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रायसेन

निकाय चुनाव में मिली भाजपा को करारी हार:हार के बाद नेता एक दूसरे के सिर फोड़ रहे ठीकरा

चंद्रेश जोशी सुदर्शन टुडे रायसेन

रायसेन।नगरीय निकाय चुनाव रायसेन शहर के 18 वार्डों में से 17 वार्डों में पार्षद के चुनाव भाजपा कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच कराए गए।20 जुलाई को नपा पार्षद पदों के जब चुनाव नतीजे आए तो काफी चौंकाने वाले आए।जिसमें भाजपा 7,कांग्रेस 8 और निर्दलीय, बागी उम्मीदवारों की संख्या 3 पार्षदों की है।जिसमे 2 भाजपा के बागी और1 कांग्रेस से बगावत करने वाला निर्वाचित पार्षद हैं।ऐसे खण्डित जनादेश बहुमत से कांग्रेस भाजपा के नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें आ गई हैं।

इस बार नपाध्यक्ष के चुनाव डायरेक्ट सीधे नहीं कराए जाने की बजाय सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने का निर्णय लिया है।इस बार नपाध्यक्ष की कुर्सी ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है।

नगर सरकार में 18 साल की सत्ता खोने से गमगीन भाजपा अब हार के कारण के मंथन में जुट गई है। पार्टी के दो गुट एक-दूसरे को हार का जिम्मेदार मान रहे हैं, तो कुछ कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर जिम्मेदार नेताओं के कथित ऑडियो वायरल करने की चेतावनी दे रहे हैं। पार्टी को अपने वोट में कमी आने की चिंता भी सता रही है।

नगरीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पुराने शहर की अमूमन पार्षदों की 8 सीटें खोई हैं तो वहीं 17 वार्ड में से 6 भाजपा पार्षदों पर ही जीत हासिल की। जबकि नरापुरा वार्ड 1 की बीजेपी प्रत्याशी राजकुमारी मनोज शाक्या पहले ही निर्विरोध निर्वाचित घोषित हो चुकी थीं।पिछले चुनाव 2015 में डाले गए वोट में भाजपा की भागीदारी 51.45 प्रतिशत थी। इस चुनाव में प्रतिशत घटकर 46.27 रह गई है। यह झटका खाने के बाद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एक बार जीते और दूसरी बार हारे पार्षद प्रत्याशियों के साथ बैठक कर चुके हैं।

इस प्रारम्भिक समीक्षा में यह तथ्य सामने आया कि पार्टी के वोटिंग शेयर में कुछ कमी आई है। पार्टी से बगावत कर वार्डों में खड़े निर्दलीयों के अधिक वोट लेने से कुछ पार्षद उम्मीदवार कम अंतर से पराजित हुए हैं। इनमें भाजपा के वार्ड 7 ,वार्ड 9,5,8,शामिल हैं।बाद में इस वोट की भरपाई की जा सकती है।

इधर, बीजेपी का दूसरा गुट नगर पालिका परिषद रायसेन में भाजपा को मिली करारी पराजय के लिए पहले को जिम्मेदार ठहरा रहा है। नेतृत्व के बदलाव की वकालत कर रहा है।एक तीसरा पक्ष यह है कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता इन दोनों गुट के नेताओं को हार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि पार्षद टिकट चयन में गड़बड़ी नहीं होती व इस प्रतिद्वंद्विता से बचकर पार्टी नेता एकजुट होकर चुनाव लड़ते तो परिणाम कुछ और आता। उनके विचार सोशल मीडिया में आ रहे हैं।.

 

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