जिला ब्यूरो राहुल गुप्ता दमोह
दमोह- ग्राम अहरोरा में वृंदावन पटैल के निवास पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस मे कथा वाचक आचार्य पंडित रवि शास्त्री जी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवो के कपट पूर्ण व्यवहार को देखते हुए उनके छप्पन प्रकार के भोजन त्याग करके विदुर कुटिया मे बड़े प्रेम से बथुआ की भाजी खाई थी विदुर जी धृतराष्ट्र के प्रमुख सलाहकार व प्रधान मंत्री थे।यह उस समय की बात है जब धृतराष्ट्र ने पांडवों को लाक्षागृह में जला देने का प्रयत्न किया था। दुरूशासन ने भरी सभा में पांडवों की पत्नी द्रौपदी का चीरहरण कर उसका अपमान किया था। दुर्योधन ने जुए में धोखे से युधिष्ठिर का राज्य छीन लिया और उन्हें वन में भेज दिया, किंतु वन से लौटने पर उनका न्यायोचित पैतृक भाग भी उन्हें नहीं दिया। तब विदुर जी ने ज्येष्ठ भ्राता धृतराष्ट्र को न्याय व धर्म की बात समझाई परंतु पुत्र-मोह में अंधे धृतराष्ट्र ने उनकी एक ना मानी और वह अपने पुत्र की ही तरफदारी करता रहा। भरी सभा में दुर्योधन ने विदुर जी का बहुत अपमान किया व उन्हें अपशब्द कहे। विदुर जी निंदा व अपमान से विचलित नहीं हुए क्योंकि उन्हें अपने प्रभु श्रीकृष्ण का सहारा था। विदुर जी ने सोचा कि धृतराष्ट्र दुष्ट हैं और इन पिता-पुत्र का संग करने से उनकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाएगी। अतः उन्होने धृतराष्ट्र का संग छोड़ दिया। विदुर जी का सात्विक भाव था विदुर जी अपनी पत्नी सुलभा के साथ समृद्ध घर का त्याग करके वन में चले गए। वे दोनों नदी किनारे एक कुटिया बना कर रहने लग गए व तपश्चर्या करने लगे। वे हर रोज तीन घंटे प्रभु का कीर्तन व तीन घंटे प्रभु की सेवा करने लगे। बारह वर्ष तक वे इस प्रकार प्रभु की आराधना करते रहे। भूख लगने पर वे केवल भाजी खाते थे, अन्न नहीं खाते थे। भाजी यानी सादा, सात्विक भोजन, ताकि आलस्य निद्रा ना आए और श्री भगवान का भजन निर्विघ्न कर सकें। विदुर जी ने सुना कि द्वारिकानाथ पांडवों व कौरवों में संधि कराने हस्तिनापुर आ रहे हैं। धृतराष्ट्र व दुर्योधन एक महीने से श्री कृष्ण के आगमन की तैयारी कर रहे हैं, छप्पन भोग भी बनवाए हैं परंतु मन में कुभाव है। कुभाव मन में रख कर की गई सेवा से प्रभु प्रसन्न नहीं होते। गंगास्नान के समय विदुर जी ने सुना कि कल रथयात्रा निकल रही है। वे बड़े प्रसन्न हुए उन्होने घर आकर सुलभा से कहा कि मैंने कथा में सुना है जो बारह वर्ष तक सतत् सत्कर्म करे उस पर भगवान प्रसन्न होते हैं, जो बारह वर्ष तक एक ही स्थान पर रहकर जप करे उसको भगवान दर्शन देते हैं। मुझे ऐसा लग रहा है द्वारिकानाथ दुर्योधन के लिए नहीं मेरे लिए ही आ रहे हैं। इधर सुलभा पति से पूछती हैं कि उनका प्रभु से कोई परिचय भी है या बस यों ही उम्मीद लगाए बैठे हैं विदुर जी कहते हैं कि जब वे श्री कृष्ण को नमस्कार करते हैं तो प्रभु उन्हें काका जी कहते हैं विदुर जी कहते हैं प्रभु मैं तो आपका दास हूँ, मुझे काका जी ना पुकारिए तात्पर्य यह है कि जब जीव नम्र होकर भगवान की शरण में जाता है तो भगवान भी उसका सम्मान करते हैं। सुलभा ने भी स्वप्न में रथयात्रा के दर्शन किए थे। अब तो उनकी यही इच्छा है कि भगवान प्रत्यक्ष दर्शन दें व उनके सामने बैठ कर भोजन करें।विदुर जी कहते हैं कि उनके आमंत्रण को प्रभु अस्वीकार तो नहीं करेंगे परंतु उनकी इस झोपड़ी में प्रभु को कष्ट होगा। महल में भगवान सुख से रहेंगे, छप्पन भोग ग्रहण करेंगे, उनके पास तो भाजी के सिवाय कुछ नहीं है। वे अपने सुख के लिए भगवान को तनिक भी कष्ट नही देना चाहते। परंतु सुलभा कहती हैं कि हमारे घर में चाहे सांसारिक वस्तुओं की कमी है पर हमारे ह्रदय में भगवान के लिए अपार प्रेम है। हम वही प्रेम प्रभु के चरणों में समर्पित कर देंगे।