जिला ब्यूरो रूपेन्द्र राय
निवाड़ी। जिले की दोनों विधानसभाओं में संघ की कड़ी मेहनत रंग लाई जिसके कारण अप्रत्याशित परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। इस बार के चुनाव में लाडली बहनों के साथ संघ की भूमिका भी अहम मानी जा रही है। जहां जिलेभर की दोनों विधानसभाओं में संगठन कमजोर पड़ गया था तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने फ्रंट पर आकर डैमेज को कंट्रोल किया और जिसके कारण दोनों विधानसभा में मतदान का प्रतिशत भी बड़ा है और भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित प्रणाम प्राप्त हुए हैं। निवाड़ी विधानसभा में जहां तमाम विरोधों के बावजूद भी पिछली पंचवर्षीय की तुलना में इस बार दोगुने अंतराल से विजय श्री प्राप्त हुई है। तो पृथ्वीपुर विधानसभा में भी भाजपा प्रत्याशी जीत के बहुत नजदीक पहुंचकर सफलता प्राप्त नहीं कर सके ।
राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों का मानना है कि जहां एक ओर संगठन ने भीतर घात किया तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी विचारधारा की जीत के लिए संघ के स्वयंसेवकों को फ्रंटलाइन पर लगाकर संजीवनी बूटी का काम किया है। संघ के कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर उतरकर डैमेज कंट्रोल किया और बिना किसी शोरगुल किए मोटरसाइकिलों से गांव -गांव जाकर लोगों को राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दों को समझाया जिससे भाजपा के पक्ष अंडर करंट पैदा हो गया ।जिसका परिणाम जमीनी स्तर पर देखने को मिला है। जहां एक ओर कई बड़े नेताओं के द्वारा खुला विरोध तथा पूर्व में भाजपा के ही दिग्गज नेताओं को दूसरी पार्टियों से प्रत्याशी बनाए जाने के बावजूद संघ की खामोश मेहनत ने सफलता का शोर मचाया है।
निवाड़ी विधानसभा में एक ही पार्टी में कई पदों पर काम कर चुके चार प्रत्याशी अन्य दलों एवं निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ रहे थे। जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी बहुत कमजोर पड़ गई थी लेकिन संघ की अहम भूमिका ने भाजपा प्रत्याशी को अच्छे खासे मतों से हैट्रिक लगाने में सफलता दर्ज कराई है। इस बार संघ ने अपनी विचारधारा की जीत के लिए निवाड़ी में ही नहीं वल्कि हाल ही में संपन्न हुए चुनाव में मध्य प्रदेश सहित सभी राज्यों में जमीनी स्तर पर बिना शोर गुल किए चुनाव की कमान अपने हाथों में संभाल रखी थी । जिसका परिणाम भी देखने को मिला संघ ने इस बार लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर राज्यों के चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया। 2018 के विधानसभा चुनाव में संघ ने सीधा हस्तक्षेप नहीं किया था, तो भाजपा को मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। संघ इस बार के चुनाव में पिछले चुनावों की कमियों को दोहराने देना नहीं चाहता था, इसलिए संघ के चिंतकों ने इस चुनाव में वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर रणनीति बनाई। इसी का परिणाम रहा कि तीन राज्यों में प्रचंड जीत मिली। इसमें संघ का माइक्रो मैनेजमेंट और मतदान प्रतिशत बढ़ाने की नीति कारगर साबित हुई। चुनाव से पहले भाजपा की गुटबाजी कई बार सतह पर भी देखी गई है, किंतु संघ ने कुनबे की कलह को कम करने में महती भूमिका निभाई। और जहां इसमें भी सफलता नहीं मिली तो सोचने फ्रंट पर आकर स्वयं मोर्चा संभाल लिया। जिसके कारण मध्य प्रदेश सहित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी भाजपा का विजय पताका पहरा रहा है। जिसको देखकर पूरा देश अचंभित हो रहा है।
स्वयंसेवकों ने बढ़ाया मतदान प्रतिशत
जिस प्रकार से भाजपा ने अपने बूध प्रभारी और पन्ना प्रभारी बनाए, उसी तरह संघ ने भी अपने प्रभारी बनाए थे। ये कहीं- कहीं निर्दलीय प्रत्याशियों के एजेंट के रूप में हर मतदान केंद्र पर मौजूद थे तो कहीं – कहीं मतदान केंद्र के बाहर घर-घर जाकर लोगों को देश हित में मतदान करने के लिए प्रेरित करते दिखाई दिए।इससे संघ के पास तुरंत गोपनीय फीडबैक जा रहा था कि कौन से इलाके में मतदान कम हो रहा है और कहां स्थिति ठीक है। मतदान एजेंट से जानकारी मिलने के बाद जिस क्षेत्र में मतदान कम हो रहा था, वहां संघ के स्वयंसेवक घर-घर जाकर लोगों को मतदान करने के लिए आग्रह कर रहे थे। संघ ने मतदान से पूर्व ही ऐसे मतदाताओं को चिह्नित कर लिया था, जो शहर छोड़कर जा चुके हैं या किसी कारण से शहर में नहीं हैं। इन लोगों से संपर्क करके इन्हें मतदान के लिए आने का आग्रह किया। ये जिस शहर में रह रहे थे, वहां के स्वयंसेवकों ने भी उनसे संपर्क किया और उन्हें मतदान के लिए प्रेरित किया गया। यही कारण रहा कि कई मतदान केंद्रों पर संघ के प्रयासों से बंपर वोटिंग हुई । और निवाड़ी जिले का मतदान प्रतिशत 81% से अधिक पहुंचा।
संघ ने राष्ट्रहित की विचारधारा से जुड़ने के लिए किया आह्वान
विधानसभा चुनाव के दौरान संघ के संगठन मंत्रियों को जिले के पालक के रूप में विधानसभाओं की मॉनिटरिंग का दायित्व दिया गया था। संघ के पालकों एवं दायित्वान स्वयंसेवकों ने नेताओं की बजाय नाराज कार्यकर्ताओं को घर जाकर मनाया। और नेताओं की बजाय विचारधारा से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। संघ ने कार्यकर्ताओं में भी उत्साह जगाने का काम किया। जो कार्यकर्ता विधायकों या स्थानीय नेताओं के चलते नाराज थे, उन्हें समझाया कि हमें नेताओं के बजाय विचारधारा के साथ रहना चाहिए। संघ प्रमुख का एक वीडियो भी आया था। उन्होंने नोटा के बजाय मौजूद विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ को चुनने की बात कही थी। इस वीडियो को इंटर्नेट मीडिया पर बहुप्रसारित किया गया। इसका असर यह हुआ कि पिछले चुनावों की तुलना में इस बार नोट पर वोट नहीं किया।