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पाक सेना को धूल चटाने वाले नगर के वीर सैनिक कारगिल विजय दिवस विशेष

सुदर्शन टुडे गंजबासौदा (नितीश कुमार)

आज सारा देश 24 वां कारगिल विजय दिवस मनायेगा। यह दिन भारतीय सेना के वीर जवानों की बहादुरी, शौर्य और पराक्रम को सलाम करने का दिन है। कारगिल विजय दिवस के दिन पूरा भारत कारगिल युद्ध के नायकों की बहादुरी और वीरता को श्रद्धांजलि देते हुए नमन् करता है। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध भारत-पाकिस्तान के बीच 2 महीने तक लड़ा गया था। भारतीय सेना ने इस युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और विजय प्राप्त की। इस युद्ध की समाप्ति 26 जुलाई 1999 को को हुई थी। तब से लेकर अब तक हर वर्ष 26 जुलाई के दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। पाकिस्तान की सेना ने 5 मई 1999 को भारत के 5 सैनिकों को मार दिया था और भारतीय सेना की कुछ चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद भारतीय सेना की ओर से जवाबी कार्रवाई करते हुए 10 मई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत कर दी। करीब 2 महीने तक चले युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने 20 जून 1999 को टाइगर हिल पर लगातार 11 घंटे तक लड़ाई लड़ने के बाद प्वाइंट 5060 और प्वाइंट 5100 पर अपना कब्जा कर लिया। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने एक के बाद एक चोटियों पर कब्जा करते हुए तिरंगा फहराया और 26 जुलाई 1999 को भारतीय सैनिकों ने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और विजय प्राप्त की। कारगिल विजय दिवस के मौके पर देशवासी अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता की रक्षा करने वाले वीर जवानों को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धाजंलि देते है। कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के हजारों सैनिकों को मार गिराया था। यह युद्ध 18 हजार फीट की ऊंचाई पर दुर्गम पहाड़ियों पर लड़ा गया था। कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे नगर के सैनिक कारगिल युद्ध के दौरान बरमूडा में पोस्टेड रिटायर्ड कैप्टन मुश्ताक खान उन दिनों भारतीय सैनिकों की वीरता को याद करते हुए बताया कि उरी सेक्टर में लगातार फायरिंग होती थी। हमारी टीम की जिम्मेदारी किसी भी हमले को रोकने की थी, क्योंकि वहीं से होकर बोफोर्स तोप और अन्य साजो-सामान आगे जाता था। हम रात को ही अभियान चलाते थे, क्योंकि दिन में दुश्मन हमारी मूवमेंट आसानी से देख सकता था। कई बार तो 72-72 घंटे सो नहीं पाते थे। पेट्रोलिंग के दौरान जो खाना साथ होता था, उसी से काम चलाना पड़ता था। दुश्मन को जैसे ही हमारे होने का अहसास होता था वो हम पर फायरिंग भी कर देता था। हम बंकर और जंगल में छिपकर उन पर जवाबी हमला करते। दो साल तक उस इलाके तक मेरी पोस्टिंग रही। तो वही कारगिल युद्ध टैंक से दुश्मन तो बड़ी पर गोले बरसाने वाले रिटायर्ड हवलदार अजीत सिंह रघुवंशी जम्मू कश्मीर के अखनूर सेक्टर में पोस्टेड रहे और युद्ध में बटालियन के साथ युद्ध टैंक का संचालन करते हुए पाक सेना को भारतीय सीमा से बाहर खदेड़ने का काम किया और चोटियों पर कब्जा कर तिरंगा फहराया।

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