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पीथमपुर

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प भी खोल दिया…डॉ जगदीश चौहान

पीथमपुर// भारत में एक समृद्ध और विविध जनजातीय विरासते है। पूरे भारत में न केवल विभिन्न जनजातीय समुदाय मौजूद हैं, बल्कि वे विभिन्न नस्लीय और भाषाई व्यापार का भी प्रतिनिधित्व करते हैं और आर्थिक एवं तकनीकी विकास के भी अलग-अलग हिस्से हैं। जबकि स्वतंत्र भारत की सरकारो ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार और विकास के अन्य कार्यक्रमों को शुरू किया, *परंतु परिणाम अनुरूप बदलाव में अंतर रहा*, इनमें से अधिकांश समूह आम तौर पर पीछे रहे और सरकार व अन्य सामाजिक सुधारों के लिए विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं। ये जनजातीय समूह, जिसमें वनवासी, जनजातीय और जनजाति कहे जाने वाले लोग शामिल हैं, ये तकनीकी रूप से स्वाधीन थे अब स्वावलंबन की ओर बढ़ रहे हैं। मानव विज्ञानी अपना अध्ययन ‘आदिम कलाकृति’ के रूप में करते हैं। ये समूह वेशभूषा, रीति-रिवाज, सांझ, विश्व-दृष्टिकोण, धर्म और सामाजिक संरचना के मामले में एक-दूसरे से और गैर-आदिवासियों से भिन्न भी हो सकते है, लेकिन इनका राष्ट्र हित सर्वोपरी का मूल भाव है । इनकी पहचान उनके संबंधित समकक्ष के कारण विशिष्ट आज भी है। जहाँ इस तरह की अभिन्नता है, वहाँ जन-जातीय लक्षण भारत की विकसित हो रही है महान परंपरा के साथ मिल गए हैं; साथ ही, जनजातीय समाज ने कई बाहरी रहस्यों का भी खुलासा किया है। आज का जनजातीय भारत औपनिवेशिक काल से बहुत अलग है; परिवर्तन की लहरें उन तक हैं और कई तरह से उनके अंतर्संबंध हैं। इस प्रकार, भारत की समकालीन जनजातीय संस्कृतियाँ आदिम संस्कृति के आदर्श के ढांचे नहीं हैं। उनकी बस्तियाँ ग्रामीण और शहरी दोनों हैं; और उनके जीवन के तरीके अपनी संस्कृति और रूढ़िवादी छवि के पैमाने हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो आधुनिकता की राह पर हैं। ऐसे समुहो के बावजूद, शेड्यूल में सभी जनजातीय समाज को अपनी जनजातीय स्थिति बनाए रखने के लिए जोर दिया गया है।इनका नाम संविधान मे शेड्यूल ट्राइब (ST) सूची के रूप में रखा गया है। जन जातीय संस्कृतियाँ हमें सांस्कृतिक कच्ची माला के कुछ संकेत प्रदान करती हैं। भारतीय संस्कृतियों के विकास में योगदान दिया गया। शेष भारतीय समाज के साथ उनकी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक समायोजन भारत की महान परंपरा, अर्थात् हमें स्वदेशी भारतीय संस्कृति के अवशेषों को समझने में मदद मिलती है।आदिवासी समाज के अपने उन भाई-बहनों को भी हम विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कृतसंकल्प हैं, जो सामाजिक-आर्थिक रूप से सबसे निचले पायदान पर हैं। इसी संकल्प को आगे ले जाते हुए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान यानि पीएम जनमन को अपनी मंजूरी दी है। इस मिशन से हमारे इन परिवारजनों के लिए न सिर्फ आवास, पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहतर होंगी, बल्कि इनका जीवन भी ज्यादा सुगम और सुरक्षित होगा। आदिवासी समाज का हित मेरे लिए व्यक्तिगत रिश्तों और भावनाओं का विषय है.21वीं सदी का नया भारत ‘सबका साथ सबका विकास’ के दर्शन पर काम कर रहा है.” प्रधानमंत्री मोदी’’* सरकार जानती हैं कि आदिवासी समाज के विकास से ही “सबका विकास” सधेगा और इसी कारण केंद्र सरकार बीते एक दशक से आदिवासी जनजातीय समाज के लिए मिशन मोड में काम कर रही है ताकि उनके जीवन के सभी आयामों को बेहतर किया जा सके। इसके अलावा कई राजनीतिक और सामाजिक कदम भी उठाये गए ताकि आदि समाज को सशक्त किया जा सके. इसमें सबसे प्रमुख कदम रहा आदिवासी जनजातीय समाज से आने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद भारतीय संसद ने स्वीकारा तथा मोदी सरकार ने भी आदिवासियों समाज का गौरव बढाया. आज देश में लगभग 600 से अधिक आदिवासी जातियां है लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों में इन्हे वो पहचान नहीं मिली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासी क्रांतिकारियों का सम्मान करते हुए उनके लिए स्मारक बनाएं और 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर देश के इतिहास और संस्कृति में जनजातीय समुदायों के योगदान को याद करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित कर राष्ट्र में लागू किया.।आदिवासी युवाओं के सामने शिक्षा के मैदान में सबसे बड़ी चुनौती भाषा की होती आई थी लेकिन अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प भी खोल दिया गया है. जिस कारण आदिवासी बच्चे, आदिवासी युवा अपनी भाषा में पढ़ सकेंगे. स्वास्थ्य सुविधाओं में “आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना” में करीब 91.93 लाख आयुष्मान कार्ड के लाभार्थी जनजातीय वर्ग से ही हैं. इसके अतिरिक्त लगभग 68 लाख जनजातीय लोग प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत आवास के लिए पंजीकृत हैं, जिनमें लगभग 63 लाख आवास मंजूर हो चुके हैं. इनमें से भी 47.17 लाख आवासों का निर्माण पूरा हो चुका है. इसके अतिरिक्त स्वच्छता मिशन के तहत 2014-2015 से लेकर अभी तक जनजातीय वर्ग के 1.47 करोड़ घरों में शौचालय का निर्माण हुआ है | करोडो रुपये के वार्षिक बजट के साथ प्रत्येक वर्ष 30 लाख से अधिक छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती है | इसके अतिरिक्त व्यापारिक उत्कर्ष का भी सुनहरा दौर दस्तक दे रहा है. देश के अलग-अलग राज्यों में तीन हजार से अधिक ‘वन धन विकास केंद्र’ स्थापित किए गए हैं. लगभग 90 लघु वन उत्पादों पर सरकार MSP दे रही है. 80 लाख से ज्यादा सेल्फ हेल्फ ग्रुप आज अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं जिसमें सवा करोड़ से ज्यादा सदस्य जनजातीय समाज से हैं और इनमें भी बड़ी संख्या महिलाओं की है. मोदी सरकार का जोर जनजातीय कला को प्रमोट करने, और युवाओं के कौशल को बढ़ाने पर भी है. देश में नए जनजातीय शोध संस्थान खोले जा रहे हैं. इन प्रयासों से जनजातीय युवाओं के लिए उनके अपने ही क्षेत्र में नए अवसर बन रहे हैं. इसी कारण आज भारत के जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों की मांग ना केवल भारत में लगातार बढ़ रही है बल्कि ये विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं. ट्राइबल प्रोडक्ट्स ज्यादा से ज्यादा बाजार तक आयें, इनकी पहचान बढ़े, इनकी डिमांड बढ़े, केंद्र सरकार इस दिशा में भी लगातार काम कर रही है।।डॉ जगदीश चौहान, उज्जैन सदस्य पर्यावरण वन जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार

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