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झांसी

देश के पहले ऐसे IAS अधिकारी रविंद्र कुमार हैं जिन्होंने दो बार एवरेस्ट को फतह किया है

आईएएस ऑफिसर बनने व दो बार एवरेस्ट फतह करने तक का सफर करने वाले झांसी जिलाधिकारी रविंद्र कुमार

जिला ब्यूरो चीफ आनन्द साहू 

झांसी रविंद्र कुमार आईएएस के एक गरीब कुशवाहा परिवार से IAS Officer बनने व एवरेस्ट फतह करने तक का सफर ।

रविंद्र कुमार यूपी कैडर 2011 बैच के एक IAS अधिकारी हैं.यह वर्तमान में झांसी जिलधिकारी(DM) के रूप मे कार्यरत हैं.ये देश के पहले ऐसे IAS अधिकारी हैं जिन्होंने एवरेस्ट को फतह किया है और इन्होंने यह रिकॉर्ड दो बार अपने नाम किया है.इन्होनें दो बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की है.एवरेस्ट पर चढ़ने के दो पोपुलर रास्ते हैं-एक नेपाल की तरफ से तो दूसरी चीन की तरफ से.इन्होंनें इन दोनों पोपुलर रास्तों से चढ़ाई की है.एक बार नेपाल के रास्ते से और दूसरी बार चीन के रास्ते भी.

हम सभी जानते हैं कि एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है और इस पर चढ़ाई करना कितना मुश्किल है?इस पर फतह करने की सपना देखने वाले कई लोगों की जाने जा चुकी है.वहीं हम यह भी जानते हैं कि Civil Service Exam पास करना भी कितना कठिन और मुश्किल है!लेकिन रविन्द्र कुशवाहा Civil Service का Exam पास कर,IAS अधिकारी भी बने हैं और एवरेस्ट पर भी चढ़ाई की है. IAS बनने से पहले कुछ साल मर्चेंट नेवी में भी जाॅब किया था. फिर IAS बने,इसके बाद सफलतापूर्वक एवरेस्ट पर भी चढ़ाई की.उनलोगों के लिए रविंद्र कुमार एक बेहतर प्रेरणा के स्रोत हैं जो अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं.जानना दिलचस्प होगा कि एक छोटे से गावं के गरीब किसान परिवार का लड़का कैसे IAS बना और एवरेस्ट तक का सफर तय किया?

जन्म,परिवार और शिक्षा रविन्द्र कुमार का जन्म 10 अप्रैल 1981 ई को बिहार के बेगूसराय जिले में प्रखंड-चेरिया बरियारपुर के बसही गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था.ये कुशवाहा समाज से आते हैं.इनके पिता का नाम शिव नदंन प्रसाद सिंह है.रविन्द्र बताते हैं कि उनका एक कमरे का घर था,जिसे दादाजी ने बनाया था.इस तरह के गरीब परिवार में जन्म लेने वाले अक्सर बहुत लोग आगे बढ़ने के बजाय अपने गरीबी को कोसते रहते हैं.

मगर रविन्द्र कुमार ने यह साबित किया है कि बड़े सपने देखने वालों के लिए,कोई भी चीज आगे बढ़ने के रास्ते का रूकावट नहीं बन सकती है.इन्होंनें केंद्रित माइंड और सकारात्मक सोच के साथ काम करते गये और आगे का रास्ता अपने आप खुलता चला गया.इन्होनें 1 से 5 वीं तक पढ़ाई अपने ग्रामीण क्षेत्र मे हीं रहकर की.इसके बाद जवाहर नवोदय विद्यालय का प्रवेश परीक्षा निकाल लिया और नबोदय से हीं 6वीं से 10 वीं तक की पढ़ाई की.10 वीं की परीक्षा अच्छे अंको से पास किया तो रांची के प्रसिद्ध जवाहर विद्या मंदिर विद्यालय में प्रवेश मिल गया और 12 वीं इन्होनें यहां से 1999 में पास किया.इसी साल IIT प्रवेश परीक्षा भी निकाल लिया.मगर इन्होंने शिपिंग फिल्ड को अपने कैरियर के रूप में चुनना पसंद किया और मुंबई के एक Training Ship Chankya को ज्वाईन कर लिया.जहां इन्होनें 2002 में Nautical Science विषय से ग्रेजुएशन कंपीलिट कर लिया.

यहां पर हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि Nautical Science वह विषय है जिसमें समुद्री जहाजों को संचालित करना तथा सुरक्षित नौपरिवहन का पढ़ाई किया जाता है.

मर्चेंट नेवी में chief officer बनने से IAS अधिकारी बनने तक का सफर ग्रेजुएशन के बाद 2002 मे हीं मर्चेंट नेवी में एक शिपिंग कंपनी में जाॅब करने लगे.इस जाॅब से ये 2002 से 2008 तक लगातार जुड़े रहे.यहां इन्हें 2007 मे Chief Officer की रैंक पर प्रमोट भी किया गया.

लेकिन 2009 में इन्होंने इस जाॅब को छोड़ने का निर्णय लिया और सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली आ गये.यहां इन्होंने मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई की और 2 साल से भी कम समय में,2011 मे सिविल सर्विस परीक्षा निकाल लिया और Indian Administrative Service को ज्वाईन कर IAS अधिकारी बन गये.

IAS अधिकारी रहते हुए एवरेस्ट (Everest) तक का सफर कैसे तय किया?

IAS से जुड़ने के बाद जनवरी 2012 में सिक्कम कैडर मिला(जिसे बाद में इन्होनें यूपी कैडर में चेंज करवा लिया).कैडर घोषित होने के बाद इन्होंने सिक्कम के बारे में जानकारी इकट्ठा करना चालू किया.जिसमें इन्हें पता चला कि 18 सितंबर 2011 को सिक्किम मे एक भूकंप आया था.जिसमें परेशानी काफी बढ गया था.आने-जाने का रास्ता टूट गया था,जगह जगह खाई और गड्ढे बन गये थे.जिससे आपदा में फंसे लोगों तक प्रशासन के लोगों का पहुंचना काफी मुश्किल हो गया था.फिर लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए पर्वतारोहियों (पर्वत चढ़ने वाले लोग) को बुलाना पड़ गया था.यह जानने के बाद रविन्द्र कुमार के मन में पहली बार ख्याल आया कि यदि मैं भी mountaineering (पर्वतारोहण) सीख लेता हूं तो भविष्य मे यह स्किल काम आ सकती है.ऐसी आपदा के समय में फंसे लोगों से जुड़ने में एक अधिकारी के रुप में आसानी होगी.फिर इन्होंने प्लान बनाया कि अनुभव के लिए mountaineering सीखने के बाद किसी peak (पर्वत चोटी) पर भी चढ़ना चाहिए.इसके बाद जो इन्होनें सोचा वह सिर्फ एक क्षत्रिय हीं सोच सकता है.इन्होंनें सीधा सोचा कि क्यों ना कुछ बड़ा हीं किया जाए? Peak हीं चढ़ना है तो संसार के सबसे ऊंचा शिखर एवरेस्ट पर चढ़ना चाहिए.

 

एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है

बस इसी सोच के साथ रविन्द्र इसको पूरा करने में जुट गये.इन्हें जिला ट्रेनिंग के लिए जुलाई 2012 में सिक्कम आना पड़ा.सिक्किम आने के बाद इन्होनें अपने senior को mountaineering के बारे में बताया और मनाया.फिर छुट्टी लेकर दार्जिलिंग में करीब 2 महिने का mountaineering course किया.कोर्स करने के बाद फिर जाॅब ड्यूटी पर लौट गये. मगर मेहनत जारी था,रोज 1 घंटे दौड़ते और साप्ताहिक छुट्टी में तो करीब 25-30 km दौड़ जाते.रविन्द्र कुमार ने तो यह भी कहा है -यदि 2-3 दिन का छुट्टी मिलता था तो 56 Km तक भी दौड़ लगाया हूं.

 

एवरेस्ट पर चढ़ने के कुछ दिन पहले बॉडी को माहौल में ढ़ालने के लिए कुछ विशेष ट्रेनिंग भी दिया जाता है.अंत में वह समय भी आया जब इन्होनें दृढ़ इच्छाशक्ति,लगण और परिश्रम से 19 मई 2013 को एवरेस्ट फतह कर लिया.

 

इन्होंने Mountaineering के लिए प्रथम रूप में एवरेस्ट को चुना और पहले हीं चढ़ाई में हीं सफलता प्राप्त कर ली.इसी के साथ इन्होनें एक रिकार्ड भी बना लिया.एवरेस्ट पर चढ़ने वाले देश के प्रथम IAS Officer के रूप में अपना नाम दर्ज करवा लिया.

 

फिर कैसे और किस उद्देश्य से दोबारा एवरेस्ट पर चढ़ाई की?

एवरेस्ट सै लौटने के बाद कई तरह के पुरस्कारों से सम्मानित भी किए गये.फिर वे अपने ड्यूटी पर लग गये.सिक्कम के कई जिले में कई पदों पर रहकर कार्य किया.इन्होनें सिक्कम में 2012 से 2016 तक सेवाएं दी.इसके बाद अपना कैडर चेंज करवा लिया और यूपी कैडर को ज्वाईन कर लिया.यहां इन्होनें कुछ दिन सीतापुर जिला के Chief Developement Officer के रूप में कार्य किया तो कुछ दिन फर्रूखाबाद के DM के रूप में भी कार्य किया.मगर कुछ दिनों बाद हीं उत्तर प्रदेश के हीं Tax Department में भेज दिए गये.इस डिपार्टमेंट में नवंबर 2017 तक रहे.इसके बाद पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय में भेज दिए गये.जहां ये उस समय की पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती का निजी सचिव नियुक्त किए गये.

 

इस मंत्रालय में इन्होंने दिसंबर 2017 से मई 2019 तक कार्य किया.इसी दौरान इनको एवरेस्ट पर दोबारा चढ़ाई करने का मन में ख्याल आया.चूंकि ये जल से जुड़े मंत्रालय में कार्य कर रहे थे तो यहां इन्हें विस्तार से जल समस्या के बारे में जानने का मौका मिला.किस तरह पानी खत्म होने की कगार पर है,इस चीज को समझा.अब इन्होंने इस समस्या को जनता तक प्रभावी ढंग से कैसे पहुंचाया जाए इस पर काम करना शुरू किया.जल संरक्षण के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य से दोबारा एवरेस्ट पर चढ़ने का प्लान बनाया.रविन्द्र बताते हैं – मैने सोचा इस संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए यदि एवरेस्ट पर दोबारा भी चढ़ने का खतरा उठाना पड़े तो मै उठाऊंगा.

 

2013 में नेपाल के रास्ते चढाई किया था और 2019 में इन्होंने चीन के रास्ते चढ़ने का फैसला किया.गंगा जल लेकर एवरेस्ट चढ़ाई के लिए 10 अप्रैल 2019 को भारत से निकल पड़े और 23 मई 2019 यही वह महत्वपूर्ण दिन था जिस दिन ये सफलतापूर्वक एवरेस्ट पर दोबारा पहुंच चुके थे.यहां पहुंचकर इन्होंने तिरंगा,नमामी गंगे और स्वच्छता अभियान का झंडा लहराया और गंगा जल(ice water) को संसार के सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाया और देश के लोगों से जल संरक्षण का आव्हान किया.

 

वहां पर देश के लोगों से अपील करते हुए एक विडियो भी बनाया.जिसमे वे कुछ इस तरह कहते दिख रहे हैं:-आज मैं विश्व के सबसे ऊंचे स्थान माउंट एवरेस्ट पर जो कि हिमालय का भी सबसे ऊंचा स्थान है और हिमालय भारत के लिए जल का स्त्रोत है.नदियों का स्त्रोत है.अत: नदियों के स्त्रोत के पास आकर मैं भारत के लोगों से अपील करता हूं कि जल बचाओ, Save Water ताकि अगले पीढ़ी को Clean Drinking Water मिल सके.यदि 125 करोड़ लोग थोड़ा-थोड़ा पानी Save करें तो आने वाले संतान को पीने के पानी का दिक्कत नही होगा।

 

इस तरह रविन्द्र पहली बार एवरेस्ट पर सिक्कम में आए भूकंप में मदद करने आए पर्वतारोहणियों से प्रेरित होकर चढ़ाई की और दूसरी बार जल संरक्षण व स्वच्छता का संदेश देने के लिए चढ़ाई की.

 

कब स्थायी रूप से जिलाधिकारी ( DM) नियुक्त किया गया?

Everest से दोबारा लौटने के बाद रविन्द्र कुमार मंत्रालय से पुन: यूपी कैडर मे लौट आए.जहां ये लखनऊ में स्टेट न्यूट्रिशन मिशन के कुछ दिनों के लिए डायरेक्टर बनाए गये और अंतत: 11 जुलाई 2019 को बुलंदशहर के जिलाधिकारी (DM) के रूप मे नियुक्त किए गये.

 

इस तरह हमने एक गरीब किसान के लड़का को IAS बनने और एवरेस्ट पर दो बार चढ़ाई करने तक के सफर को पढ़ा.हमें रविन्द्र कुमार के जीवन से यह सीख मिलता है कि हम जिस भी काम से जुड़ें केंद्रित और सकारात्मक सोच के साथ करें और आगे का रास्ता अपने आप खुलता गया.हम सभी को इनसे यह सीख लेना चाहिए और सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ना चाहिए.एक इंटरव्यू मे रविन्द्र सर से पूछा गया कि एवरेस्ट पर चढ़ने को लेकर आपके मन में कभी भय नही आया? इसपर वे बोले-ऐसा कम समय होता है जब मै निगेटिव (नकारात्मक) पहलूओं पर ध्यान देता हूं.मेरा ध्यान पोजिटिव (सकारात्मक) सोच पर अधिक रहता है.मै एवरेस्ट पर चढ़ने से पहले कांफिडेंट था कि मेहनत कर रहा हूं,कोई कमी नही है फिर सफलता जरूर मिलेगी.

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