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*शनि प्रदोष के साथ महाशिवरात्रि का महापर्व, अति शुभ संयोग

सुदर्शन टुडे संवाददाता दिनेश तिवारी सीहोर

महाशिवरात्रि का दिन शिव पूजा का सबसे बड़ा दिन होता है। महाशिव रात्रि के बाद ही शिवरात्रि आती है। स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषचार्य ज्योतिष पदम भूषण डॉ पंडित गणेश ने बताया क़ी इस बार अधिकमास होने से महाशिवरात्रि का पर्व जल्द ही आ रहा है। फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी 2023 को मनाया जाएगा। प्रदोष व्रत 18 तारीख शनिवार के दिन है और इसी दिन त्रयोदशी यानि प्रदोष का व्रत भी रखा जाएगा। त्रयोदशी समाप्ती के बाद चतुर्दशी प्रारंभ हो जाएगी।चतुर्दशी तिथि प्रारंभ और समापन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 18 फरवरी 2023 को रात 08 बजकर 05 पर प्रारंभ हो रही है और अगले दिन 19 फरवरी 2023 को शाम 04 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी महाशिवरात्रि का पर्व चार प्रहर में करने का विधान है। इसमें भी रात्रि के आठवें मुहूर्त का महत्व है। चूंकि चतुर्दशी तिथि 19 फरवरी की शाम को समाप्त हो रही है इसलिए महाशिवरात्रि 18 तारीख की रात्रि को ही मनाई जाएगी। महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि प्राप्त होती है तथा वह जीवन के अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है।
महाशिवरात्रि का व्रत प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को भारत सहित विश्व के कई हिस्सों में ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वाले भक्तों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाएगा।डॉ पंडित गणेश शर्मा ने ज्योतिषीय दृष्टि से बताया क़ी चतुर्दशी (14) अपने आप में बड़ी ही महत्त्वपूर्ण तिथि है। इस तिथि के देवता भगवान शिव हैं, जिसका योग 1+4=5 हुआ अर्थात्‌ पूर्णा तिथि बनती है। साथ ही कालपुरुष की कुण्डली में पांचवां भाव प्रेम भक्ति का माना गया है। अर्थात्‌ इस व्रत को जो भी प्रेम भक्ति के साथ करता है उसके सभी वांछित कार्य भगवान शिव की कृपा से पूर्ण होते हैं।
इस व्रत को बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री व पुरुष, भक्ति व निष्ठा के साथ कर सकते है
इस व्रत में रात्रि जागरण व पूजन का बड़ा ही महत्त्व है इसलिए सांयकालीन स्नानादि से निवृत्त होकर यदि वैभव साथ देता हो तो वैदिक मंत्रों द्वारा प्रत्येक पहर में वैदिक ब्राह्मण समूह की सहायता से पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रूद्राभिषेक करवाना चाहिए। इसके पश्चात्‌ सुगंधित पुष्प, गंध, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप-दीप, भाँग, नैवेद्य आदि द्वारा रात्रि के चारों पहर में पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो आर्थिक रूप से शिथिल हैं उन्हें भी श्रद्धा व विश्वासपूर्वक किसी शिवालय में या फिर अपने ही घर में उपरोक्त सामग्री द्वारा पार्थिव पूजन प्रत्येक पहर में करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए।
रात्रि की प्रकृति भी तमोगुणी है, जिससे इस पर्व को रात्रि काल में मनाया जाता है। भगवान शंकर का रूप जहां प्रलयकाल में संहारक है वहीं भक्तों के लिए बड़ा ही भोला,कल्याणकारी व वरदायक भी है जिससे उन्हें भोलेनाथ, दयालु व कृपालु भी कहा जाता है। अर्थात्‌ महाशिवरात्रि में श्रद्धा और विश्वास के साथ अर्पित किया गया एक भी पत्र या पुष्प पापों को नष्ट कर पुण्य कर्मों को बढ़ा भाग्योदय करता है। इसीलिए इसे परम उत्साह, शक्ति व भक्ति का पर्व कहा जाता है।
इसी प्रकार मास शिवरात्रि का व्रत भी है जो चैत्रादि सभी महीनों की कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है। इस व्रत में त्रयोदशी युक्त (विद्धा) अर्थात्‌ रात्रि तक रहने वाली चतुर्दशी तिथि का बड़ा ही महत्त्व है। अतः त्रयोदशी व चतुर्दशी का योग बहुत शुभ व फलदायी माना जाता है।
डॉ पंडित गणेश शर्मा ज्योतिष पदम भूषण स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषचार्य

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