचकर अपने जीवन में ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव ला सके। इस समर्पण के लिए श्रीराम श्रीरामचरितमानस में चार उपाय बताए गए हैं। वासना रुपी ताड़का का वध, मस्तिष्क में बैठी जड़ता रुपी अहिल्या का उद्धार, हृदय में रखे हुए अहंकार के धनुष का खंडन तथा काम की प्रतीक घोड़े को लगाम लगाना।जब हम अपने जीवन में अभिमान के धनुष को तोड़ देंगे तभी हमारी आत्मा रूपी सीता भगवान राम को प्राप्त कर लेगी। कथा मंच पर आज अहिल्या के उद्धार की झांकी का अद्भुत दर्शन कराया गया तथा स्वामी वेदांती जी के आह्वान पर नगर के अनेकों घरों में सुशोभित होने वाले बाल गोपाल ठाकुर जी की दिव्य झांकी सजाई गई। जिससे कथा पंडाल की शोभा अत्यधिक बढ़ गई। ठाकुर जी के आगमन पर उनका बेंड बाजों से स्वागत किया गया तथा आरती उतारी गई। कथा में विशेष रुप से पंजाब से पधारे चारधाम पीठाधीश्वर स्वामी नरहरी दास जी महाराज ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया और कहा कि गंजबासौदा के लोगों जैसी भक्ति कही भी देखने को नहीं मिलती है।