अकेलापन
इस भरी दुनिया में तू अकेला क्यों खड़ा
क्या मुसीबत आन पड़ी जो सोच में है तू पड़ा
इतना शांत हो एकांत में जंजाल कोई है बड़ा
हार यू मानी नहीं हर विघ्न से तू है लड़ा
इस भरी दुनिया में तू अकेला क्यों खड़ा
विपत्तियों का बोझ है या मानसिक उलझन कोई
रिश्ते नाते टूट गए क्या संग तेरे ना कोई
इस दुनिया के भ्रमर जाल में संकट में है हर कोई
जाहिर कोई कर देता पी लेता हर गम कोई
इस भरी दुनिया में तू अकेला क्यों खड़ा
क्यों ठहर गया तू क्या सूझता रास्ता नहीं
कौन सी विपदा पड़ी है जिसका निराकरण नहीं
तनहा है यहां हर कोई सच्चा साथी मिलता नहीं
कर्म भूमि है कर्म करो भाग्य को कोसते नहीं
इस भरी दुनिया में तू अकेला क्यों खड़ा
विकृतियां तो अनेकों है कुछ सोच जरा हल निकलेगा
आज बुझा है दीपक तो कल रवि की तरह तू चमकेगा
रुकना नहीं जीवन पथ पर मंजिल तक जरूर पहुंचेगा
कांटो से कभी घबराना मत फूलों की तरह तू महकेगा
इस भरी दुनिया में तू अकेला क्यों खड़ा
सीमा त्रिपाठी
लालगंज अझारा प्रतापगढ़